हैहयवंशी के गोत्र, देवी और देवता (हैहयवंश पुस्तक का छठवा अंश) आधुनिक समय में अधिकांश हैहयवंशी क्षत्रिय हयारण गोत्र शब्द का प्रयोग अपने नाम के साथ करते है . हयारण का अर्थ है -----" हय + अ + रण " हय ययाति बंशे कश्चिद् राजा बभूव आसम्यक प्रकारेण रण मध्ये तिस्ठ न्ति नास्माद हेतुना हयारण पद्मुच्यते . जिसका अर्थ है कि महाराज हैहय की दक्ष संताने " हयारण " कहलाई . हैहय वंशी क्षत्रिय रण कौशल में इतने अधिक निपुण थे कि रण क्षेत्र में वे हाहाकार मचा देते थे इस कारण से ये " हयारण कहलाये . यह कोई गोत्र नहीं है , केवल मात्र " पद " है . हैहय वंशियो का गोत्र कौशिक देव संकर्षण , बृक्ष वाट , वेड - यजुर्वेद , शाखा - आश्वालायन , प्रबर ३ से है . प्रथम कौशिक , द्वितीय असित , त्रित्तीय देवल , नेत्र याज्ञवल्क्य , सूत्र चौआ ९ , देवी भद्रकाली , और गुरु का नाम देवल है . देवता –कुल देव श्री शिव देवी – कुलदेवी माँ दुर्गा शाखा – चन्द्रवंश नदी – नर्मदा
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बर्तन कारोबारियों का मूल इतिहास
बर्तन कारोबारियों का मूल इतिहास प्राचीन काल से ही जीवन यापन के लिए जिस तरह से रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता रही है ठीक उसी प्रकार जीवन यापन (भूख को मिटाने) के लिए खाद्यान्नों को पकाने और बनाने के लिए बर्तनों का आविष्कार समय के अनुसार बनता और बदलता रहा है, तथा प्राचीन काल से ही जब से धातु के बर्तनों का प्रयोग शुरू हुआ तभी से लेकर आज तक बर्तन के कार्य को बनाने और उनका व्यापार करने वाले विभिन्न स्थानों और रूपों में विभिकराते आ रहे है, समय के साथ बर्तनों के रूप और पद्धिति में बदलाव आया जिससे आज का बर्तन उद्योग और उसका कार्य और व्यापार करने वाले भी प्रभावित हुए है| इतिहास गवाह है की जब धातु नहीं थे तब मिटी के बर्तनों का प्रयोग बहुधा हवा करता था और सभी लोग उसी बर्तन का उपयोग जीवन यापन के लिए करते थे| जब से धातु खनिज का आविष्कार हुवा तब से वर्तमान तक विभिन्न धातुवो के बर्तनों का प्रयोग विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है वर्तमान में स्टील, प्लास्टिक, फाइबर और बोंन-चाइना के बर्तनों का प्रयोग शुरू हो गया है, जिसमे स्टील ने धातु के बर्तोनो का प्रयोग बहुते हो रहा है| जिसके कारण हस्थ निर्मित
सहस्त्रार्जुन जयन्ती
सहस्त्रार्जुन जयन्ती अनुयायी हिंदू हैहयवंशीय क्षत्रिय स्थान सम्पूर्ण भारत उद्देश्य सहस्त्रार्जुन जयंती एक पर्व और उत्सव के तौर पर क्षत्रिय धर्म की रक्षा और सामाजिक उत्थान के लिये मनाई जाती है। प्रारम्भ पौराणिक काल तिथि कार्तिक शुक्लपक्ष कि सप्तमी अन्य जानकारी हैहय क्षत्रिय चंद्रवंशीय है इनका गोत्र कृष्णात्रेय और प्रवर तीन है जो क्रमश: कृष्णात्रेय, आत्रेय और व्यास है, इनकी कुलदेवी माँ दुगा जी, देवता शिव जी, वेद यजुर्वेद, शाखा वाजसनेयी, सूत्र परस्कारग्रहसूत्र, गढ़ खडीचा, नदी नर्वदा तथा ध्वज नील, शस्त्र-पूजन कटार और वृक्ष पीपल है, इनका जन्म का नाम एक-वीर था, जो कृतवीर्य के पुत्र होने के नाते कार्तवीर्य व् अर्जुन तथा सहस्त्रो भुजाएँ होने का वरदान होने के कारण सह्स्त्राबहु के नाम से भी जाने जाने जाते है तथा उनकी पूजा अर्चना उनके अनुयायी सहस्त्रार्जुन के नाम से करते है| जोकि हम हैहय
हैहयवंशीय क्षत्रिय और महाराज सह्स्त्राबहु के कथानक का पुराणों में वरण आप सभी समाज के लोगो तक पहुचाने हेतु संगृहीत है इसे पढ़ आकर लाभ्वान्वित हो कुछ अध्यामातक और सकारात्मक विचार अपने और समाज के बारे में भी बाटे, इसी क्रम में स्कन्द पुराण के कुच्छ अंश परस्तुत है
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