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समाज में जाति/वंश के रूप में हैहयवंशीय क्षत्रिय होने का महत्व

समाज में जाति / वंश के रूप में हैहयवंशीय क्षत्रिय होने का महत्व       हम जब किसी देश/परिवेश में अपने अस्तित्व के मूल्य और पहचान को देखते है तो यह स्वाभाविक रूप से प्रतीत होता है की हमारा एक व्यक्ति, एक परिवार एक समाज और समूह के रूप में क्या महत्त्व है हम किस संस्कार , विचार और समूह को समर्थित है , और हम एक व्यक्ति, एक परिवार एक समाज के रूप में दूसरे से कैसे भिन्न है और एक व्यक्ति, एक परिवार एक समाज के रूप में हमारा क्या सामाजिक योगदान और गुण है जिसे हम पहचाना स्थापित कर सकते है | यह हम या हमारा समाज ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति और समाज के लिए सत्य है जो प्रकीर्ति की दें है, हर वास्तु/चीज की अपनी पहचान और महत्व होती है चाहे वह छोटी से छोटी सुई या फिर जहाज ही क्यों ना हो| हम तो फिर भी एक जीवित प्राणी और समाज है | जन्हा तक अपने हैहयवंश क्षत्रिय समाज के विषय में यह कथन और अतिशयोक्ति है तो थोड़ी भिन्न है, हमारा समाज एक समय और काल में शिरोमणि था पर समय के कालचक्र और प्रकीर्ति के चक्र ने हमें पुन: से आपने उच्च कुल वंश के स्थापना और उथ्थान के लिए संगर्ष के रूप में पहुचा दिया जिससे आज हमार

सामाजिक सम्बन्ध के प्रयास रिश्तों का संग्रह

सामाजिक सम्बन्ध के प्रयास रिश्तों का संग्रह         आज हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज की चर्चा और इसका दायरा बहुत तेजी से हर तरफ बढ़ रहा है जो समाज कल तक अपने पुराने स्वरुप कार्औय आधारित उपनाम से से जाने और पहचाने जाते है, वह धीरे धीरे ही सही परन्तु आज आपने नए स्वरुप  हैहयवंश के नाम से जुडने लगा  है| इसी क्रम में आज एक ऐसा मंच और स्थान एक समाचार के प्रयास से उपलब्ध होने जा रहा है जिसके द्वारा हम हैहयवंश समाज के लोगो को शादी-विबाह जैसे महत्व पूर्ण सामाजिक कार्य को एक समुचित मंच (साधन) वर-वधु हेतु के सुचना के संकलन के रूप में प्रकाशित कर प्रदान किया जा रहा है| जो की पत्रिका के माध्यम से समाज के जन जन तक पहुच कर उन्हें इस सामाजिक समस्या जिसमे वर-वधु के चयन हेतु उपलब्ध होगा | यह एक अत्यंत ही सराहनीय प्रयास है हम सभे समाज के लोग इस कार्य के लिए पत्रिका संचालन और संग्रहकर्ता के आभारी है | आशा है समाज के लोग इस प्रयास का अधिक से अधिक लाभ पायंगे| इस पत्रिका से जुडते हुए इसके तथ्यों और सूचनाओ को समाज के अन्य लोगो तक पहुचने में मदद करंगे जिससे समाज के अन्य लोग भी इससे जुड़े और लाभ प्राप्त करे | य

चंद्रवंशी: पुस्तक हैहयवंश - शारंश

चंद्रवंशी: पुस्तक हैहयवंश - शारंश : संपादकीय यह पुस्तक लिखने के पीछे लेखक कि मंशा समस्त हैहयवंश समाज को अपने इतिहास मात्र से परिचित कराना है| पुस्तक मे लिखी गयी जानकारि...

सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प

सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प प्रकृति हमें परिवर्तन का सच्चा रूप हमेशा दिखाता रहता है. परन्तु हम सभी प्रकृति के इस रूप को जानते हुए भी हम इसे अपने सामाजिक जीवन में नही ढाल पाते है| प्रकृति जिस प्रकार मौसम के रूप में हमें जाड़ा, गर्मी और बरसात से, समय को दिन और रात से, संघर्ष को अमीरी और गरीबी से, अनुभव, एह्शाश को शुख और दुःख से जीबन को जन्म और मौत से रूबरू करता है और हम इस परिवर्तन में अपना पूरा जीवन समाज के बिच व्यतीत करते रहते है| समाज के रूप में हम अपना भाग्य और किश्मत मानकर सब्र करते है और जीवन बदलते रहते है| हम इस सामाजिक परिवर्तन के लिए कभी नहीं सोचते है जबकि दुनिया में हर चीज परिवर्तित और समय के साथ बरहती रहती है और परिवर्तन के साथ  प्रगति और विकास होता है अत: हमें प्रकृति के इस परिवर्तन के रूप को समझाने की आवश्यकता है यदि हम या हम अपने समाज के उत्थान के बारे में सोचते है| उक्त कथन का अभिप्राय बस इतना  है  कि हमें अपने जीवन, कार्य, स्थान को भी परिवातित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि नयी सोच, नयी कार्य और नयी जगह के स्वरुप में हम अपने और समाज के उत्थान

हैहयवंश समाज के उत्थान की बाधाएँ

हैहयवंश समाज के उत्थान की बाधाएँ आज अपना समाज हैहयवंशी और भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन की संतान मानने का संकल्प ले रहा है और समाज जो क्षत्रिय्ता के पहचान थी को स्थापित करने में जुटा है| इस बात में कोई संसय या झूठ नहीं रह गया है हम पुरातन काल से ही अपने को जिस कारण से भी भूल गए थे इसमे कोई विवाद नहीं करना चाहिए,  अपनी पहचान को हम अपने अज्ञानता और शिक्षा के अभाव में आज तक नहीं पहचान सके थे, परन्तु जब हमें इसका ज्ञान हो  गया है तो हमें इसके विवाद में ना पद कर बल्कि इस सामाजिक स्वरुप को पुन: से स्थापित करने का प्रयास हम सभी को मिलकर करना चाहिए| समय और काल प्रकृति की ही देन है जिसमे रामायण और महाभारत के रूप और उसमे होने वाले घटनाओ से हम सीख सकते है, जो हर काल और समय के साथ सभी समाज के रूपों में घटता होगा| हम क्या थे कहा से आये और ऐसा क्यों हुआ यह प्रश्न सोचने का नहीं है| हमें वर्तमान में जीना है और इस जीवन के लिए हम सभी से जो सत्य, सुन्दर और उचित है के लिए प्रयास करना होगा| हम भविष्य में क्या होगा नहीं बना सकते है परन्तु भूतकाल में जो हुआ है उससे सीख सकते है यदि हम ईश्वर में विशवास करते है

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव दुनिया में कही भी यदि विकास और प्रगति हुयी है तो वह बिना एकता और शक्ति के संभव नहीं हुयी है| ठीक इसी प्रकार जो भी समाज आज हमसे आगे है वह एकता और शक्ति के कारण ही आगे बढे है| इस तथ्य पर हम सभी सामाजिक जन को विचार करना चाहिए| हमारे सामाजिक पिछडेपन के लिए यदि सबसे बड़ी कोई बाधा है तो हममें एकता का अभाव, हम शशक्त होते हुए भी बिखरे और पिछड़े है| आज हर तरफ लोग सामाजिक विकास और सामाजिक संगठन और उससे भी आगे बढ़कर राजनैतिक सहभागिता की बाते हो रही  है परन्तु यह सब तभी संभव हो सकेगा जब हममे सामाजिक जागरूपता के साथ – साथ एकता और शक्ति होगी| अत: सबसे पहले हमें इस दिशा में कार्य करना होगा| आज के इस व्यस्तम जीवन चर्या और भागाम्दौर भरे सामाजिक मौहोल में यह एक बड़ी चुनौती है| इससे हम सभी इनकार नहीं कर सकते है| परन्तु यदि हम सभी को अपने समाज में वास्तव में परिवर्तन लाना है तो इन सभी बाधाओं को देखते हुए समाज के हर व्यक्ति को अपना कुछ ना कुछ समय सामाजिक एकता और समरसता के लिए देना पडेगा| हममे न तो शक्ति की कमी  है ना बुद्धी की यदि कमी कही है तो हम एक दूसरे को समय स

हैहयवंश की जागरूपता एक सुखद एहसास

हैहयवंश की जागरूपता एक सुखद एहसास समाज में हो रहे बदलाव और सक्रियता को आज हर तरफ देखकर हम सभी को खुश और गौरवान्वित होना चाहिए कि आज हैहयवंश की चर्चा पूरे जोर शोर से हर तरफ हर रूप में हो रही है| समाज के लोग में हैहयवंश की जुड़ाव और अपने प्रदर्शन द्वारा समाज को बदलने की भूख हमें दिखाई दे रही है| यह स्थिति निश्चय ही हम और आप के साथसम्पूर्ण  हैहयवंश समाज के सामाजिक लोगो के द्वारा अपने अपने स्तर से किये गए अथक प्रयास का परिणाम है| इस विषय पर हमारा ब्यक्तिगत अनुभव और पिछले कुछ समय से वर्तमान तक लगातार लोगो का पर्र्सपर संपर्क, उनके विचार और बातचीत, चर्चाए जैसा  सामाजिक लोग कर रहे है जिसमे यह दिखाई देता है कि जो लोग कल तक अपने को हैहयवंश के जाति का होने और कहने में हिचक महशुस  करते थे आज लोग खुलकर इसका समर्थन ही नहीं बल्कि अपने सामाजिक परिवेश में भी खुलकर बहस और चर्चाए करने लगे है और अब तो अन्य समाज का एक बड़ा वर्ग हमारे वंश को जानने और पहचानने लगा है और इसके साथ साथ हमारे क्षत्रिय्ता को स्वीकार करने लगा है| हमें यह जानकार अत्यन ही आश्चर्य और सुखद का अनुभव हो रहा है और शायद आप सभी समाज के लो

अंतर्जातीय विवाह सामाजिक समस्या

अंतर्जातीय विवाह सामाजिक समस्या अभी कुछ दिन पूर्व हमारे समाज के एक सामजिक कार्यकर्ता ने इस पर एक प्रशन उठाया था|हमारे हैहयवंश समाज के लिए अवश्य ही एक चिंता का विषय है| जन्हा आज हमारा हैहयवंश क्षत्रिय समाज आपने अस्तित्व और संगठन के लिए प्रयास रत है हमारे कुछ सामाजिक परिवार में अंतरजातीय विवाह का प्रचलन बढ़ना  निशिचित ही चिंता का विषय है| वैसे तो हर व्यक्ति को जीने, सोचने और कुछ भी करने से हम नहीं रोक सकते है यह सवंधानिक / सामाजिक आज़ादी का प्रशन है| परन्तु हम एक सभ्य समाज के लिए ही अपने संस्कार, और स्वजाती के लिए सामाजिक रूप से एक वर्ग या जाति को मानते है यह प्रकृति की देन  है की सभी जीव एक जैसे और एक वर्ग में नहीं रह सकते है सामाजिक भिनन्ता  और संस्कार  हमें जीने की कला सिखाती है और हम सामाजिक मूल्यों को नहीं छोड़ सकते है नहीं तो हमारे और अन्य प्राणी में अंतर ही क्या होगा| अब प्रशन है की सभी मानव और सभी सामाजिक प्राणी है तो फिर भेद भाव क्यों सभी की अपनी इच्छा और अपनी आज़ादी है कही भी वो किसी से पारिवारिक सम्बन्ध कर सकते जहा हुन्ये अच्छा विकल्प या प्यार – सम्मान मिलता है यह बात भी सही 

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव दुनिया में कही भी यदि विकास और प्रगति हुयी है तो वह बिना एकता और शक्ति के संभव नहीं हुयी है| ठीक इसी प्रकार जो भी समाज आज हमसे आगे है वह एकता और शक्ति के कारण ही आगे बढे है| इस तथ्य पर हम सभी सामाजिक जन को विचार करना चाहिए| हमारे सामाजिक पिछडेपन के लिए यदि सबसे बड़ी कोई बाधा है तो हममें एकता का अभाव, हम शशक्त होते हुए भी बिखरे और पिछड़े है| आज हर तरफ लोग सामाजिक विकास और सामाजिक संगठन और उससे भी आगे बढ़कर राजनैतिक सहभागिता की बाते हो रही  है परन्तु यह सब तभी संभव हो सकेगा जब हममे सामाजिक जागरूपता के साथ – साथ एकता और शक्ति होगी| अत: सबसे पहले हमें इस दिशा में कार्य करना होगा| आज के इस व्यस्तम जीवन चर्या और भागाम्दौर भरे सामाजिक मौहोल में यह एक बड़ी चुनौती है| इससे हम सभी इनकार नहीं कर सकते है| परन्तु यदि हम सभी को अपने समाज में वास्तव में परिवर्तन लाना है तो इन सभी बाधाओं को देखते हुए समाज के हर व्यक्ति को अपना कुछ ना कुछ समय सामाजिक एकता और समरसता के लिए देना पडेगा| हममे न तो शक्ति की कमी  है ना बुद्धी की यदि कमी कही है तो हम एक दूसरे को समय स

हैहयवंश का स्वाभिमान

हैहयवंश का स्वाभिमान कभी  – कभी अच्छाईयों और सत्यवादिता के साथ न्याय  रूपता व् सामजिक हठ धर्मिता भी विकास में बाधा बन जाते है| अब हम इसे विधि का विधान या फिर सामजिक युग परिवर्तन ! संसार जो भी प्राणी या प्राणी के रूप स्वंम  भगवान ने ही अवतार लिया सभी का निश्चित समय और दिन है कि उसे मिटना या संसार से जाना ही है क्योकि जो आया है उसे जाना है जो बना या बनाया गया है उसे मिटना या खत्म होना है जो आज है कल नहीं था और जो आज है भी उसे कल नहीं रहना है| परन्तु यह भी सत्य है की कुछ मूल चीजे होती है जिसका केवल स्वरुप ही बदलता है उसके कार्य और निरंतरता  बनी रहती है जैसे कि जल, हवा और जीवन जिसे हम सर्वशक्तिमान कहते है| जिस प्रकार सत्य को हम नहीं मिटा सकते है चाहे उसे कितना भी छिपाया या झुठलाया जाय पर एक ना एक दिन सच सामने आ जाती ह| समय परिवर्तनसील है इसी कारण  युग परिवर्तन हुआ और सतयुगस से  कलयुग तक का युग निर्माण बना| परिवर्तन संसार का नियम है, इसी कारण ऋतुये बनी और उसी अनुसार मौसम का परिवर्तन होता है और हमें प्राकृतिक रूप में सभी चीजे प्राप्त है| समय का चक्र सभी के जीवन काल में आता है चाहे वह सा

हैहयवंश समाज का मूल प्रश्न

हैहयवंश समाज का मूल प्रश्न हमें यह लिखते और कहते हुए अत्यंत ही खेद होता है की जब भी हम समाज में हैहयवंशी बनने, लिखने और हैहयवंश के नाम पर संगठन की बात करते है तो क्यों अधूरे और आधे मन से करते है, और हम एक बार फिर अपने अस्तित्व और कर्म पर संदेह करते है| सामाजिक चर्चाए और संगठन हैहयवंश के नाम से करेंगे इतिहास भी हैहयवंश का मानेगें पर क्षत्रिय शब्द के चुनाव और कहने तथा लिखने में शर्म और कोताही करंगे| इस बात को सदैव मै हर मंच और जगह लगतार उठाता रहा हूँ| मेरे समझ में यह नहीं आता है की जब हम हैहयवंश के गौरव शाली इतिहास को जानने और समझाने लगे है और समाज के अधिकतर लोग स्वीकार कर रहे है तो फिर आधे अधूरे मन से सिर्फ हैहयवंश लिखना और कहना कितना दुर्भाग्यपूर्ण है जिसका हमें सामाजिक रूप से  सिर्फ नुकशान ही होगा| यंहा यह कहावत भी सच लगती है की अधूरे मन से किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता है| यंहा हमें अपने हैहयवंश की उस कथा का एश्सास होता है जिसमे परशुराम के पिता जन्माद्ग्नी ऋषि द्वारा जो श्राप दिया गया उसका डर अभी तक हैहयवंशियो में बना हुआ है जिसमे वंश द्वारा क्षत्रिय्ता को भुला कर इसे समाप्त क

हैहयवंश की ब्यथा

हैहयवंश की  ब्यथा आज हैहयवंश क्षत्रिय समाज की स्थिति ठीक उस प्रकिर्ति के समान बनाए गए फूल की तरह है जो फूल होते हुए चारो तरफ बिखरा हूवा है| जिस प्रकार फूल का महत्व होते हुए भी फूल अपना महत्व और पहचान नहीं समझ पाता है| फूल कभी  अपने आप को मंदिर में चढाने के लिए प्रयोग किया जाता है तो कंभी उसे उत्सवों और धार्मिक कार्यों में प्रयोग किया जाता है और वह कभी गले का हार बन जाता है तो कभी पैरों के निचे कुचला जाता है| कभी उसे शमशान पर सुशोभित किया जाता है| फूलो का प्रयोग प्राचीन काल से इस आधुनिक काल में भी दवा-दारु हेतु भी प्रयोग किया जाता है| फूल के गुणों और आकार-प्रकार, और विभीन्न विधिवाताओ के कारण कई रूपों और नाम से जाना जाता है| फूलो के स्थान भी अनेक है, कुछ फूल कीचड़ में खिलते है, कुछ पहाडो पर, कुछ जंगल में कुछ बगीचों- घरों की शोभा बढाते है| पर फिर भी सभी फूल ही कहलाते है| फूल निर्जीव होने के बाद भी अपनी गुण के साथ कई उपनाम से जाने जाते है कीचड़ में खिलने के बाद भी वह असमान्य कमल के फूल कहलाते है और अपनी विशिष्ट पहचान रखते है, गुलाब के फूल बगीचे-घर में खिलते है पर वह भी कांटो में होने के

संगठन एवं स्वरुप हेतु विचारणीय

संगठन एवं स्वरुप हेतु विचारणीय हम सभी हैहयवंशीय लोगो को अब यह स्वीकार  कर लेना चाहिए की हमारे समाज को अब संगठित होने का समय और एक   स्वरिम अवसर के साथ आ गया है| अत: हम सभी हैहयवंश के लोगो को चाहिए इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाते हुए अपने समाज के संगठन को वृहद और शशक्त करते हुए एक राष्ट्रीय संगठन के रूप में संगठित हो जाय| आज हमें इसके लिए एक विशुद् रूप से वातावरण और माहोल भी मिल चुका है जिसे हमारे ही समाज के कुछ लोगो के अथक प्रयास और कार्य द्वारा  तैयार किया जा रहा था और हमारे समाज के पुर्जजो की भी यही मंशा थी की अपना हैहयवंश एक राष्ट्रीय स्तर का वृहद और शशक्त संगठन बने जो हम हैहयवंशियो को लगता है की पूरा होने जा रहा है| संभवत: यह प्रकिर्ति का वरदान है की हर अधेरा के बाद उजाला होता है जो कल था आज नहीं रहेगा| आज से पिछले २५-३० वर्षों की बात करे तो हैहयवंश का नाम और इतिहास शायद अपने समाज के कुछ गिने चुने लोगो तक ही सिमित था, परन्तु हमारे समाज के कुछ सामाजिक लोगो के अथक प्रयास, समाजिक प्रचार प्रसार का फल है जिसके कारण  आज बहुते से  लोग अपने को हैहयवंश से जोडने की साहस कर सके है और अब उसे स