अंतर्जातीय विवाह सामाजिक समस्या

अंतर्जातीय विवाह सामाजिक समस्या

अभी कुछ दिन पूर्व हमारे समाज के एक सामजिक कार्यकर्ता ने इस पर एक प्रशन उठाया था|हमारे हैहयवंश समाज के लिए अवश्य ही एक चिंता का विषय है| जन्हा आज हमारा हैहयवंश क्षत्रिय समाज आपने अस्तित्व और संगठन के लिए प्रयास रत है हमारे कुछ सामाजिक परिवार में अंतरजातीय विवाह का प्रचलन बढ़ना  निशिचित ही चिंता का विषय है| वैसे तो हर व्यक्ति को जीने, सोचने और कुछ भी करने से हम नहीं रोक सकते है यह सवंधानिक / सामाजिक आज़ादी का प्रशन है| परन्तु हम एक सभ्य समाज के लिए ही अपने संस्कार, और स्वजाती के लिए सामाजिक रूप से एक वर्ग या जाति को मानते है यह प्रकृति की देन  है की सभी जीव एक जैसे और एक वर्ग में नहीं रह सकते है सामाजिक भिनन्ता  और संस्कार  हमें जीने की कला सिखाती है और हम सामाजिक मूल्यों को नहीं छोड़ सकते है नहीं तो हमारे और अन्य प्राणी में अंतर ही क्या होगा| अब प्रशन है की सभी मानव और सभी सामाजिक प्राणी है तो फिर भेद भाव क्यों सभी की अपनी इच्छा और अपनी आज़ादी है कही भी वो किसी से पारिवारिक सम्बन्ध कर सकते जहा हुन्ये अच्छा विकल्प या प्यार – सम्मान मिलता है यह बात भी सही  है| अंतर्जातीय विबाह करना कोई अपराध नहीं और बहुत सी परिस्थिति ऐसी हो जाती है जन्हा हम कुछ नहीं कर सकते है जैसे किसी को किसी से प्यार हो गया और वह उसे अपना जीवन साथी बनाता है, या उसे अपने समाज में किसी कारण से कोई वर/वधु उसके योग्य नहीं मिल रहा होता है ऐसे और भी कारण हो सकते है, और कानूनी तरीके से भे हम इसे गलत नहीं कह सकते है| अब प्रशन जो चिंता का है की हम जब हैहयवंश क्षत्रिय समाज की परिकल्पना को जीवित कर उसके विकास, संगठन, और स्वाभिमान के लिए प्रयास कर रहे है तो अपने ही समाज के लोगो से जो स्वेक्षा से इस अंतरजातीय विवाह में नहीं जाना चाहते और किसी विवशता के कारन ऐसा करना पडता है उसे अवश्य ही रोकने का प्रयास करना होगा| विवशता के बहुत से कारण है जैसे उम्र के अधिक होने से, अज्ञानता और सामजिक जानकारी के अभाव में सुयोग्य वर/वधु का ना मिलना, शिक्षा के कारण, धन के अभाव के, सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण ऐसे और बहुत से कारण हो सकते है| ऐसे विवशता के कारण हो रहे अंतरजातीय विवाह को हमे अवश्य ही रोकना होगा और इसे कैसे रोका जाय इस पर भी विचार करना होगा| हैहयवंश समाज के इतने रूप और विविधता है की हम इसे पहचान नहीं पा रहे है| इसी कारण हम सभी का प्रथम प्रयास इस विविधता / पहचान को बनाने के लिए प्रयास करना है, हम इस दिशा में अपने अपने अस्तर से जन्हा भी जिस रूप में है कर रहे है और सफकता भी मिल रहा है| लेकिन अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना है, क्योकि जबतक हम संगठित नहीं होंगे कुछ भी संभव नहीं है हमें एक दूसरे से जुडना है इसके लिए हर तरह के अभिमान को भूलना होगा शिक्षा= अशिखा के अंतर को छोड़ना होगा, अमरी-गरीबी को भूलना होगा ऐसे और भी बहुत से चीजे है जो हमें जोडने में बाधा बन रही है, इस सब पर विचार कर पहले एक वृहद संगठन खड़ा करना है| हम किसी भी माध्यम से एक दूसरे से संपर्क करना पडेगा हम जन्हा भी जिस रूप, नाम, काम अशिक्षित, शिक्षित, अमीर, गरीब के भेद भाव को अलग रख पर एक दूसरे से जोडने का प्रायस करे| समय हमेशा ही परिवर्तनशील है जो आज है कल नहीं होगा जो कल था वो आगे नहीं रहेगा ठीक उसी प्रकार समाज का स्वरुप भी सभी समाज में बदलता रहता है| यदि हम राजा महाराजा या उससे से भी पीछे देव युग की बात करे तो सामाजिक जाति का कोयी बड़ा महत्व नहीं था सभी देवता जिसने भी विवाह किया कही कोई जाति नहीं बताई गयी है पर समय बदला परिस्थितिया बदली और सामाजिक परिवर्तन होते गए|  हम और हमारा समाज भी इसी सामाजिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है हम एक नए सामाजिक परिवेश की कल्पना को साकार करना चाहते है जिसे हम सभी मिलकर हैहयवंश क्षत्रिय समाज का रूप देना चाहते है, अब हमें यह तय करना होगा की यह कैसे हो| हमें यह नहीं भूलना चाहिए परिवर्तन के दौर में कठनाई आती है पर जितना ही कठिन संगर्ष होगा सफलता भी उतनी मजबूत और अछ्छे होंगे| हम एक शाश्कत हैहयवंश क्षत्रिय समाज को साकार्फ़ कर सकते है ऐसा प्रतीत होने लगा है हमें अब इससे पीछे नहीं हटना चाहिए और अपने खोयी हुयी स्वाभिमान और संस्कार को पुन्ह से स्थापित कर एक नए समाजज की परिकल्पना को साकार करना है जय हैहयवंश जय सह्स्त्राबहु !!!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बर्तन कारोबारियों का मूल इतिहास

सहस्त्रार्जुन जयन्ती