एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव
दुनिया में कही भी यदि विकास और प्रगति हुयी है तो वह बिना एकता और शक्ति के संभव नहीं हुयी है| ठीक इसी प्रकार जो भी समाज आज हमसे आगे है वह एकता और शक्ति के कारण ही आगे बढे है| इस तथ्य पर हम सभी सामाजिक जन को विचार करना चाहिए| हमारे सामाजिक पिछडेपन के लिए यदि सबसे बड़ी कोई बाधा है तो हममें एकता का अभाव, हम शशक्त होते हुए भी बिखरे और पिछड़े है| आज हर तरफ लोग सामाजिक विकास और सामाजिक संगठन और उससे भी आगे बढ़कर राजनैतिक सहभागिता की बाते हो रही  है परन्तु यह सब तभी संभव हो सकेगा जब हममे सामाजिक जागरूपता के साथ – साथ एकता और शक्ति होगी| अत: सबसे पहले हमें इस दिशा में कार्य करना होगा| आज के इस व्यस्तम जीवन चर्या और भागाम्दौर भरे सामाजिक मौहोल में यह एक बड़ी चुनौती है| इससे हम सभी इनकार नहीं कर सकते है| परन्तु यदि हम सभी को अपने समाज में वास्तव में परिवर्तन लाना है तो इन सभी बाधाओं को देखते हुए समाज के हर व्यक्ति को अपना कुछ ना कुछ समय सामाजिक एकता और समरसता के लिए देना पडेगा| हममे न तो शक्ति की कमी  है ना बुद्धी की यदि कमी कही है तो हम एक दूसरे को समय सामाजिक कार्य के लिए नहीं देना चाहते है जिसके लिए हम कोई ना कोई बहना बना लेते है जैसे की केवल हमारे ही समय देने या जुड कर कार्य करने से कितना सामाजिक एकता और प्रगति हो जायेगी और सभी जब कुछ ना कुछ बहना कर ऐसे ही सोचने लंगेने तो एकता कभी आ ही नहीं सकती है| यह सच है हर व्यक्ति सामाजिक और परिबारिक मजबूरी होती है पर ऐसा नहीं की यह सभी को हमेशा हो| हम जितना और जब जुडना चाहे इसका प्रयास करे कौन नहीं जुड रहा है इसपर ना सोचते हुए हमने क्या समाज को दिया या दे सकते है इस पर विचार करे तो फिर आप समाज से भी उतना ही पाने के हकदार रहंगे| हम मनुष्य के रूप में एक अनमोल जीवन पाए है और हम सभी के मिलने से ही यह समाज बना है| हम सभी इस समाज के अंग है तो फिर हम जितना समाज के लिए करंगे उतना ही समाज से हमें मिलेगा| कौन कितना करता है, किसने कितना किया है और कौन करेगा या नहीं करेगा इस विषय के बारे में सोचने की जरुरत नहीं है हमें बस केवल यह सोचना चाहिए की हमने समाज को क्या दिया है क्या दे सकते है और समाज को आगे बढाने में हम और क्या कर सकते है| आप और हम पहले इस पर ही विचार करे और एक बार सोच में लाकर देखे जब हम समाज के बारे में सोचेंगे तभी हम उसके भागोदर बनकर उसके प्रगति और विकास में अपना बहुमूल्य सहयोग किसी ना किसी रूप में दे संक्गे| यह प्राय: देखने को मिल जाता है की यदि हम कभी किसी कारण वश यदि अपने किसी समाज के सदस्य या परिवार से मिलते है तो उन्हें यह पता ही नहीं रहता है कि उनके करीब या पास में भी अपने ही  समाज का एक परिवार रहता है| यह आज के इस परिवर्तन और आधुनिक समाज में बहुत ही आश्चर्य लगता है| हम अपनी सामाजिक एकता और शक्ति को पहचान नहीं सके है| हमारा आप सभी सामाजिक सज्जनो से यह निवेदन है की हमें कोई बड़ी बड़ी बात करने और धन व्यय करने समय को व्यर्थ करने की जरुरत नहीं है हम एक छोटा सा केवल यह प्रयास करे की अपने घर के आस पास २-४ अपने स्वजाती के परिवार से घुले मिले उन्हें अपना समझ व्यहार करे उनके दुःख-सुख में शामिल हो और सबसे जरूरी और बड़ी चीज जन्हा तक मेरी समझ में आती है की यदि हम किसी के लिए समर्पित होकर उसके लिए निस्वार्थ भाव से कुछ करते है तो यह सामाजिक बंधन और प्यार हमें एक होने से किसी भी कारण से नहीं रोक सकता है, चाहे इसके बाद लाख आप की उस सदस्य या परिवार से कोई वैचारिक अनबन या दुश्मनी हो जाती है|

आज सामाजिक एकता में जो सबसे बड़ी बाधा है वह आपसी और पूर्वाग्रह मानकर एक दूसरे के बारे में रखने की है कि हम उससे क्यों बात करे वह हमसे क्यो नही बात करता है, हम धनी है वह गरीब है या हम बहुत पढ़े लिखे है वह अनपढ़ है अदि अदि पर इन सभी में सबसे ऊपर जो बात है वह अभिमान है हर व्यक्ति इसी से गर्सित है| हम यह भी मानते है की हर व्यक्ति को अभिमान होना चाहिए परन्तु वह अभिमान जिस चीज के वजह के लिए वह सोचता है घमंड ना बने| इसी  प्रकाए एक धनवान व्यक्ति सोचता है की हम धन से सब कुछ कर सकता  है पर वह यह भूल जाता है की धन पर किसी का कभी सदैव अधिपत्य नहीं रहा है यह चलायमान है आज आप के पास तो कल किसी और के पास| इसी प्रकार यदि हम उछ शिक्षित है और यह सोचते है कि वह अनपढ़ और गवार है उससे कया जुडना या मिलना तो यह भी मूर्खता है क्यों की अशिक्षा और योग्यता में अंतर है बस फर्क इतना है की हम शिक्षित होने के बाद  और अधिक योग्य और समझ के साथ कार्य कर सकते है जबकि अशिक्षित व्यक्ति वही कार्य धीरे और मुस्ज्किल से करेगा|  सज्जनो आज हमारी और समाज की यह आवश्यकता है की हम जन्हा भी जिस रूप में जैसे भी हो सबसे पहले एक दूसरे से जुडने का प्रयास करे, आपसी सामजस्य, व्यहवार और संस्कार को जोडते हुए एक दूसरे का हर कार्य में सहयोग करे| आप सभी सामाजिक बंधुओ से मेरा यह सादर निवेदन है कि हम क्यों ना यह एक नया प्रयास करे की हम एक बायनारी ट्री के रूप में  कम से कम दो बिलकुल नए अजान समाज के परिवार को अपने से जोड़े और फिर उन परिवार से कहे कि वह दो नए परिवार को जोड़े इस प्रकार हम यह पायंगे कि हमारे आस-पास हजारों लोग एक दूसरे को जानने वाले बन जायंगे जो सायद एक दूसरे को ना जानते रहे हो या जानते भी रहे हो तो भी इस्प्रकार  जुड कर  एक लंबा  सामाजिक चेन  बना संकंगे| इस सामाजिक चेन के द्वारा फिर हम धीरे धीरे अपने विचारों को एक दूसरे से जोड़े, एक सामाजिक संस्कार स्थापित करे की हम कैसे एक दूसरे की सहायता कर सकते है विचारों के आदान – प्रदान के द्वारा हम एक नयी सामाजिक एकता और शक्ति की स्थापना कर सकने में सफल हो सकते है इसमे समय अवश्य ही लगेगा पर यह शशक्त और समर्धि बनेगा| इस प्रकार जब हम जुडते हुए अपने संस्कार और विचार के सामजस्य को एक नए सामाजिक संगठन में विकसित  कर संकेंगे| जब संगठन मजबूत होगा तब हम कोई भी सामाजिक परिवर्तन का सकने में सफल होंगे|

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