बर्तन कारोबारियों का मूल इतिहास

बर्तन कारोबारियों का मूल इतिहास
प्राचीन काल से ही जीवन यापन के लिए जिस तरह से रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता रही है ठीक उसी प्रकार जीवन यापन (भूख को मिटाने) के लिए खाद्यान्नों को पकाने और बनाने के लिए बर्तनों का आविष्कार समय के अनुसार बनता और बदलता रहा है, तथा प्राचीन काल से ही जब से धातु के बर्तनों का प्रयोग शुरू हुआ तभी से लेकर आज तक बर्तन के कार्य को बनाने और उनका व्यापार करने वाले विभिन्न स्थानों और रूपों में विभिकराते आ रहे है, समय के साथ बर्तनों के रूप और पद्धिति में बदलाव आया जिससे आज का बर्तन उद्योग और उसका कार्य और व्यापार करने वाले भी प्रभावित हुए है| इतिहास गवाह है की जब धातु नहीं थे तब मिटी के बर्तनों का प्रयोग बहुधा हवा करता था और सभी लोग उसी बर्तन का उपयोग जीवन यापन के लिए करते थे| जब से धातु खनिज का आविष्कार हुवा तब से वर्तमान तक विभिन्न धातुवो के बर्तनों का प्रयोग विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है वर्तमान में स्टील, प्लास्टिक, फाइबर और बोंन-चाइना के बर्तनों का प्रयोग शुरू हो गया है, जिसमे स्टील ने धातु  के बर्तोनो का प्रयोग बहुते हो रहा है|  जिसके कारण हस्थ निर्मित बर्तनों का बाजार और उपयोगिता कम हो रही है जिसका एक कारण तो उनका महंगा होना है तो दूसरी ओर महगाई और कारीगरों की अनुपलब्धता के कारण यह उद्योग बंद हो रहे है क्योकि इनकी लागत और मूल्य अन्य प्रकार के उपलब्ध बर्तनों की तुलना में अत्यधिक है| प्राचीन काल से ही धातु के बर्तन को पिट-पिट कर ठक ठक की आवाज़ होने के कारण उक्त समूह के कार्य करने वालो के ठठेरा नाम से पुकारा जाने लगा था, बाद के समय में यही धातु के विभिन्न प्रकार के बर्तनों के रूप देने वालो जैसे की कांसा धातु के बर्तन बनाने वाले को कसेरा, तांबे के बर्तनों के निर्माण करने वालो को तमेरा अदि, जिसमे विभिन्न समुदायों के कारीगर एक समूह में साथ रह कर एक दूसरे के कार्य में सहयोग प्रदान करते थे और बर्तनों के वास्तविक स्वरुप में आने के बाद उनको बाज़ार में बेचा जाता था, इसके लिए पुरे देश में जगह जगह पर बरतन के एक व्यापार केंद्र हुवा करते थे जो प्रायः ठठेरा बाजार, ठठेरा गली और कसेरा बाजार, बर्तन वाली गली या बर्तन बाज़ार के नाम से जाने जाते थे और वर्तमान समय में भी यह नाम प्रचालन में है|  इसमे यहाँ यह बतलाना अत्यधिक उचित होगा की ठठेरा कोई एक जाति वर्ग नहीं था जैसा कि उअसका प्रचालन बाद के समय में होता आ रहा है, पुरे भारत में यह कार्य व्यापक रूप से विभीन जाति धर्म के लोगो द्वारा किया जाता रहा है और इसका व्यापार पुरे देश में उस काल परिवेश के रूप में समझा और जाना जाता रहा है| पुराणों ग्रंथो से लेकर आज के आधुनिक सामाजिक पुस्तकों/लेखो में कही भी यह कार्य और व्यापर  करने वालो को एक जाति से नहीं जाना जाता है नहीं इसका कही के सरकारी दस्तावेजों में इसकी परिमानिकता है| अब हम उक्त कार्य के करने वाले एक समूह के कार्य इतिहाश और जीवन शैली पर प्रकाश डालना चाहते की आज के इस आधुनिक युग में उस समूह/वर्ग की क्या सामाजिक स्थिति है, और वह वर्ग/समुदाय  क्यों एक उच्च जाति का होते हुए भी हीन दीं और पिछड़ा हुवा है| आएये हम उस वर्ग के इतिहास का हमें इसके लिए थोड़ा पुराणों का ज्ञान करना होगा जिसमे आप यदि परुश्राम – सहस्त्रबाहु युद्ध के बारे में जानते हो तो इस जाति के बारे में और अछ्छी तरह से समझ सकते है| यह समुदाय जाति वास्तव में एक क्षत्रिय जाति का ही रूप है जोकि चन्द्रवंश की शाखा हैहयवंश में महाराज सहस्त्रबाहु के वंश से जाने जाति है|  हम पुराणों के माध्यम से सहस्त्रबाहु के जीवनी को भली भाति जान सकते है| जिसमे इस क्षत्रिय जाति का सात बार ऋषि परुश्राम द्वारा पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने का कार्य किया गया जोकि ऋषि होते हुए भी स्वंय एक क्षत्रिय थे, फिर भी क्षत्रियों का पूर्ण विनाश नहीं कर सके थे, क्योकि उस विनाश में ही क्षत्रियों ने अपना स्वरुप और कार्य बदल लिया था जिससे वह उनकी पहचान नहीं जान सकते थे और फिर वह युद्ध स्वत: समाप्त हो गया| क्षत्रियों ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यों में लिप्त हो गए थे जिसमे से एक कार्य धातु का निर्माण रहा क्योकि क्षत्रिय् गुण के कारण धातु के प्रयोग के बारे में जानकारी उन्हें पहले से ही थी जोकि सस्त्र-निर्माण, रक्षा सामग्री निर्माण का कार्य स्वत: किया करते थे तो वो बड़े ही आसानी से इस कार्य करने वाले समूह में छिप कर अपनी जान बचा ली थी| परुश्राम – सहस्त्रबाहु युद्ध तो समाप्त हो गया पर परुश्राम के पिटा द्वारा दिया गया अभिशाप से यह जाति और समाज आज भी बाहर नहीं निकल पा रही है जबकि हम वर्तमान में कलयुग में जी रहे है| युगों  के परिवर्तन के साथ तो सब कुछ बदल जाता है पर यह श्राप जो की भय के रूप में इस समुदाय का पीछा कर रही हो अभी तक बाहर नहीं निकल पा रहा है| श्राप के अलावा सामजिक आर्थिक असुरक्षा-अज्ञानता के कारण तथा  का  एक लंबे समय तक अपना कार्य और स्वरुप बदल देने के कारण भी हम अपनी पहचान पुन्ह से पाने के लिए संघर्ष शील है| इस समुदाय/जाति के लोग अब जैसे जैसे शिक्षित हो रहे है और इतिहास का उन्हें ज्ञान हो रहा है लोग अपने क्षत्रिय्ता को पाने के लिए व्याकुल भी हो रहे है| इतिहास गवाह है की किसी के लिए भी समय कभी एक नहीं रहा है बहुत से जाति समुदाय का पतन हुवा है तो बहुत से नै समुदाय जाति का उदय भी हुवा है, जो लोग कल तक सामजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े और दबे हुए थे वो आज आगे बढ़ रहे है और देश समाज उनको उच्च स्थान दे रहा है, और बहुत सी समुदाय जाति समाप्त और पीछे होते जा रहे है तो यह परिवर्तन हमेशा होता है और होता रहेगा| जब भी जागे तभी सबेरा और सफलता के लिए सुरवात जरूरी है अत: हमे सारे भेद भाव छोड़ कर एक जुटता के साथ अपनी खोयी हुयी क्षात्रिता और पहचान को पुन्ह से बनानी चाहिए| जिसके लिए आज पूरी समुदाय-जाति अपने अपने तरीके और सुविधा अनुसार विभिन्न जगहों पर अपनी अपनी ज्ञान और शक्ति के साथ संगर्ष कर रहे है, इतना तो अवश्य बदलाव आया है की हर व्यक्ति जो उस समुदाय को जानता और समझता है उसे पुन्ह स्थापित करना चाहता है| लोग शिक्षित और ज्ञान ले रहे है जोकि एक बड़ा माध्यम है अपने इतिहाश को समझाने और जानने का बिना उस ज्ञान के सफलता नहीं मिलेगी यह सभी को समझना होगा| कोई नही जाति के विकास और उत्थान के लिए यह जरूरी हैं की पहले वह अपने इतिहास का ज्ञान रखे, हम क्या थे क्या है और कैसे हमरी पहचान बने इस पर भी विचार करना होगा तभी हम अपनी खोई हुयी क्षात्रिता और समग्रता को पा सकते है| हमें यह नहीं भूलना चाहिए की कण कण से पृथ्वी का निर्माण हुवा है और बूंद बूंद से ही सागर का निर्माण जिसके निर्माण में किसी कण या बूंद की विषमता और बनावाट या उसकी आकार नहीं देखी गयी है, ठीक उसी प्रकार से हमें भी एक बृहद स्वरुप को पुन्ह से अपने वास्तविक रूप में लाने के लिए सभी को एक करना होगा तभी महाराज राज राजेस्वर सहस्त्रबाहु- हैहयवंश क्षत्रिय समाज के उस सामाजिक स्वरुप को स्थापित कर पाएंगे| इतिहास ही नहे यह वास्तव में सच है की बरतन का कार्य मुलत: इसी जाति के लोगो द्वारा किया जाता है पर उसके रूप अलग अलग प्रदेशो और जगहों में अलग अलग है, कही बहुत ही पुरानी शब्द ठठेरा का प्रयोग बहुधा में होता आ रहा है तो कही जगहों पर कसेरा, कुछ एक प्रान्तों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र,राजस्थान  के कुछ भागो में कंसारा, पच्छिम बंगाल,  बिहार में शाह और कुछ प्रान्तों और जगहों पर वर्मा, सिंह, राजपूत और चंद्रवंशी, हयारण भी लिखे जाती है, वर्तमान में कुछ समुदाय के लोगो ने एक बृहद स्वरुप पाने के लिए अपना मूल रुल हैहयवंशी क्षत्रिय जाति के हैहयवंशी शब्द का प्रयोग करना और लिखना शुरू कर दिया है जो कि आने वाले समय में निशित ही अपनी क्षत्रिय्ता की प्राप्ति के लिए एक सहरानीय प्रयास होगा| वास्तव में यदि में इतिहास के पन्नों को पढ़े जिसमे सभी पुराण, महाभारत और गीता प्रमुख: है तो हमें इसका ज्ञान अवश्य हो जाएगा की हम क्या थे क्यों हमारा मूल स्वरुप बदला और आज हम क्यों संघर्ष कर रहे है| हमें अपनी पहचान कर्म और धर्म कभी नहीं भूलना चाहिए क्योकि यही हमारे संस्कार को बताता है और बिना संस्कार के मानव जीवन बेकार है| हमारा हैहयवंश क्षत्रिय समाज, सिर्फ अपने प्रान्त, देश तक सिमित नहीं  है वरन यह समाज विश्व के हर कोने में है बस हमें इसके पहचान करने और एक सूत्र में पिरोने के लिए एक सम्मलित प्रयास करने की आवश्यकता है, और यह तभी संभव हो सकेगा जब हम स्वंम शिक्षित और शशक्त होंगे और अपने इतिहास को अपने गौरव को जानेगे तभी हम दूसरों को इसका ज्ञ्ना दे कर उन्हें भी इस इतिहास धर्म से जोड़ संकेगे, पहले हमें खुद को सुद्रिहं शशक्त बनना होगा फिर धीरे धीरे लोगो एक जुट कर एक विशाल संगठन का निर्माण करना होगा| हम एक थे एक है और एक बनेगे यह हमारा विश्वाश है| यह सच है की वर्तमान में हमरा कोई एक भी शशक्त संगठन राष्ट्र स्तर पर सक्रिय नहीं है जिसके कारण अलग अलग जगहें पर विभिन्न लोगो के द्वारा किये जा रहे प्रयास का कोई विशेष लाभ समाज को नहीं मिल पा रहा है| पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी संगठन धीरे धीरे ही संगठित हो कर ही विकास किया है अत: हमें भी इसका प्रयास जारी रखना होगा| कोई भी समाज एक दूसरे के सहयोग के बिना नहीं चल सकता है अत: श्री राज राजेश्वर महाराज  सहस्त्रबाहु,  हैहयवंश क्षत्रिय समाज के संस्कार और उनके आदर्शो  को  जीवित रखने के लिए हमें एक होना ही पडेगा, इसके लिए जो भी जरूरी हो हमें हर तरह से हर स्तर पर प्रयास करना चाहिए| सहयोग आपसी भाई चारा और परस्पर सम्पर्क एक दूसरे की मदद कर हम इसे  बड़े ही आसानी से प्राप्त कर सकते है|
डा० वी एस० चन्द्रवंशी

गोरखपुर, 9415641158

टिप्पणियाँ

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    1. आप लोग इतिहास को सुबह वस्ती तरीके से एक बार पुणे पढ़ें क्योंकि परमपिता परमेश्वर परम ब्रह्मा विश्वकर्मा के पांच पुत्र मनु मय त्वष्टा देवरी शिल्पी जिनमें से मनु लोहे का कार्य लकड़ी का काम दुष्टा ताम्रकार अर्थात तांबे का कार्य करने वाले जिन्हें कौशल्या के रूप में आ जाना तथा सोने का कार्य करते थे एवं शिल्पकार के निर्माण को कहा गया पांच पुत्र यह जो आप बात करते हैं आपको जानने के लिए बता दूं इस वंश के महान शासक गुजराती थे और उनके पुत्र यदि थे और यह वंश जो आप बताते हैं कि हम इस वंश के हैं या यदु से यदुवंश का निर्माण होगा और आगे प्रचलित हुआ तो आप सभी विश्वकर्मा बंधुओं सिलपरामम आप किसी भ्रम में ना पड़े और अधिक जानकारी के लिए इंटरनेट सर्च करें वेद के दसवें मंडल आठवें नौवें मंडल सूर्य सावित्री तथा परम ब्रह्म विश्वकर्मा कृष्ण भगवान इसलिए आप सभी विश्वकर्मा वंश है

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    2. Bhai tum jabrn me kuch bhi tang adane aa jate itihas pdhne ki zaroort tume he na ki ham logo ko kyuki hme to hamara ituhas bahut ache se pta he or tum khud ka itihas pdho khud ka dhayn do na ki dusro ko gyan bato samjhe

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    3. Mai bhi kasera hu aur mera kahana ye hai ki mangadhant kahaniya na bnaye yhi vedo me likha ho to saksh dikhae.

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  2. अौर हैहैय कौन थे... यदुवंशी.. महाराज यदु के बड़े बेटे सहस्त्राजीत के वंशज हैहैय. वेणुहय. महाहय तीन बेटे थे... हैहैय के ही वंश में सहस्त्राबाहु अर्जुन हुये.... हैहैय वंशी जयसवाल होते हैं. अौर हैहैय वंशी यादव मध्य प्रदेश मे आज भी है... बाकी ठठेरा कसेरा हैहैय वंशी नही होता है..

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    1. संजय जी कार्तवीर्या के 5 संताने थी जिसमे हैहय और दूसरे यदु हुए और 3 पुत्र थे हैहय के 5 पुत्र हुए और यदु के अलग वंश की स्थापना की और हैहय ने अलग वंश की स्थापना की जिसमें जायसवाल और हम सभी आते है और एक बात संजय जी आपका तो सरनेम भी नही आपको ऐसे बात करने का अधिकार भी नही है आपको सत्य से अवगत होना चाहिए एक बार ग्रंथो का अध्ययन करे

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    2. Haihay vansh se hote to ache kam karte daru bna kar nhi bechte jo khud ko haihay bt
      A rhe phle khud ke andr jhake ki unme haihay vansh ka ek bhi gun he

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    3. Bhaiya ji aap ji kis vans ke ho mere gaw me to rajput vans ke log daru shrab bejte hai or chori chamari bhi karte hai to kya o rajput nahi hai agr per ka ek aam Sara ho to eska matlab ye nahi ki per ke sare aam sare hai sayd aap samajh gye honge or agr na smjhe to aap bahat mahan hai
      Jao shree ram 🙏🙏

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    4. किसी के परंपरागत काम पर पर छींटा कशी न कर। हम ताम्र कारों को ये शोभा नही देता।

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  3. हैहय वंश यादवों की एक शाखा थी जो यदुवंशी है ठठेरा कसेरा बनिया या बेताल नहीं

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    1. Thathera, Kasera, Kansara, Tambat mul roop se Haihayvanshiya Kshatriya hai na ki baniya.....baniya vaishya me aate hai. Aur Yadav alag hai itna samajh lo. Pehle thik se research karo aur phir yaha aao. Ese hi chale aate hai kahi se bhi.....free me bolne milta hai toh kuch bhi bolneka!!!!!! Pagal.

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  4. हैहय वंश यादवों की एक शाखा थी जो यदुवंशी है ठठेरा कसेरा बनिया या बेताल नहीं

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    1. Yadav ahir hote h ... aur ahir and yaduvanshi me bht antar h gandu

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    2. Abe..Gandu madharchod .Sbse phle tu jan le ki maharaja yadu k putra the shahastrajit unke vansaj the raja haihaiya ....Phle achhi se jankari le le..Ur tu madharchod ahir ur yadav m antar bta de randi wala ....Tb gulami karunga tmhara...kabila ahir hai ur vansh chandravansh ur kul yadav kul smjha

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    3. राम पुकार ठठेरा कौशल यह सभी विश्वकर्मा बंसी हैं नेट की आजादी के पुत्र या यदु
      से उत्पन्न हुआ वंश के हैं

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  5. जिन का इतिहास नहीं है अस्तित्व नहीं है वह भी आज अपने आप दूसरी महापुरुषों से जुड़ रहे हैं यह गलत है दूसरे के बाप को बाप कहना सही नहीं

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    1. यादव तुमने ये बात सही कही की दूसरे के बाप को बाप मत बोलो यदु के पुत्र यादव थे न की हैहयवंशी कहा गाय चराने वाले और हैहयवंश

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  6. जिन का इतिहास नहीं है अस्तित्व नहीं है वह भी आज अपने आप दूसरी महापुरुषों से जुड़ रहे हैं यह गलत है दूसरे के बाप को बाप कहना सही नहीं

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    1. यदु का वंश : यदु के कुल में भगवान कृष्ण हुए। यदु के 4 पुत्र थे- सहस्रजीत, क्रोष्टा, नल और रिपुं। सहस्रजीत से शतजीत का जन्म हुआ। शतजीत के 3 पुत्र थे- महाहय, वेणुहय और हैहय। हैहय से धर्म, धर्म से नेत्र, नेत्र से कुन्ति, कुन्ति से सोहंजि, सोहंजि से महिष्मान और महिष्मान से भद्रसेन का जन्म हुआ

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  7. Hal hi me me maheshwara bhagvan sahStrabahu ke drasan karke a rha hu Tamrakar. Hayarn. Kasera thatera sabhi bhaeo se nibedan h ki apnea bnasaj sahStrabahu maharaja ke drasan karke jarur aye or apane ko pahachane ....ganesh prasad Tamrakar mauranipur district jhansi u.p.

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  8. आजकल यादव में एक ट्रेड चला हुआ है, अपने आप को क्षत्रिय के अनेक वंशो से जोड़ने का। ये हर वंश को अपना बतलाने लागते है। कभी यदुवंशी कभी सोमवंशी, कभी चंद्रवंशी और जब आरक्षण लेना हो तो गरेडिया, चरवाहा बन जाते है।
    ये अब हैहयवंशी भी अपने आप को बतलाने लगे है। ये कुछ भी बन जानते है। लेकिन इन्हें पता होनी चाहिए कि ये आज जो भी है आगे बढ़े है अपनी जनसंख्या के बलपर ।
    नही तो अपना इतिहास ये आपने पूर्वजो से जानने की कोशिश करे । हमारे यहाँ एक गाना भी है इनपे, " भुलल काहे बाड़ा ए बुढ़उ बैठत ना रहअ खटिया"।
    ये गाना अभी हाल में ही बिहार के चुनाव में खूब जोरो पर थी जिसका मतलब है। कि ये बूढा लोग भी क्यों भूल गाये उस समय की बात जब पंडितो के सामने खटिया पर भी नही बैठते थे। ये मैं नही बोल रहा बल्कि ये खुद यादव समाज के ही लोग बोलते है।

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    1. Aap log swarnkar me nhi aate hai kya bhaiya Maine to Suna tha swarnkar me bhi aaplog aate hai

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  9. अब मैं बतलाता हूँ कसेरा क्या है वो भी ठेठ भाषा मे।

    ये भगवान सहस्त्रबाहु के वंशज है। जिनको मैं यहाँ संक्षिप में ठेठ भाषा मे समझता हूं।
    हमारे शहर में भगवान सहस्त्रबाहु के स्मारक है, जहाँ हम हर वर्ष भगवान के अवतरण दिवस मानते है।
    यही कुछ दूरी पर माता सती के 51 शक्तिपीठो में से एक मंदिर है। जिसमे प्रत्येक वर्ष हमारे समाज की ओर से यहां पूजा चढ़ती है। जिसकी शुरुआत किसी को पता भी नही है। यदि बड़े-बुजुर्गों से पूछा जाए तो उनका एक ही जवाब होता है। पता नही ये हमने अपने दादा-परदादों से सीखा है, और उनके ही परंपरा को निभा रहे है। वो बतलाते है जब हमने भी अपने दादाओ या बाबाओ से जानने की कोशिश किया तो वो भी यही बतलाते थे कि हमने भी अपने बाप- दादाओ की परंपरा को निभा रहे है। मतलब इसका इतिहास कब से है ये किसी को पता नही बस सब पीढ़ीदर-पीढ़ी इस परंपरा को निभा रहे है। इस मंदिर का इतिहास भगवान सहस्त्रबाहु और परशुराम से है।
    यहाँ आज से 30 से 40 वर्ष पहले तक सिर्फ सावन के महीने में माता की ओढ़नी कडैया नामक पूजा सिर्फ हमारे ही समाज के लोग चढाते थे। लेकिन अब ये यहां के सभी वैश्य समाज की ओर से चढ़ने लगा। इस मंदिर में हमारा एक अलग ही इतिहास जुड़ा हुआ है।
    आज हम पीछे है तो वो अंग्रेजो की देन से उन्होंने हमारे व्यापार पर बहुत ज्यादा कर लगा दिया था जिसके कारण हम पीछे हो गये। लेकिन फिर से हमने अपनी मेहनत के बल पर कोई उपलब्धियां फिर से पा ली भारत के कई ऐसे शहर है जहाँ हमने अपने बर्तनों के व्यापार में सबसे आगे है। हाँ अपनी संख्या कम होने के कारण हम यादव जैसा राजनीति में नही आ पाए और न ही शायद आ सकते है।
    आपको एक बात और पता होना चाहिए, हमारे समाज के लोग कभी भीख भी नही मांगते है। इसकी जानकारी इस लिए है क्योंकि हम जनसंख्या में कम होने के कारण एक दूसरे से अच्छे संपर्क में होते है। हम में जो बहुत गरीब है वो भी किसी छोटे-मोटे कामो को करके अपना जीवन यापन आसानी से कर लेते है।
    हमारा पौराणिक काल मे सबसे बड़ा शत्रु ब्राह्मण होने के बाद भी आज भी और पुरातन समय मे भी हमारा पुरोहित ब्राह्मण ही हुआ है। आज भी हमारे शहर का सबसे ज्ञानी और नामी पंडित हमारे समाज का पुरोहित है। इनसे पहले उनके पिता, दादा , परदादा और........। सबने समय-समय पर अपनी पुरोहिती अपनायी है। वो हमारे कई पीढ़ियों की भी बाते आसानी से बता सकते है।
    आज भले ही हमारा समाज सरकारी आंकड़े में एक वैश्य(बनिया) समाज बन कर रह गया है जिसका कारण है सिर्फ़ व्यापार। लेकिन इतिहास तो हमारा क्षत्रिय वाला ही है।

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    1. Bahut khub bhai.....hum sab KANSARA, KASERA, KANSYAKAR, THATHERA, TAMBAT, TAMRAKAR aur aadi kahi samaj ko ek milan karna hoga aur sabko samjhana hoga ki humara itihaas kya hai aur hum kya hai.

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    2. Abe..Rabdi k aulad..Jb raja haihaiya hi jnm liye the yadav kul m to wo alag kaise ho gaye..Ur tmlog ahiro(yadavo) k najayaj aulad ho na bc

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    3. भाई raoubin kasera जी किस मंदिर की बात कर रहे है और कहा पड़ता है ये मंदिर मे जरूर जाना चाहूंगा वहां।

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    4. Roshan kasera bhai tumne ek dam sahi bat boli he in salo ko apna itihas pta nhi or chle aate he dusro ke andr ghuse pta nhi khud ke baap ko bhuol dusro ke bap ko kyu apnana chahte or ye yad
      Av phle krishan bhagwan ke banshaj batate the khud ko ab yadu ke batane lgge or haihay vansh me ghusne lge par asl bat yo ye he ki ye na to krishn ji ke na hi ydu or haihay ke vanshaj ye shudh me gadariya he or kalhar bhi haihay btate he khud jabki ye khud alg he haihay ek mahan vansh he or iske log daru banane jesi chhote kam nahi karte ye bat in kalharo ko ache se samjhni chaiye ab bat rhi ham logo ki to itihas me likha hi he ki parsuram ne 21 var hme khatm kiya he to iska praman yahi he ki aaj hm 135 cr me only kuch hazar he jabki ye yadav kalhar ek hi state me caroro me paye jate he agar ye sach me haihay vansh se hote to inki abadi itni jada nhi hoti or hmare jo gotra jjaha se chlte he waha ka itihas hi in sab ko bta dega ki hm haihayvanshi kshatriya he so ye yadav or kalhar apne itihas ko jane pahle or apne baap ko dhunde apna dna test karbaye na ki kisi or me ghuse samjhe or hmse bidoge. To pele jaoge ijjat isi me he hm logo se or hmare vansh se dor hi raho usi me tum sabka fayda he or itne ke bad bhi nhi mante ho na to fir khud ko proof kro ki tum haihay vansh se ho kyuki hm to he to hm log log asani se proof kar dege

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    5. Bhai sahi bole me bhi kasera hu me Bihar se hi Chhapra se kyu na humlog ek group bnay apne jati ka hm ek hoke rahe jaha bhi Jay jhande gar de to kya bolte ho bhailog group bnaya Jay Mera facebook account Ak Pashant prince me name se hai aplog mujhe waha se contact kr skte ho jai shree ram 🙏

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  10. ये इतिहास तो केवल हमारे शहर का है , ऐसे भारत मे न जाने कितने ऐसे ऐतिहासिक संकेत मौजूद है, जो हमारी ओर ही इशारा करता है।
    क्योंकि भारत के ज्यादातर शहर में हमारे समाज ऐतिहासिक और प्राचीन मन्दिर और धर्मशाले भी मौजूद है। कई जगह हमारे परंपरिक दुर्गा पूजा होती है। जिसमे शस्त्र की पूजा होती है। जो हमारे पूर्वजों ही धरोहर है। अब एक बनिये को शस्त्र पूजा करने की क्या जरूरत पड़ गई थी? जो हमारे पूर्वज करने लगे और हम आज भी उसे निभा रहे है।

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    1. ऋषि मनु विष्वकर्मा - ये "सानग गोत्र" के कहे जाते है। ये लोहे के कर्म के उध्दगाता है। इनके वशंज लोहकार के रूप मे जानें जाते है।
      सनातन ऋषि मय - ये सनातन गोत्र कें कहें जाते है। ये बढई के कर्म के उद्धगाता है। इनके वंशंज काष्टकार के रूप में जाने जाते है।
      अहभून ऋषि त्वष्ठा - इनका दूसरा नाम त्वष्ठा है जिनका गोत्र अहंभन है। इनके वंशज ताम्रक के रूप में जाने जाते है।
      प्रयत्न ऋषि शिल्पी - इनका दूसरा नाम शिल्पी है जिनका गोत्र प्रयत्न है। इनके वशंज शिल्पकला के अधिष्ठाता है और इनके वंशज संगतराश भी कहलाते है इन्हें मुर्तिकार भी कहते हैं।
      देवज्ञ ऋषि - इनका गोत्र है सुर्पण। इनके वशंज स्वर्णकार के रूप में जाने जाते हैं। ये रजत, स्वर्ण धातु के शिल्पकर्म करते है,।

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    2. यह शब्द प्राचीन धर्मग्रन्थों में अनेक स्थलों पर आया है और उनकें शिल्पी ब्राह्मण के स्थान में प्रयोग हुआ है। अर्थात लोककार, काष्टकार, स्वर्णकार, सिलावट और ताम्रकार सब ही काम करने वाले कुशल प्रवीण शिल्पी ब्राह्मण का बोध केवल रथकार शब्द से ही कराया गया है और यही शब्दों वेदों तथा पुराणों में भी शिल्पज्ञ ब्राह्मणों के लिए लिखा गया है। स्कन्द पुराण नागर खण्ड अध्याय 6 में रथकार शब्द का प्रयोग हुआ हैः

      सद्योजाता दि पंचभ्यो मुखेभ्यः पंच निर्भये।। विश्वकर्मा सुता होते रथ कारास्तु पचं च।। तास्मिन् काले महाभागो परमो मय रूप भाक्।। पाषणदार कंटकं सौ वर्ण दशकं तदा।। काष्ठं च नव लोहानि रथ कृद्यों ददौ विभुः।। रथ कारास्तदा चक्रुः पचं कृत्यानि सर्वदा।। षडदशनाद्य नुष्ठानं षट् कर्मनिरताश्च ये।।

      अर्थः शंकर बोले कि हे स्कंन्द, सद्योजात् वामदेव, तत्पुरूष, अधीर और ईशान यह पांच ब्रह्म सज्ञंक विश्वकर्मा के पांच मुखों से पैदा हुए। इन विश्वकर्मा पुत्रों की रथकार सज्ञां है। अनेक रूप धारण करने वाले उस विश्वकर्मा ने अपने पुत्रों को टांकी आदि दस शिल्प आयुध अर्थात दस औजार सोना आदि नौ धातु लोहा, लकडीं आत्यादि दिया। उसके यह षटेकर्म करने वाले रथकार सृष्टि कार्य के पंचनिध पवित्र कर्म करने लगे।

      रथकार शब्द क ब्राह्मण सूचक होने के विषय में व्याकरण में भी अष्टाध्यायी पाणिनि सूत्र पाठ सूत्र - शिल्पिनि चा कुत्रः 6/2/76 सज्ञांयांच 6/2/77 सिद्धांत कौमुदी वृतिः- शिल्पि वाचिनि समासे अष्णते। परे पूर्व माद्युदात्तं, स चेदण कृत्रः परो न भवति। ततुंवायः शिल्पिनि किम- काडंलाव, अकृत्रः किं-कुम्भकारः। सज्ञां यांच अणयते परे तंतुवायो नाम कृमिः। अकृत्रः इत्येव रथकारों नाम ब्राह्मणः पाणिनिसूत्र 4/1-151 कृर्वादिभ्योण्यः।

      ब्राह्मण जाति सूचक अर्थ को बताने वाले जो गोत्र शब्द गण सूत्र में दियें है, वह यह हैः कुरू, गर्ग, मगुंष, अजमार, ऱथकार, बाबदूक, कवि, मति, काधिजल इत्यादि, कौरव्यां, ब्राह्मणा, मार्ग्य, मांगुयाः आजमार्याः राथकार्याः वावद्क्याः कात्या मात्याः कापिजल्याः ब्राह्मणाः इति सर्वत्र।

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    3. यह शब्द प्राचीन धर्मग्रन्थों में अनेक स्थलों पर आया है और उनकें शिल्पी ब्राह्मण के स्थान में प्रयोग हुआ है। अर्थात लोककार, काष्टकार, स्वर्णकार, सिलावट और ताम्रकार सब ही काम करने वाले कुशल प्रवीण शिल्पी ब्राह्मण का बोध केवल रथकार शब्द से ही कराया गया है और यही शब्दों वेदों तथा पुराणों में भी शिल्पज्ञ ब्राह्मणों के लिए लिखा गया है। स्कन्द पुराण नागर खण्ड अध्याय 6 में रथकार शब्द का प्रयोग हुआ हैः

      सद्योजाता दि पंचभ्यो मुखेभ्यः पंच निर्भये।। विश्वकर्मा सुता होते रथ कारास्तु पचं च।। तास्मिन् काले महाभागो परमो मय रूप भाक्।। पाषणदार कंटकं सौ वर्ण दशकं तदा।। काष्ठं च नव लोहानि रथ कृद्यों ददौ विभुः।। रथ कारास्तदा चक्रुः पचं कृत्यानि सर्वदा।। षडदशनाद्य नुष्ठानं षट् कर्मनिरताश्च ये।।

      अर्थः शंकर बोले कि हे स्कंन्द, सद्योजात् वामदेव, तत्पुरूष, अधीर और ईशान यह पांच ब्रह्म सज्ञंक विश्वकर्मा के पांच मुखों से पैदा हुए। इन विश्वकर्मा पुत्रों की रथकार सज्ञां है। अनेक रूप धारण करने वाले उस विश्वकर्मा ने अपने पुत्रों को टांकी आदि दस शिल्प आयुध अर्थात दस औजार सोना आदि नौ धातु लोहा, लकडीं आत्यादि दिया। उसके यह षटेकर्म करने वाले रथकार सृष्टि कार्य के पंचनिध पवित्र कर्म करने लगे।

      रथकार शब्द क ब्राह्मण सूचक होने के विषय में व्याकरण में भी अष्टाध्यायी पाणिनि सूत्र पाठ सूत्र - शिल्पिनि चा कुत्रः 6/2/76 सज्ञांयांच 6/2/77 सिद्धांत कौमुदी वृतिः- शिल्पि वाचिनि समासे अष्णते। परे पूर्व माद्युदात्तं, स चेदण कृत्रः परो न भवति। ततुंवायः शिल्पिनि किम- काडंलाव, अकृत्रः किं-कुम्भकारः। सज्ञां यांच अणयते परे तंतुवायो नाम कृमिः। अकृत्रः इत्येव रथकारों नाम ब्राह्मणः पाणिनिसूत्र 4/1-151 कृर्वादिभ्योण्यः।

      ब्राह्मण जाति सूचक अर्थ को बताने वाले जो गोत्र शब्द गण सूत्र में दियें है, वह यह हैः कुरू, गर्ग, मगुंष, अजमार, ऱथकार, बाबदूक, कवि, मति, काधिजल इत्यादि, कौरव्यां, ब्राह्मणा, मार्ग्य, मांगुयाः आजमार्याः राथकार्याः वावद्क्याः कात्या मात्याः कापिजल्याः ब्राह्मणाः इति सर्वत्र।

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    4. Kasera / tamrakar samaj ke patan ka ekmarta karan yah bhi hai ki wo apne astitwa ko ni pahachanata aur na hi Janna chahta hai bs jo sun lia usi ko satta manakar jeete chale aa rhe hai

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  11. में इसे अपने फेसबुक में कॉपी पोस्ट कर रहा हूँ

    बर्तन व्यापारी अनुपम ताम्रकार
    नाम से है

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  12. I'm also belong from Thatheras. Nice blog nd post.

    Solutionguru5.blogspot.com

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  13. Plzz post genealogy of sahstrabahu arjun. It's necessary to know about him in detail.

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  14. लोहार सुनार बढ़ाई कौशल सब शिल्पी ब्राह्मण है और यही आप का वंश

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सहस्त्रार्जुन जयन्ती