हैहयवंश के सामाजिक संगठन निर्माण और महत्व


हैहयवंश के सामाजिक संगठन निर्माण  और महत्व

     किसी भी समाज के निर्माण और संगठन में ब्यक्ति के साथ साथ परिवार की अहम भूमिका होती है| सामाज का निर्माण के बिना ब्यक्ति या परिवार का महत्व नहीं है हम सामाजिक प्राणी के रूप में तभी विकसित हों सकते है जब हमारा समाज हों जो विकसित और संगठित भी हों, जिससे हम सामाजिक सुख-दुख के साथ सामाजिक सांस्कृतिक और रचनात्मक कार्य में पर्तिभाग करते हुए अपने सामाजिक दायित्वो का निर्वहन कर सके| समाज के लिए सामजिक कार्य करना में समय,संयम और सामर्थ्य का होना अनिवार्य है तभी हम सफल रह सकते है| समाज के निर्माण में किसी एक ब्यक्ति या परिवार की भूमिका सहयोग देने की हों सकती है पर जबतक ब्यक्तियो के समूह और परिवारों का मिलन नहीं होगा हम समाज का निर्माण नहीं कर सकते है| अब जब हम विभिन्न ब्यक्ति और परिवार एक समूह मे एकत्र होंगे तो हमारे विचार-सोच और कार्य करने का तरीका कोई जरूरी नही एक हों, ब्यक्ति के विचारों और सोच को हम न तो बदल सकते है पर समूह में बढ़ाते हुए सामाजिक निर्माण के लिए हम कार्य करने के तरीके में सकारात्मक बदलाव ला सकते है जिसमें समूह के सभी लोगो के अच्छे-विचार और सोच को रचनात्मक तरीके से सकरात्मकता लाते हुए एक कार्य-संस्कार के रूप में तैयार कर सकते है जिससे समाज का सुदृण और शशक्त निर्माण किया जा सके| सामाजिक रूप से संगठित होने के लिए हम सभी सामाजिक लोगो को सबसे पाहले अपने अभिमान को स्वाभिमान में, और ऊर्जा को शक्ति के साथ समाज को अपना समझते हुए एक दूसरे के प्रति समर्पण का भाव रखना होगा| समाज के रूप में हम किसी से भेदभाव नहीं कर सकते है, ईश्वर ने सभी को बनाया है हम समय और अपने भाग्य के अनुसार जो भी जिसेके पास है एक दूसरे से बाटते हुए सहयोग का भाव रखना ही समाज के एकीकरण के लिए आवशक है| हम सभी एक दूसरे के प्रति यदि अपने परिवार के तरह ही प्रेम और समर्पण यदि रख्खे तो समाज में एकता और सामंजस्य सदैव बना रहेगा| सामाजिक कार्य में घमंड, अभिमान, स्पर्धा और धन का ब्यक्ति में यदि प्राधुर्भाव होगा तो हम समाज के निर्माण में सफल नहीं हों सकते ही| समाज सभी के सहयोग और जोडने से ही चल सकता है|

      समाज के निर्माण में ब्यक्ति  के चुनाव की भूमिका अत्यंत ही प्रमुख विषय है| क्योकि समाजिक सेवा और कार्य सभी के बस की बात नहीं है, इसमे ब्यक्ति के अंदर सामाजिक समर्पण, समय, और धन की आवश्यकता होती है| इस प्रक्रिया को हम धीरे धीरे ही शुरू करे यही बेहतर तरीका हों सकता है जिसमे हम सामान विचार और समाजिक कार्य करने वाले की तलाश करे जो स्वेच्छा के साथ सामाजिक निर्माण में सहयोग प्रदान करना चाहते है, इसमे इतना अवश्य ही महत्वपूर्ण है की सभी के पास उपरोक्त तीनो चीजे ना हों लेकिन यदि कोई भी   गुण ब्यक्ति रखता हों तो उसे इस सामाजिक प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है, हों सकता है किसी के पास समर्पण है पर समय, धन नहीं किसी के पास समय है पर धन नहीं है या धन है समय नहीं, परन्तु समर्पण के अभाव में कोई भी ब्यक्ति  इस सामाजिक कार्य में सहभागिता पूर्ण नहीं कर सकेगा| समर्पण का भाव हमें प्रेम, शुख-दुःख का सहभागी और सहयोग की प्रेरणा देता है जो सामाजिक निर्माण में अतिमहत्वपूर्ण है| यदि हम समाज के निर्माण में हर ब्यक्ति अपने आप को अपने स्वेक्षा के साथ ५-१० ब्यक्तियो में से दो छार ब्यक्ति को जिनके पास उपरोक्त सोच-विचार और गुण है को जोडता है और उसे सामाजिक कार्य के लिए प्रेरित अकर्ता है तो हम इस प्रकार के पद्धिति को अपनाते हुए धीरे-धीरे एक बड़ा वृहद समूह इकठ्ठा कर सकंगे जो सामाजिक निर्माण में मील का पत्थर साबित हों सकता है| 

     यह कार्य सोचने और देखने में अवश्य ही असम्भव और कठिन लगता हों पर यदि हम एक से दो और दो से चार के परिवर्तन को एक समूह में जोडते जाय तो हम निशिचित ही एक शशक्त और वृहद संगठन का निर्माण कर सकते है| प्रत्तेक मनुष्य के अंदर गुण-अवगुण होते है पर यदि हम गुणों का संग्रह कर सकते है तो हमें कोई कार्य करना असम्भव नहीं प्रतीत होता है| सामाजिक कार्य करने वाले लोगो की कही भी किसी समाज में कमी नहीं है क्योकि सभी ब्यक्ति चाहते है की हमाँरा एक संगठन हों जिसका एक वृहद संस्कार , सम्मान और सामाजिक शान हों| अब जब हम संगठन कर सकने में सफल रहते है तो इसके सफल संचालन और प्रसार के लिए हम एक कार्य-ब्यवहार रूप प्रदान करने के लिए कुछ पदों का चयन करना होगा जिसके कुशल निर्देशन में संगठन के प्रकिरिया को संचलित  किया जा सके| इसके लिए हम ब्यक्ति के कार्य, ब्यवहार और गुण के आधार पर यदि सर्वसहमति से चयन आपस में मिल बैठकर तय कर ले तो अतिसुन्दर है नहीं तो हम सामान्य चयन प्रक्रिया बहुमत के आधार पर कर सकते है| परन्तु किसी भी प्रकार पदों हेतु ब्यक्ति के चयन में हमें उसके स्वभाव और गुण को ध्यान में रखना होगा अन्यथा गलत चयन होने पर सामाजिक प्रकिया का संचलन निष्क्रिय हों जाएगा और सामाजिक उद्भभव् और विकास बाधित होगा|

      अब हम सामाजिक गुणों पर भी कुछ प्रकाश डालना चाहूँगा जिसके बिना संगठन संचालित नहीं किया हा सकता है| इसमे समर्पण सबसे सरोपरी है क्योकि यदि हम स्वार्थी है तो सिर्फ अपना या अपनों का ही ख्याल रखगें जिससे धीरे धीरे  अन्य में असंतोष का भाव नेगा और संगठन बिखर सकता है| दुसरा समय यह उससे भी महत्वपूर्ण है क्योकि सामाजिक कार्य और सञ्चालन के लिए समय की सीमा हम नहीं रख सकते है किसी भी के ओ संपन्न करने में समय देना ही पड़ता है समय दिए बिना हम संगठन को चला नहीं सकते है क्योकि कोई समारोह करना है तो सभी चीजों के साथ अपना समय भी ब्यतीत करना होगा| तीसरा जिसके बिना संगठन की प्रक्रिया पूर्ण नहीं की जा सकती है, हमें कोई भी कार्य करना है तो समर्पण और समय के साथ उसे फलित करने के लिए पहले धन की आवश्यकता होगी ही हम जब कौई ब्यापार करते है तो धन के बिना नहीं कर सकते है ठीक उसी प्रकार से जब संगठन में कोई आयोजन करना है किसी कि मदद करनी है तो धन की आवश्यकता अतिमहत्वपूर्ण है| हम समर्पित बन  सकते है हम समय भी निकाल सकते है परन्तु धन एक ऐसा चीज है जिसे जोडना या एकत्र करना और फिर उसका सदुपयोग कैसे किया जाय यह उससे भी महत्वपूर्ण है| सामाजिक कार्य हेतु हम धन के एकत्र किये जाने हेतु कुछ नियम और तरीके बना सकते है जिसमे पहला तरीका यह हों सकता है की हम सभी अपने अपने सामर्थ्य अनुसार जितना योगदान दे सकते हों एक सामाजिक कल्याण कोष बनाकर उसमे एकत्र करते रहे| 

      दुसरा हम सामाजिक संगठन में जुडने के लिए एक निश्चित धन जो आसानी से प्राप्त की जा सके सभी सदस्य से प्राप्त कर कोष में जमा करते रहे| अब कुछ अन्य साधन भी हम दान और कुछ रचनात्मक कार्यकर्मो के माध्यम से सामाजिक सहयोग के लिए प्राप्त कर सकते है| जिसमे सामाजिक शुल्क माहवार/वार्षिक या एकमुश्त सदस्य के रूप में  भी बनाकर प्राप्त कर सकते है| इसके अतरिक्त हम सामाजिक कार्यों को सामाजिक लोगो के द्वारा प्रायोजित कार्यकर्मो के माध्यम से भी  एकत्र कर सकते है| यंहा हम एक छोटा सा उदहारण देते हुए एक अनुमानित गाणना कर सकते है की यदि यह मान ले की हम अपने सामाजिक निर्माण में राष्ट्रीय स्तर पर एक समय में मात्र १०० लोगो का संगठन बनता है तो यदि हम १०० लोग आपने कुशल ब्यवहार और सामाजिकता के साथ केवल १०-१० लोगो को सामाजिक रूप से संगठन में जोडता है तो हम इस प्रकार एक हज़ार लोगो को जोड़ लेगें  और प्रतेक सदस्य १०००/- रूपये का सहयोग सामाजिक कार्य के लिए देता है तो हम इस प्रकार १००० * १००० = १०,००००० लाख रुपया एकत्र कर सकते है जो इतने बड़े हैहयवंशीय समाज के लोगो से प्राप्त करने में अश्म्भव नहीं लगता है| 

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