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श्री सह्स्त्राबहु महाराज, महश्मती मंदिर

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श्री सह्स्त्राबहु महाराज, महश्मती मंदिर, महेश्वर, जिला खरगोन, मध्य प्रदेश, भारत (हैहयवंश पुस्तक का अंतिम अंश) हैहयवंश समाज का हर सदस्य इस सह्स्त्राबहु महश्मती मंदिर का दर्शन अवश्य कर लाभ प्राप्त करे और इनके पराक्रम,वीरता, और इस मंदिर के निर्माण कला से अभिसिंचित हो| समस्त हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज के लोगो को अपनी खोयी हुयी पहचान और अस्तित्व को पुन: जागृती करने के उद्देश्य से इस पत्रिका का संकलन और लेखन समाज के जनसहयोग से   और सामाजिक पुस्तकों तथा ग्रंथो, पुरानो, वेदों से प्राप्त करते हुए और समाज व् अन्य इतिहास कारों   द्वारा पूर्व में समाजहित में लिखी गयी कुछ पुस्तकों जैसे हैहयवंश का इतिहास, हैहयवंश उत्पति, जाति भास्कर, प्राचीन भारत की जातिया, क्षत्रिय वंशावली अदि से संग्रहित कर वर्तमान पीढ़ी के कल्यान्नार्थ हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज के जन-जन तक पहुचानें और उनको अपनी समाज के बारे में जानने और पढने के लिए प्रकाशित की जा रही है| इसके प्रकाशन का उद्देश्य सिर्फ सामाजिक जन भावना है नाकि किसी प्रकार से व्यसाय या आय लाभ अर्जित करना है|

नए सामाजिक युग के नवनिर्माण की शपथ

नए सामाजिक युग के नवनिर्माण की शपथ (हैहयवंश पुस्तक का सातवा अंश) आज हमारा हैहयवंश क्षत्रिय सामाज अपने सामाजिक पहचान के लिए एक अत्यंत ही अंतर्द्वंद रूप से आन्दोलित हो रहा है| आइये हम सभी मिलकर इसे एक आन्दोलन का रूप दे| हमारा समाज असीम क्षमताओ, कलाओं, धन वैबव तथा सामजिक आर्थिक रूप से संपन्न रहते हुए भी आज पाने पहचान, संस्कृत, तथा खोये हुए क्षत्रिय सम्मान के लिए उदासीन है इसका कारण सिर्फ सब कुछ होते हुए एक समुचित मंच और संगठन का ना हो पाना है| जहाँ अन्य जाति समुदाय के लोग आज हमसे आगे बढ़ कर अपने स्वरुप का दिन पर दिन जागृत होकर विस्तार कर रहे हम वही आज भी खड़े है| किसी भी जाति समुदाय का अपना अलग पहचान और सामजिक सहभागिता होती है इससे हम इनकार नहीं कर सकते है| कौन सा समाज नहीं चाहता है के उसके अलग पहचान हो वह समाज में अलग दिखे, उसका कार्यशैली, एव्श्यर्य और श्रेष्ठ हो|   इसी क्रम में आज जो हमारा पहचान और सामाजिक सहभागिता है वह हमारे इतिहास और संस्कारो से कही परे है, हम सर्वश्रेष्ठ और उच्चकुल के क्षत्रिय होते हुए भी समाजज में खोये और सोये हुए है, जिसके कारण हम ना चाहते हुए भी इतने हिन्-द
हैहयवंशी के गोत्र, देवी और देवता (हैहयवंश पुस्तक का छठवा अंश) आधुनिक समय में अधिकांश हैहयवंशी क्षत्रिय हयारण गोत्र शब्द का प्रयोग अपने नाम के साथ करते है . हयारण का अर्थ है -----" हय  + अ  + रण  "  हय ययाति बंशे कश्चिद् राजा बभूव आसम्यक प्रकारेण रण मध्ये तिस्ठ न्ति नास्माद हेतुना हयारण पद्मुच्यते . जिसका अर्थ है कि   महाराज हैहय की दक्ष संताने " हयारण " कहलाई . हैहय वंशी क्षत्रिय रण कौशल में इतने अधिक निपुण थे कि रण क्षेत्र में वे हाहाकार मचा देते थे इस कारण से ये " हयारण कहलाये . यह कोई गोत्र नहीं है , केवल मात्र " पद " है . हैहय वंशियो का गोत्र कौशिक देव संकर्षण , बृक्ष वाट , वेड - यजुर्वेद , शाखा - आश्वालायन , प्रबर ३ से है . प्रथम कौशिक , द्वितीय असित , त्रित्तीय देवल , नेत्र याज्ञवल्क्य , सूत्र चौआ ९ , देवी भद्रकाली , और गुरु का नाम देवल है . देवता –कुल देव श्री शिव देवी – कुलदेवी माँ दुर्गा शाखा – चन्द्रवंश नदी – नर्मदा