हैहयवंश समाज का मूल प्रश्न

हैहयवंश समाज का मूल प्रश्न
हमें यह लिखते और कहते हुए अत्यंत ही खेद होता है की जब भी हम समाज में हैहयवंशी बनने, लिखने और हैहयवंश के नाम पर संगठन की बात करते है तो क्यों अधूरे और आधे मन से करते है, और हम एक बार फिर अपने अस्तित्व और कर्म पर संदेह करते है| सामाजिक चर्चाए और संगठन हैहयवंश के नाम से करेंगे इतिहास भी हैहयवंश का मानेगें पर क्षत्रिय शब्द के चुनाव और कहने तथा लिखने में शर्म और कोताही करंगे| इस बात को सदैव मै हर मंच और जगह लगतार उठाता रहा हूँ| मेरे समझ में यह नहीं आता है की जब हम हैहयवंश के गौरव शाली इतिहास को जानने और समझाने लगे है और समाज के अधिकतर लोग स्वीकार कर रहे है तो फिर आधे अधूरे मन से सिर्फ हैहयवंश लिखना और कहना कितना दुर्भाग्यपूर्ण है जिसका हमें सामाजिक रूप से  सिर्फ नुकशान ही होगा| यंहा यह कहावत भी सच लगती है की अधूरे मन से किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता है| यंहा हमें अपने हैहयवंश की उस कथा का एश्सास होता है जिसमे परशुराम के पिता जन्माद्ग्नी ऋषि द्वारा जो श्राप दिया गया उसका डर अभी तक हैहयवंशियो में बना हुआ है जिसमे वंश द्वारा क्षत्रिय्ता को भुला कर इसे समाप्त कर देना का श्राप था| अब समाज के कुछ ज्ञानी लोग इस पर भी विवाद कर सकते है क्योकि वह इस कथानक को ही नहीं मानते खैर जो सच है उसको हम या आप बदल नहीं सकते है यह तो अपनी अपनी सोच और ज्ञान है| हमारा मत यहाँ पर किसी विवाद से नहीं है मै केवल इतना निवेदन समाज और सामाजिक लोगो से करना चाहता हूँ कि जब आप और हम हैहयवंशीय बनने और कहने तथा लिखने की बात करते है तो निश्चित ही हम अपने आप को चन्द्रवंश की शाखा में ही हैहयवंश का उलेख्या शाश्त्रो और ग्रंथो में है जोकि क्षत्रियों के दो वंशो सूर्य और चन्द्र वंश के शाखाओं में निहित है जब हम चंद्रवंशी क्षत्रिय के वंशज के रूप में हैहवंशिया क्षत्रिय है तो फिर सिर्फ हम हैहयवंशी ही क्यो लिखे और कहे क्यों नहीं हम अपनी पूरी वंश की गरिमा को प्रदर्शित करे हम हैहयवंशीय क्षत्रिय बने लिखे और अपने वंश के स्वर्णिम तथा गौरवशाली इतिहास को समाज के अन्य लोगो तक पहुचाये कि हम वास्तव में हम उस प्राचीन क्षत्रिय परमपरा के धोतक है जिसमे समाज को धर्म, न्याय और रक्षा के लिए हज़ारो वर्ष तक राज्य कर स्थापित किया हम ही असली क्षत्रिय वंश के वंशज है| इसमे हमें किसी प्रकार की शर्म और हिचक नहीं होनी चाहिए| यह सच जरुर है की अपने इस प्रदर्शन के पूर्व हमें अपने वंश और इतिहास का पूर्ण सच और कथा का शाश्त्रो व् ग्रंथो सहित ज्ञान भी होना चाहिए जिससे समय पडने पर हम इसे दूसरों के बीच समझा सके और संतुस्ट कर सके| जब सामाजिक रूप से हममे ज्ञान होगा तो कोई भी इसे इनकार नहीं कर सकेगा| हमें यह मीडिया और अन्य साधनों से यह ज्ञात होता रहता है की हमरे इस विचार से समाज का एक बड़ा वर्ग इस पर मुखर रूप से विचार और विमर्श करता है और अपनी क्षत्रिय्ता के अनरूप इस बात को समय समय पर उठाता रहता है| हमारा उन समाज के लोगो से निवेदन है की आप अधूरे मन और हिचक के साथ ना रहे आप अपनी भावना और क्षत्रिय्ता को समाज में उठाये और गर्व से कहे हम सिर्फ हैहयवंशीय नहीं हम हैहयवंशीय क्षत्रिय थे, है और रहंगे| आज आवश्यकता हमें अपने समाज के ब्रांडिंग करने की है जब हम धीरे धीरे अपने जाति सूचक नाम में क्षत्रिय शब्द का उद्बोधन सम्लित करना लिखना शुरू कर देंगे तो यह स्वत: ही एक वृहद हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज के गठन में अपनी पहचान बना लेगा| आइये हम सब मिलकर स्वंम लिखे कहे और दूसरों के प्रेरित करे की हम सिर्फ हैहयवंशीय नहीं हम हैहयवंशीय क्षत्रिय है| हमारा राष्ट्रीय संगठन का निर्माण भी इन्ही विचारों और कारणों से राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय हैहयवंशीय क्षत्रिय केंद्रीय संचालन समिति बनया गया था कि आज नहीं तो कल हम इस संगठन के माध्यम से अपने गौरवशाली और असीम हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज को संगठित कर सके| समय और परिस्थितियां सदैव ही परिवर्तन शील रहती है समय के चक्र में बड़े से बड़े घाव बनते है और समय के साथ भर दिए जाते है| हम भी सामाजिक गलतियों की थी जिसका परिणाम वर्षों तक समाज को देखना पड़ा पर अब समय बदल रहा है हमें भी बदलना होगा हमें पुराने रुढवादी धर्महठवादिता को छोड़ना होगा समय बड़े से बड़ा घाव और पीणा को भर देता है| हम कल क्या करते थे क्या थे कैसे थे पर विवाद और सोचने की जरुरत नहीं है हमें भी समय के साथ बदलना होगा तभी हम और हमारा समाज बदल सकेगा| तो आएये हम सभी जो अपने को हैहयवंश और महाराज कार्तवीर्य सह्स्त्राबहु अर्जुन की वंश मानते है, सभी एक साथ होकर हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज की स्थापना के साथ  अपने को सम्पूर्ण रूप से हैहयवंशीय क्षत्रिय कहे, लिखे और इसका प्रचार- प्रसार कर एक शशक्त संगठित और गौरवशाली हैहयवंशी क्षत्रिय समाज की ब्रांडिग कर आने वाले पीढ़ी को एक अनमोल सामाजिक स्थान  और पहचान दे|


[कसेरा, कांस्यकार, तमेरा,ताम्रकार, ठठेरा, टम्टा, साहा, अन्य कर्म आधारित नाम के ब्रांडिग को समाप्त कर सिर्फ और सिर्फ हैहयवंशीय क्षत्रिय नाम के ब्रांड को सामाजिक रूप से आगे बढाए, एक बार हिम्मत कर हैहयवंशीय क्षत्रिय कहना, बनना और लिखना शुरू करे धीरे धीरे यह स्वंम एक ब्रांड बन जाएगा, इसके लिखने से आप को किसी भी रूप में सामाजिक, आर्थिक के साथ अन्य आरक्षण के लाभ से सरकारी या शाशन स्तर से नही होगा बहुत सी जातीय जो स्वर्ण श्रेणी में है फिर भी आरक्षण का लाभ पा रही है यह उस जगह, परिस्थिति और अन्य कारणों से वर्ग विशेष को लाभ दिया गया होता है इसे सरकारे या शाशन या कोई भी हैहयवंशीय क्षत्रिय कहने, मानने या लिखने से खत्म नहीं करेगा]

टिप्पणियाँ

  1. हमारी मूल जाति कसेरा है /उप नाम -ठठेरा/ताम्रकार/कांसकार/ चंद्रवंशी/ आदि---जातिगत यह दायरा अपने आप वृहद तथा ष्रर्याप्त है/-

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