हैहयवंश समाज के उत्थान की बाधाएँ
हैहयवंश समाज के उत्थान की बाधाएँ
आज अपना समाज हैहयवंशी और भगवान सहस्त्रबाहु
अर्जुन की संतान मानने का संकल्प ले रहा है और समाज जो क्षत्रिय्ता के पहचान थी को
स्थापित करने में जुटा है| इस बात में कोई संसय या झूठ नहीं रह गया है हम पुरातन
काल से ही अपने को जिस कारण से भी भूल गए थे इसमे कोई विवाद नहीं करना चाहिए, अपनी पहचान को हम अपने अज्ञानता और शिक्षा के
अभाव में आज तक नहीं पहचान सके थे, परन्तु जब हमें इसका ज्ञान हो गया है तो हमें इसके विवाद में ना पद कर बल्कि
इस सामाजिक स्वरुप को पुन: से स्थापित करने का प्रयास हम सभी को मिलकर करना चाहिए|
समय और काल प्रकृति की ही देन है जिसमे रामायण और महाभारत के रूप और उसमे होने
वाले घटनाओ से हम सीख सकते है, जो हर काल और समय के साथ सभी समाज के रूपों में
घटता होगा| हम क्या थे कहा से आये और ऐसा क्यों हुआ यह प्रश्न सोचने का नहीं है|
हमें वर्तमान में जीना है और इस जीवन के लिए हम सभी से जो सत्य, सुन्दर और उचित है
के लिए प्रयास करना होगा| हम भविष्य में क्या होगा नहीं बना सकते है परन्तु भूतकाल
में जो हुआ है उससे सीख सकते है यदि हम ईश्वर में विशवास करते है तो फिर ईस्वर
द्वारा जो घटनाये हमें पता है और वह हमें सत्य और उत्थान के लिए ले जाने में
सहयोगी है और जिससे हमारे समाज का भला हो सकता है उसके लिए हमें सामाजिक संघर्ष
करना ही होगा| हम वर्तमान में किसी ना किसी कारण से सामाजिक रूप से पीछे हुए और
अपनी सभ्यता को हम भूले होंगे जिसके कारण आज हमें संगतित और सामाजिक रूप से सुदृड
होने के लिए संघर्ष करना है| हम जिस सस्त्रबाहू भगवान के संतान होने की बात करते
है या फिर जिस हैहयवंश के लिए हम अपनी पहचान बनाना चाह रहे है, हव किसी ना किसी अप्रत्यासित कारणों असत्य,
अप्रकितिक, अनाह्न्कार और अधार्मिक रूप ही रहा होगा जिसके कारण इन बाधाओं ने हमें
अपनी पहचान और रूप से दूर किया और हम अपने स्वरुप को भूले, जो पीढियों तक उस कर्म
और अहंकार ने हमें अपनी पहचान पुन: से बनाने को विवश किया कि आज हम पाने
क्षत्रिय्ता को भी छिपा रहे है पहले तो अपने कर्मो, अज्ञानता और रुढवादी प्रवृति
को छोड़ना ही नहीं चाहते थे समाज के लोग जिद भी कारण जनह भी थे अपने कार्यों और रूप
से ही पाने को जोडते आ रहे थे जो जन्हा था जैसा कार्य कर रहा था वही उसका रूप और
उपजाति बन गयी जो सदियों तक साथ चलने की कारण अपने पहचान को मिटा दिए और उसी नाम
से जान और पहचाने जाने लगे| यह कोई कवक हमारे ही सामाजिक जाति के लुए नहीं था ऐसा
सभी समाज में था चाहे वह ब्राहमण, वैश्य या दूसरी निम्न जातिया रही| सभ्यता का
विकास हुआ और जो लोग समाज में ज्ञान अर्जन किये धीरे धीरे सामाजिक रूप को जाने और
समझाने लगे वह शिक्षा को पाने समाज के विकास का मंत्र समझे और आगे बढे| परन्तु हामरे हैहयवंश क्षत्रिय समाज में इसकी
संख्या बहुत कम थी जिसके कारण अन्य सामजिक लोगो के तुलना में हमारे समाज का विकास
नहीं हुआ, आज देर से ही सही पर धीरे धीरे ही सही हम हैहयवंश समाज के लोग भी अज्ञान
से ज्ञान की ओर बढ़ रहे है आज हमारे भी समाज में शिक्षा का महत्त्व समझा जा रहा है
और लोग सामाजिक रूप से आगे बढ़ रहे है फिर्भे हमें अभी बहुत कुछ करना होगा ताकि हम
हैहयवंश समाज के लोग को अपनी खोयी हुयी सामजिक प्रतिस्ठा पुन: से बना सके| आज हम शिक्षित होने के साथ भी कुछ ऐसी चीजे है
जिसके कारण सामजिक रूप से पीछे है| एक कहावत है की एक झूठ बोलने के लिए फिर सौ झूठ
बोलने पड़ते है, दूसरा किसी नही चीज को यदि छिपाते रहंगे तो उसका हल नहीं होगा और
तीसरा हम अंहकार से कुछ भी नहीं पा सकते है| यह किसी भी समय और किसी भी चीज के लिए
सत्य है| अत: सबसे पहले हमें इस तीन बातो को समझना होगा| हम सामाजिक रूप से जो थे
वह क्यों बदले और झूठ का सहारा ले, दुसरा हमें पाना रूप, कार्य और पहचान नहीं
छिपानी चाहिए और तीसरा सबसे बड़ी चीज हमें अहंकार का त्याग करना होगा, तभी हम एक
सत्य, सुद्रिःढ और शशक्त हैहयवंश क्षत्रिय समाज के उत्थान की कल्पना कर सकते है|
जन्हा एक ओर लोग शिक्षित हो रहे है तो ज्ञान अर्जित करने के बाद अज्ञान को मिटाने
का प्रयास करना चाहिए तो वह इसके उलटे समाज से दूर रहकर इसे और अज्ञान के भवर में ड़ाल रहे है, हमें ज्ञान को बाटना होगा
जिससे यह सामाजिक रूप से दूर हो, हमें भेदभाव को समाज से मिटाना होगा, हमें
उंच-नीच, अमीर-गरीब के फर्क को छोड़ना होगा तभी हम सच्चे माने में सामाजिक विकास का
सपना पूरा कर संकंगे| समाज का हर व्यक्ति समाज को कुछ ना कुछ दे सकता है यह कोई
जरूरी नहीं की हम किसी रूप में सामर्थ्य हो तभी समाज के लिए कुछ कर संकेंगे| हर छोटा
से छोटा योगदान जिससे समाज आगे बढ़ सकता हो इसका प्रयास हर सामाजिक व्यक्ति को करना
चाहिए| इसी संदर्भ में मेरा समाज के सभी लोगो से यह निवेदन करना है कि हम जन्हा भी
जिस्र रूप में जैसे भी रह रहे हो हम समाज से जुड़े यदि हम अपने आप को हैहयवंश
क्षत्रिय समाज का अंग समझते है हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं करना होगा कि यदि
हम हैहयवंशीय क्षत्रिय लिखंगे और कहंगे तो अन्य समाज के लोग या कोई और क्या कहेगा
या सोचेगा| आज प्रया: देखने और सुनाने को मिल रहा है की हम हैहयवंश तो लिखना चाह
रहे है और सह्स्त्राबहु की पूजा भी कर रहे है पर हम उसके वास्तविक स्वरुप को फिर
भी छिपायंगे और क्षत्रिय कहने और लिखने में संकोच है| हम आधा ज्ञान क्यों करे या
फिर दो बाते क्यों करे तथ्यों को छिपाना
ही एक सामाजिक बाधा है इसे है समझना होगा, हमें ज्ञान के साथ अपने अतीत को
इतिहास को और पहचान को जानना होगा तभी हम सफल रूप से समाज को खडा कर संकेंगे| आधा
अधूरा ज्ञान और लिखना पढाना हमें और बुक्शान करेगा और हमें सामाजिक रूप से कमजोर
बना देगा| यह सत्य है की आज हैहयवंश समाज एक सत्य, सुन्दर और सुदृढ़ समाज की ओर
अग्रसर है अत: हमें इन चीजों पर विचार कर
इसके बीच में आने वाली बाधाओ को दूर करना होगा| हम कुछ सुझाव् दे रहे है आशा है
समाज इस पर विचार करेगी और उह विचार समाज को जोडने और आगे बढाने में एक सकारात्मक
भूमिका देगा| सर्वप्रथम हमें शिक्षा के प्रचार प्रसार के साथ हैहयवंश से जुडी हर
तथ्य प्रमाण और इतिहाह को जन जन तक पहुचाना होगा इसका माध्यम कोई भी हो हमें हर
स्त्री – पुरुष और खासकर अपने बच्चो को इसके बारे में होगा और बताना होगा साथ ही इसे हमें अपने
संस्कार में भी डालना होगा| हमें या किसी के पास जो भी हैहयवंश से जुडी चीजे है को आपस में शेयर करना
चाहिए और उस पर एक यथोचित विचार-विमर्श कर जो उचित हो उसे समाज के हर व्यक्ति तक
पहुचना चाहिए| एक अकेला ज्ञान और जानकारी अपने पास रखकर हम कुछ नहीं कर सकते है
ज्ञान को बाटने से इसका विस्तार और उपयोग होगा नाकि इसे सिमित करने से| हमें दुसरा
प्रयास एक दूसरे से जुडने का करना होगा जिसके लिए हमें सारे अंहकार, ऊंच-नीच,
अमीरी – गरीबी और सामाजिक तथा दिलो के साथ जगहों की दूरी को छोडते हुए अपने सामजिक
पारिवारिक संबंधो शादी-विवाह और अन्य समारोहों को बढ़ाना होगा एक सिमित जगह, परिवेश
और संकुचित विचार और दायरा छोड़कर अन्य जगहों के सामाजिक लोगो से मिलना और जुडना
पडेगा| तभी हम एक दूसरे के रीती-रिवाजो और सनास्कारो से कुछ सिखाते हते सामाजिक
विस्तार कर संकेंगे| जन-संपर्क के लिए लोगो को अन्य माध्यम तलाशने होंगे| आपस के सहयोग और एक दूसरे के समर्पण की भावना
रखते हुए सभी के विकास के रास्ते बनाबे होंगे| समाज को बनाने के लिए परिवार के
मधुर सम्बन्धों को जोडना एक कड़ी का कार्य करती है हम दिलो के रिश्तों को जोड़कर
समाज के उत्थान में एक अहम कार्य कर सकते है| हमें देशाटन के महत्व को भी समझना
होगा हम अपने से दूर जगहों गाँवो,शहरो,
प्रदेशो में अपनी उपस्थिति अनुसार भी जिस रूप में हो जुडना होगा तभी हम एक बृहद और
शशक्त समाज की कल्पना को साकार कर संकंगे|
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