संगठन एवं स्वरुप हेतु विचारणीय

संगठन एवं स्वरुप हेतु विचारणीय
हम सभी हैहयवंशीय लोगो को अब यह स्वीकार  कर लेना चाहिए की हमारे समाज को अब संगठित होने का समय और एक  स्वरिम अवसर के साथ आ गया है| अत: हम सभी हैहयवंश के लोगो को चाहिए इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाते हुए अपने समाज के संगठन को वृहद और शशक्त करते हुए एक राष्ट्रीय संगठन के रूप में संगठित हो जाय| आज हमें इसके लिए एक विशुद् रूप से वातावरण और माहोल भी मिल चुका है जिसे हमारे ही समाज के कुछ लोगो के अथक प्रयास और कार्य द्वारा  तैयार किया जा रहा था और हमारे समाज के पुर्जजो की भी यही मंशा थी की अपना हैहयवंश एक राष्ट्रीय स्तर का वृहद और शशक्त संगठन बने जो हम हैहयवंशियो को लगता है की पूरा होने जा रहा है| संभवत: यह प्रकिर्ति का वरदान है की हर अधेरा के बाद उजाला होता है जो कल था आज नहीं रहेगा| आज से पिछले २५-३० वर्षों की बात करे तो हैहयवंश का नाम और इतिहास शायद अपने समाज के कुछ गिने चुने लोगो तक ही सिमित था, परन्तु हमारे समाज के कुछ सामाजिक लोगो के अथक प्रयास, समाजिक प्रचार प्रसार का फल है जिसके कारण  आज बहुते से  लोग अपने को हैहयवंश से जोडने की साहस कर सके है और अब उसे सहर्ष स्वीकार कर रहे है| हम हैहयवंशियो को इस बात की खुशी होनी चाहिए की वर्तमान में हमारे पूर्वजो और वरिष्ठ सामाजिक  लोगो के प्रयास और प्रचार प्रसार को एक कदम आगे बढाते हुए समाज के कुछ लोगो द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर संगतःन के पुन: निर्माण की प्रयास किया जा रहा है| अब हम सभी हैहयवंशीय सामाजिक लोगो और परिवार को चाहिए की अधिक से अधिक संख्या में इस संगठन से जुड़े और अपने सारे भिन्नताए, उंच-नीच, उप-जाती के बंधन, कार्य के स्वरुप तथा स्थान के विभीन्नताए को छोड़ कर पहले एक राष्ट्र-स्तर और राष्ट्र-शक्ति के रूप में अपनी संगठनात्मक महत्व प्रदान करे|
यह सत्य है की भी समाज को दिशा दशा और विकास के लिए संगतःन के स्वरुप को होना आवश्यक है| पर यह भी एक प्रकृतिक प्रक्रिया है कि जब हम संगठित हो जायेंगे तो हम स्वत: संगठन का स्वरुप तय कर सकते है| हमें यहाँ यह अवश्य तय कर लेना है की हम सामाजिक स्वरुप के बारे में ही बात करे जिसमे समाज के हर सामाजिक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के इसका लाभ मिले और इसमे कही से भी राजनीति का मिलावट ना हो| सामाजिक स्वरुप का ऐसा संगठनात्मक सरचना बने जिसमे हर व्यक्ति की कुछ ना कुछ भागेदारी हो, उसका हम स्वरुप कैसे ही तय कर सकते है, इस कारण से हम विकेन्द्रीकरण संगठन का स्वरुप चुने तो बेहतर होगा| केंद्रीकरण स्वरुप होने में तानाशाही और मनमानी रहने का डर रहता है ऐसे में यदि संगठन में उछ पद पर बैठा निरंकुश होने के साथ साथ सामाजिक रूप से न्याय भी नहीं कर पाटा है| अत: स्वरुप ऐसा हो की निचले स्तर (छोटे संगठन) जगह पर रहने वाला भी सामाजिक ब्यक्ति/परिवार तक सामाजिक लार्यो में और संगठन में सहभागिता बने और भाग ले सके| इससे संगठन के संचालन में आसानी होगी क्योकि किसी भी संगठन की सफलता के लिए कुछ मूल मंत्र अतिआवश्यक है जैसे की किसी भी कार्य को करने पर उसकी राय और सलाह में सहभागिता, जन समपर्क, परस्पर संवाद और विचारों का आदान-प्रदान इससे हर सामाजिक ब्यक्ति को अपने महत्व का पता होता है उसे यह लगता है की उसकी भी राय और सहयोग संगठन के कार्य में लिया गया है ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए| हर मनुष्य के अंदर ज्ञान और गुण का भंडार है कुछ ऐसे सामाजिक लोग होते है जिन्हें एक सुलभ और सही मंच ना मिल पाने के कारण वो अपने प्रतिभा और योग्यता का प्रदर्शन नहीं कर पाते है और उस छिपी प्रतिभा का हम सामाजिक लाभ भी नहीं उठा पाते है| अत: हमारा प्रयास होना चाहिए की संगठन में हर ब्यक्ति को अपने प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर मिले|

वैसे तो सामजिक कार्य करना और वह भी किसी बड़े संगठन के लिए संगठन के पदों पर कार्य करना और निभाना बड़ा ही चुनौती भरा तथा कठिन है पर इस जिमेदारी को किसिस ना किसी सामाजिक ब्यक्ति को लेनी ही पडती है ऐसे में समाज के हर सामाजिक ब्यक्ति का यह जिम्मेदारी होती है की वह संगठन में पदासीन लोगो का सच्चे और अच्छे रूप से साथ दे और अपनी सहभागिता बिना किसी भेद-भाव के सहयोग के रूप में दे| हम सभी सामाजिक लोगो को समाज या संगठन से केवल लाभ पाने की आशा नहीं रखनी चाहिए क्योकि समाज को हम जितना भी देंगे वह हमारा लाभ है क्योकि वह लाभ आज किसी और को प्राप्त हो रहा है तो कल हमें भी प्राप्त होगा| हम समाज को क्या दे सकते किस रूप में दे सकते है इस पर पहले हम विचार करे और निस्वार्थ भाव से समाज का संगथान का सहयोग करे जिससे समाज शशक्त हो और संगठन मजबूत बने|
यंहा यह अवश्य ही विचारणीय है की किसी भी ब्यक्ति के चहरे पर अच्छाई या बुराई नहीं लिखी होती हैं पर हम इतना अवश्य ही निर्णय बना सकते है कि जो भी ब्यक्ति समाज के संगठन के पदों पर आसीन हो वह सहज हो सरल हो शशक्त हो साथ ही उसके अंदर स्वम की सेवा भाव और समय हो ताकि वह समाज की सेवा कर सके| पदासीन लोगो के लिए ऐसे तो कोई विशेष डिग्री या योग्यता की आवश्यकता नहीं होती  है पर यदि पदासीन ब्यक्ति सामाजिक ज्ञान रखता हो और सामाजिक धार्मिक, संस्कारिक की जानकारी हो तो वह इस कार्य के लिए उपयुक्त होगा| संगठनात्मक पद किसी आर्थिक ब्यक्तिगत लाभ के ना हो नहीं इसका दुरपयोग किया जाय| योग्यता और गुण हर ब्यक्ति के अंदर होती है पर जो ब्यक्ति अपने गुणों को पहचान लेता है वही सफल होता है अत: यदि संगठनात्मक पदों पर योग्य ब्यक्तियो का सर्व सहमति से उसकी  स्वत: की इच्छा से कर लिया जय तो अच्छा रहता है| हम सामाजिक कार्य के रखने वाले गुणों को ब्यक्ति के नि-स्वार्थ भाव, परपर-संवाद करने वाला, सभी को साथ लेकर चलने वाला, स्वाभिमानी हो पर अभिमानी नहीं तथा सभी को आसानी से उपलब्ध हो ऐसा ब्यक्ति यदि गुण रखता हो तो अति सुन्दर होगा| सामाजिक कार्य करने वाले हर सामाजिक ब्यक्ति को वैसे तो यह गुण होना ही चाहिए कि वह संवादहीन हो , समय रखता हो और उसके   साथ सहनशील हो  किसी भे सामाजिक ब्यक्ति के प्रति  किसी प्रकार का भेदभाव ना हो और पदासीन रहते हुए वह आलोचनाओ से कभी विचलित ना हो| अब इतने सारे गुणों का रखने वाला सामाजिक ब्यक्ति हम कहा पायंगे तो यह कोई योग्यता या पैमाना नहीं बनया जा रहा है यह चीजे हर ब्यक्ति के अंदर होता ही है इसका उलेख्या मात्र इस लिए किये जाय की संगठन या सामाजिक सफलता के लिए यह मूलमंत्र होते है| हम मनुष्य पहले है फिर किसी समाज के प्रतिनिधि या संगठन के सदस्य या संचालक हम मनुष्य के प्रविर्ती या उसके स्वभाव को एकदम से बदल नहीं सकते है| पर संगठनात्मक चुनाव से पहले उन सामाजिक गुणों पर विचार कर ही सकते है, एक प्राणी होते हुए उन सभी गुणों का जिस ब्यक्ति में प्रधुर्भाव अधिक प्रतीत हो या उपयुक्त लगता है उसका चुनाव किया जा सकता है| हम कोई भी कार्य सर्व-श्रेष्ठ और अच्छे के लिए लेते है अब यह समय और परिस्थिति पर निर्भर करता है की हम कितना सही निर्णय कर सके है| यह एक निरंतर और चलायमान प्रक्रिया है और परिवर्तन सामाजिक प्रक्रिया का अंग है| संसार में कोई भी चीज़ सदैव के लिए नहीं है| संगठन को संचालित और सफल बनाने के लिए हमें सामाजिक भाव, नि-स्वार्थ फल के इच्छा और सामाजिक रूप से समर्पण के भाव से करनी होगी तभी सामाजिक रूप से हम सफल होसंकेगे| हमारा यह अनुभव है की यदि हम समर्पण के भाव वह जिस रूप में हो करते रहे तो उअसका लाभ समाज के साथ साथ हमें भी मिलेगा क्योकि जो लाभ आजा हमारे प्रयास से आज किसी को यदि मिल रहा है तो कल निश्चित ही हमें भी मिलेगा|
सामाजिकता का भाव ही समर्पण होना चाहिए और समर्पण यदि सच्चे मन से किया जा रहा है तो वह अपनत्व के रूप में हमें समाज के किसी ना किसी ब्यक्ति/परिवार से प्यार – सम्बन्धों के रूप में लाभ रूप में  अवश्य मिलेगा| सामाजिक संगठन में मात्र किसी पद पाने या लाभ के लिए ही जुटे ऐसा सोच रखकर हम सामाजिक रूप से ना तो संगठित हो सकते है नहे सामाजिक कार्य कर सकते है| अब ऐसा भी नहीं कि हर ब्यक्ति पद की लालसा या नेतृत्व ना करने की इच्छा रखे तब तो संगठन का संचालन ही नहीं हो सकेगा संगठन को संचालित करने के लिए जितना उपरोक्त सभी गुणों का सामाजिक ब्यक्ति के अंदर प्राधुर्भाव होना है उतना ही इस जटिल, कठिन और साहसिक कार्य को पद ग्रहण करते हुए उसे निभाना होता है और इस कार्य को हममें से ही कसीस सामाजिक ब्यक्ति को उठानी पड़ेगी|
सामाजिक संगठन  के पदों के चयन प्रक्रिया का निर्वहन सामाजिक संगठन को तय करना बड़ा ही चुनौती पूर्ण कार्य है इसमे सामाजिक अनुभव, योग्यता और कर्मठता को मुख्या आधार बनाकर उपरोक्त गुणों द्वारा किया जाना चाहिए और इस बात का ध्यान रखना हम सभी सामाजिक लोगो की जिम्मेदारी होनी चाहिए की हम सामाजिक संगठन के लिए चुनाव कर रहे है नाकि राजनैतिक दल की| क्योकि जैसे ही राजनीति जैसे ही संगठन में जुडी हम अपने उद्देश्य को कभी पूर्ण नहीं कर सकते है और यही से बिखराव और असमानता लोभ अदि का जन्म होगा और सामाजिक रूप से असफल हो जाने का डर रहेगा| किसिस भी रूप में सामाजिक कार्य कोई ब्यापार नहीं है जिसमे लाभ-हानि देखी जाय, यह एक स्वत: चलायमान प्रक्रिया है|
हमें एक और बात का ध्यान पदों और चयन में रखना होगा की हर दिशा – जगह  (राज्य), हर वर्ग -  क्षेत्र (कार्य- स्वरुप जैसे ब्यसाय, मीडिया से जुड़े लोग, नौकरी पेशा, डाक्टर, वकील, सी० ए० से जुड़े लोग) तथा निशित ही पढ़े लिखे लोग शामिल किये जाय ताकि सामाजिक ज्ञान और कार्यों को समाज के उउत्थान में लगा सके| जिससे समाज के हर वर्ग के प्रतिधिन्त्व का लाभ समाज को मिल सके और हम विकास कर सके| एक पहलू जिसके बिना सामाजिक संगठन को संचालित किया जाना असम्भव है वह है आर्थिक पहलू जिस पर हम सभी को सनागाथानसंगठन के बनाने के उपरान्त गहन रूप से निश्चित करते हुए निरानी लेना होगा की आर्थिक रूप से संगठन को कैसे मजबूत किया जाय ताकि संगठन को चलाने के लिए पर्याप्त धन संगठन के पास हो|
यहाँ कुछ लोग इस बात से जरुर असहमत होंगे की बिना राजनीति के समाज को हम कोई लाभ नहीं दिला सकते है पर ऐसा नहीं है जब हम सामाजिक रूप से इतने शशक्त और संगठित और संख्या बल रहेगा तो राजनैतिक लोग स्वत: ही हमशे मदद लेने के लिए आयंगे|
                                                              डा० विष्णु स्वरुप”चंद्रवंशी”


टिप्पणियाँ

  1. Sir please contact me ..I am also chandravanshi .. I want to do some noble work for chandravanshi...9308967571 is my what's app number ...and calling number

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    1. आप चंद्र वंश कि किस शाखा से आते है क्योकि चन्द्रवंश का विस्तार ओ बड़ा है और हम हैहयवंश के वंसज है फिर भी आप यदि चाहते है कुछ तो हम टियर है मेरा नो ९४१५६४११५८ पर आप सहयोग ले सकते है

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