श्री सह्स्त्राबहु आरती
हैहयवंशी के गोत्र, देवी और देवता (हैहयवंश पुस्तक का छठवा अंश) आधुनिक समय में अधिकांश हैहयवंशी क्षत्रिय हयारण गोत्र शब्द का प्रयोग अपने नाम के साथ करते है . हयारण का अर्थ है -----" हय + अ + रण " हय ययाति बंशे कश्चिद् राजा बभूव आसम्यक प्रकारेण रण मध्ये तिस्ठ न्ति नास्माद हेतुना हयारण पद्मुच्यते . जिसका अर्थ है कि महाराज हैहय की दक्ष संताने " हयारण " कहलाई . हैहय वंशी क्षत्रिय रण कौशल में इतने अधिक निपुण थे कि रण क्षेत्र में वे हाहाकार मचा देते थे इस कारण से ये " हयारण कहलाये . यह कोई गोत्र नहीं है , केवल मात्र " पद " है . हैहय वंशियो का गोत्र कौशिक देव संकर्षण , बृक्ष वाट , वेड - यजुर्वेद , शाखा - आश्वालायन , प्रबर ३ से है . प्रथम कौशिक , द्वितीय असित , त्रित्तीय देवल , नेत्र याज्ञवल्क्य , सूत्र चौआ ९ , देवी भद्रकाली , और गुरु का नाम देवल है . देवता –कुल देव श्री शिव देवी – कुलदेवी माँ दुर्गा शाखा – चन्द्रवंश नदी – नर्मदा
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