हैहयवंश की जागरूपता एक सुखद एहसास

हैहयवंश की जागरूपता एक सुखद एहसास
समाज में हो रहे बदलाव और सक्रियता को आज हर तरफ देखकर हम सभी को खुश और गौरवान्वित होना चाहिए कि आज हैहयवंश की चर्चा पूरे जोर शोर से हर तरफ हर रूप में हो रही है| समाज के लोग में हैहयवंश की जुड़ाव और अपने प्रदर्शन द्वारा समाज को बदलने की भूख हमें दिखाई दे रही है| यह स्थिति निश्चय ही हम और आप के साथसम्पूर्ण  हैहयवंश समाज के सामाजिक लोगो के द्वारा अपने अपने स्तर से किये गए अथक प्रयास का परिणाम है| इस विषय पर हमारा ब्यक्तिगत अनुभव और पिछले कुछ समय से वर्तमान तक लगातार लोगो का पर्र्सपर संपर्क, उनके विचार और बातचीत, चर्चाए जैसा  सामाजिक लोग कर रहे है जिसमे यह दिखाई देता है कि जो लोग कल तक अपने को हैहयवंश के जाति का होने और कहने में हिचक महशुस  करते थे आज लोग खुलकर इसका समर्थन ही नहीं बल्कि अपने सामाजिक परिवेश में भी खुलकर बहस और चर्चाए करने लगे है और अब तो अन्य समाज का एक बड़ा वर्ग हमारे वंश को जानने और पहचानने लगा है और इसके साथ साथ हमारे क्षत्रिय्ता को स्वीकार करने लगा है| हमें यह जानकार अत्यन ही आश्चर्य और सुखद का अनुभव हो रहा है और शायद आप सभी समाज के लोग भी ऐसा ही अनुभव् जरूर  प्राप्त करते होंगे| इस अनुभव और स्वीकारयोकति  की समाज के हर ब्यक्ति द्वारा हर जगह चर्चा और प्रचार प्रसार होना चाहिए| हमें यह लिखते और बताते हुए अत्यन ही सुखद और खुशी हो रही है की अपने समाज के जो लोग अपने को हैहयवंशी कहने और लिखने से बचते थे और अपनी क्षत्रिय्ता को छिपा नहीं पा रहे थे और क्षत्रिय्ता  हेतु अन्य क्षत्रिय धोतक शब्दों का प्रयोग क्षत्रिय जाति का होने के लिए लिखते थे वह लोग भी आज हैहयवंश को मानने और अपनानाने को तैयार ही नही  परन्तु लिखने और कहने लगे है| यंहा हम यह कटु  सत्य आप सभी समाज के लोगो बताना चाहते है की अपने समाज में लोगो में बहुत से लोग ऐसे थे जो हैहयवंश के होते हुए भी अपने को उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा और अपनी क्षत्रिय्ता के अलग पहचान के कारण, नौकरी पेशा और अन्य ब्यवसाय में जन्हा वो सामाजिक रूप से सफल और धनवान थे वह अपने समाज के अन्य सामाजिक लोग जो हैहयवंशी होते हुए भी अपने कार्य और रूप के कारण अन्य जाति धोतक लिखने के कारण उन समाज के लोगो से कभी भी ना तो मिलना चाहा ना अपनाना चाहा खासकर ऐसे लोग जो नौकरी में थे| इसके एक नहीं सैकडो  उदाहरण समाज में है पर इसका उलेख्या करना उचित नहीं है| मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और हम भी उन्ही में से एक है हर सामाजिक ब्यक्ति की ब्यक्तिगत भी एक अलग पहचान होती है जो उसे अन्य लोगो से अलग करती है| समाज का हर प्राणी को अपने सामाजिक परिवेश अनुसार ही आचारण  और ब्यवहार रखना और करना होता है जैसा की उसे वातावरण प्राप्त होता है सामाजिक प्रतिष्ठा एक ब्यवहारिक रूप है जो मनुष्य के लिए सरोपरी होता है| इसका सबसे कारण हमें लगता है की  ऐसे बहुत से ब्यक्ति और सामाजिक परिवार जिहोने शुरू से अपने सामाजिक परिवेश और प्रतिष्ठा हेतु क्षत्रिय्ता को तो अपना लिया था परन्तु अपने इतिहास और संस्कार के साथ अपने सामाजिक परिवेश और मूलरूप को नहीं छोड़ सके थे इसके  कई कारण हो सकते है इस पर अब ज्यादा बहस और ब्यर्थ विवाद की जरुरत नहीं है| बस इसका इतना नुकशान यह रहा की ऐसे सामाजिक ब्यक्ति और परिवार जो वास्तव में हैहयवंशी थे और और अन्य क्षत्रिय्ता के रूप नाम के कारण अपनो को समाज से जोड़ नहीं सके  जिससे समाज को उसका लाभ किसी भी रूप नहीं मिल सका| आज जब हैहयवंश क्षत्रिय्ता की शोर चारों तरफ सूनी और देखी जा रही है तो निशचय ही वो लोग भी अब समाज से जुडने लगे है| ऐसे लोगो का हैहय्ह्वंश से जुडना निश्चित ही समाज के लोगो को लाभ होगा, और हमें ऐसे लोगो को आगे लाकर समाज को एक नया सन्देश देना चाहिए की अपने भी समाज में ऐसे कर्मठ, सुयोग्य और उच्च पदों पर आसीन लोग है जो अत्यन ही पढ़े-लिखे, ज्ञानी और गुनी है जिनसे प्रेरणा लेकर समाज के अन्य लोग लाभ प्राप्त कर सकते है| हम समाज के लोगो को यह जानकार आश्चर्य होगा की अपने समाज के लोग कितने ताकतवर, शक्तिशाली  और साक्षर भी है जो शःसन और सरकार सहित अन्य जगहों पर उच्चे से ऊँचे पदों पर आसीन है जिसमे, डाक्टर, वकील, इंजिनियर, अधिकार, शिक्षक और बड़े से बड़े कल कारखानों के मालिक और उत्पादकर्ता भी है| जो आप हम के बीच सभी कस्बो, नगरों, जिलो और शहरो सहित सभी प्रान्तों और देश में है, पर अपनी पहचान वह नहीं दे सके  क्योकि उनके कुछ सामाजिक बंधन और ब्यक्तिगत और ब्यावाह्रिक सामाजिक परिस्थितया हो सकती है पर आज समय बदल रहा है आजा वही लोग अपने को हैहयवंश से जोडने के अवसर तलाश ही नहीं रहे है परन्तु जुड भी रहे है| यह निश्चित ही सुखद स्थिति हैहयवंश क्षत्रिय समाज के लिए है}
पूर्व में अपने स्वजातीय बंधुओ द्वारा अपने ब्यक्तिगत कारणों, सामाजिक परिवेश, विचार और संस्कार के साथ बनाये गए थे  जिनका  ब्यवहारिक परिवेश और  दायरा जिसमे वह पले – बढे और सामाजिक रूप से आगे बढे| ऐसे में उस परिवेश को एकदम से छोड़ना मुश्किल रहा होगा क्योकि अपने समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक परिस्थतियो और अशिक्षा व् ज्ञान की कारण बहुत ही पिछडा रहा है, सामाजिक साधन और गरीबी के कारण अपने समाज के बहुत से ब्यक्तियो और परिवार को अपना जीवन यापन और घर व् रोजी रोटी चलाने  के लिए ही समय और परिस्थिति वश जो कार्य जन्हा मिलते गए वह उसे अपनाता चला  गया और यह प्रथा ऐसे ही चलते चलते कार्यों के कारण एक पहचान बनाती  गयी और वही कार्य उनके संबोधन के रूप में उन्हें उस जाति के रूप में जाना और पहचाना जाने लगा| यह भी एक कडुवा सच है की अपने समाज में कोई भी ऐसा ब्यक्ति रहनुमा के तौर पर नहीं था जो इन्हें रास्ता दिखा सके| लगभग नब्बे प्रतिशत लोग उसी रूप में ही अपने को स्थापित कर लिए जो उससे बाहर नही निकलना चाहते थे| शेष दस प्रतिशत लोग जो सामाजिक रूप से कुछ लिखे-पढ़े और नौकरी पेशा या अच्छे ब्यापार में थे उन लोगो से कई कारण से दूरी बनाते रहे जब की यह भी सच है की सभी पारिवारिक रिश्तों हेतु कही ना कही अपने अपने बच्चो के रोटी-बेटी के सम्बन्ध हमेशा से रहे है पर वह पारिवारिक सम्बन्धों के बनाने तक ही सिमित रहा, पारिवारिक संबंधो के अत्रिकित कभी भी इनके बीच दूसरा और कोई सम्बन्ध जैसे सामाजिक विकास और सहयोग बहुत ही कम ही मिला जिसके कारण सम्बन्ध स्थापित होने के बाद भी परिवार विकास नहीं कर सके|

अब यह दो धुर्वो के सामाजिक परिवेश में रह रहे सामाजिक लोगो से अपेक्षा की जानी चाहिए की वह खुलकर और स्वेक्षा के साथ आपस में मिलकर हैहयवंश के गौरवशाली इतिहास को गर्वान्वित करे और आपस में सामंजस्य लाते हुए एक दूसरे के सुख-दुःख और पारिवारिक सम्बन्धों को विकसित कर स्थापित करने का प्रयास करे, तभी हैहयवंश समाज की एकता और विकास संभव बन सकेगी| 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बर्तन कारोबारियों का मूल इतिहास

सहस्त्रार्जुन जयन्ती