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चंद्रवंशी: पुस्तक हैहयवंश - शारंश

चंद्रवंशी: पुस्तक हैहयवंश - शारंश : संपादकीय यह पुस्तक लिखने के पीछे लेखक कि मंशा समस्त हैहयवंश समाज को अपने इतिहास मात्र से परिचित कराना है| पुस्तक मे लिखी गयी जानकारि...

सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प

सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प प्रकृति हमें परिवर्तन का सच्चा रूप हमेशा दिखाता रहता है. परन्तु हम सभी प्रकृति के इस रूप को जानते हुए भी हम इसे अपने सामाजिक जीवन में नही ढाल पाते है| प्रकृति जिस प्रकार मौसम के रूप में हमें जाड़ा, गर्मी और बरसात से, समय को दिन और रात से, संघर्ष को अमीरी और गरीबी से, अनुभव, एह्शाश को शुख और दुःख से जीबन को जन्म और मौत से रूबरू करता है और हम इस परिवर्तन में अपना पूरा जीवन समाज के बिच व्यतीत करते रहते है| समाज के रूप में हम अपना भाग्य और किश्मत मानकर सब्र करते है और जीवन बदलते रहते है| हम इस सामाजिक परिवर्तन के लिए कभी नहीं सोचते है जबकि दुनिया में हर चीज परिवर्तित और समय के साथ बरहती रहती है और परिवर्तन के साथ  प्रगति और विकास होता है अत: हमें प्रकृति के इस परिवर्तन के रूप को समझाने की आवश्यकता है यदि हम या हम अपने समाज के उत्थान के बारे में सोचते है| उक्त कथन का अभिप्राय बस इतना  है  कि हमें अपने जीवन, कार्य, स्थान को भी परिवातित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि नयी सोच, नयी कार्य और नयी जगह के स्वरुप में हम अपने और समाज के उत्थान

हैहयवंश समाज के उत्थान की बाधाएँ

हैहयवंश समाज के उत्थान की बाधाएँ आज अपना समाज हैहयवंशी और भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन की संतान मानने का संकल्प ले रहा है और समाज जो क्षत्रिय्ता के पहचान थी को स्थापित करने में जुटा है| इस बात में कोई संसय या झूठ नहीं रह गया है हम पुरातन काल से ही अपने को जिस कारण से भी भूल गए थे इसमे कोई विवाद नहीं करना चाहिए,  अपनी पहचान को हम अपने अज्ञानता और शिक्षा के अभाव में आज तक नहीं पहचान सके थे, परन्तु जब हमें इसका ज्ञान हो  गया है तो हमें इसके विवाद में ना पद कर बल्कि इस सामाजिक स्वरुप को पुन: से स्थापित करने का प्रयास हम सभी को मिलकर करना चाहिए| समय और काल प्रकृति की ही देन है जिसमे रामायण और महाभारत के रूप और उसमे होने वाले घटनाओ से हम सीख सकते है, जो हर काल और समय के साथ सभी समाज के रूपों में घटता होगा| हम क्या थे कहा से आये और ऐसा क्यों हुआ यह प्रश्न सोचने का नहीं है| हमें वर्तमान में जीना है और इस जीवन के लिए हम सभी से जो सत्य, सुन्दर और उचित है के लिए प्रयास करना होगा| हम भविष्य में क्या होगा नहीं बना सकते है परन्तु भूतकाल में जो हुआ है उससे सीख सकते है यदि हम ईश्वर में विशवास करते है

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव दुनिया में कही भी यदि विकास और प्रगति हुयी है तो वह बिना एकता और शक्ति के संभव नहीं हुयी है| ठीक इसी प्रकार जो भी समाज आज हमसे आगे है वह एकता और शक्ति के कारण ही आगे बढे है| इस तथ्य पर हम सभी सामाजिक जन को विचार करना चाहिए| हमारे सामाजिक पिछडेपन के लिए यदि सबसे बड़ी कोई बाधा है तो हममें एकता का अभाव, हम शशक्त होते हुए भी बिखरे और पिछड़े है| आज हर तरफ लोग सामाजिक विकास और सामाजिक संगठन और उससे भी आगे बढ़कर राजनैतिक सहभागिता की बाते हो रही  है परन्तु यह सब तभी संभव हो सकेगा जब हममे सामाजिक जागरूपता के साथ – साथ एकता और शक्ति होगी| अत: सबसे पहले हमें इस दिशा में कार्य करना होगा| आज के इस व्यस्तम जीवन चर्या और भागाम्दौर भरे सामाजिक मौहोल में यह एक बड़ी चुनौती है| इससे हम सभी इनकार नहीं कर सकते है| परन्तु यदि हम सभी को अपने समाज में वास्तव में परिवर्तन लाना है तो इन सभी बाधाओं को देखते हुए समाज के हर व्यक्ति को अपना कुछ ना कुछ समय सामाजिक एकता और समरसता के लिए देना पडेगा| हममे न तो शक्ति की कमी  है ना बुद्धी की यदि कमी कही है तो हम एक दूसरे को समय स

हैहयवंश की जागरूपता एक सुखद एहसास

हैहयवंश की जागरूपता एक सुखद एहसास समाज में हो रहे बदलाव और सक्रियता को आज हर तरफ देखकर हम सभी को खुश और गौरवान्वित होना चाहिए कि आज हैहयवंश की चर्चा पूरे जोर शोर से हर तरफ हर रूप में हो रही है| समाज के लोग में हैहयवंश की जुड़ाव और अपने प्रदर्शन द्वारा समाज को बदलने की भूख हमें दिखाई दे रही है| यह स्थिति निश्चय ही हम और आप के साथसम्पूर्ण  हैहयवंश समाज के सामाजिक लोगो के द्वारा अपने अपने स्तर से किये गए अथक प्रयास का परिणाम है| इस विषय पर हमारा ब्यक्तिगत अनुभव और पिछले कुछ समय से वर्तमान तक लगातार लोगो का पर्र्सपर संपर्क, उनके विचार और बातचीत, चर्चाए जैसा  सामाजिक लोग कर रहे है जिसमे यह दिखाई देता है कि जो लोग कल तक अपने को हैहयवंश के जाति का होने और कहने में हिचक महशुस  करते थे आज लोग खुलकर इसका समर्थन ही नहीं बल्कि अपने सामाजिक परिवेश में भी खुलकर बहस और चर्चाए करने लगे है और अब तो अन्य समाज का एक बड़ा वर्ग हमारे वंश को जानने और पहचानने लगा है और इसके साथ साथ हमारे क्षत्रिय्ता को स्वीकार करने लगा है| हमें यह जानकार अत्यन ही आश्चर्य और सुखद का अनुभव हो रहा है और शायद आप सभी समाज के लो

अंतर्जातीय विवाह सामाजिक समस्या

अंतर्जातीय विवाह सामाजिक समस्या अभी कुछ दिन पूर्व हमारे समाज के एक सामजिक कार्यकर्ता ने इस पर एक प्रशन उठाया था|हमारे हैहयवंश समाज के लिए अवश्य ही एक चिंता का विषय है| जन्हा आज हमारा हैहयवंश क्षत्रिय समाज आपने अस्तित्व और संगठन के लिए प्रयास रत है हमारे कुछ सामाजिक परिवार में अंतरजातीय विवाह का प्रचलन बढ़ना  निशिचित ही चिंता का विषय है| वैसे तो हर व्यक्ति को जीने, सोचने और कुछ भी करने से हम नहीं रोक सकते है यह सवंधानिक / सामाजिक आज़ादी का प्रशन है| परन्तु हम एक सभ्य समाज के लिए ही अपने संस्कार, और स्वजाती के लिए सामाजिक रूप से एक वर्ग या जाति को मानते है यह प्रकृति की देन  है की सभी जीव एक जैसे और एक वर्ग में नहीं रह सकते है सामाजिक भिनन्ता  और संस्कार  हमें जीने की कला सिखाती है और हम सामाजिक मूल्यों को नहीं छोड़ सकते है नहीं तो हमारे और अन्य प्राणी में अंतर ही क्या होगा| अब प्रशन है की सभी मानव और सभी सामाजिक प्राणी है तो फिर भेद भाव क्यों सभी की अपनी इच्छा और अपनी आज़ादी है कही भी वो किसी से पारिवारिक सम्बन्ध कर सकते जहा हुन्ये अच्छा विकल्प या प्यार – सम्मान मिलता है यह बात भी सही 

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव दुनिया में कही भी यदि विकास और प्रगति हुयी है तो वह बिना एकता और शक्ति के संभव नहीं हुयी है| ठीक इसी प्रकार जो भी समाज आज हमसे आगे है वह एकता और शक्ति के कारण ही आगे बढे है| इस तथ्य पर हम सभी सामाजिक जन को विचार करना चाहिए| हमारे सामाजिक पिछडेपन के लिए यदि सबसे बड़ी कोई बाधा है तो हममें एकता का अभाव, हम शशक्त होते हुए भी बिखरे और पिछड़े है| आज हर तरफ लोग सामाजिक विकास और सामाजिक संगठन और उससे भी आगे बढ़कर राजनैतिक सहभागिता की बाते हो रही  है परन्तु यह सब तभी संभव हो सकेगा जब हममे सामाजिक जागरूपता के साथ – साथ एकता और शक्ति होगी| अत: सबसे पहले हमें इस दिशा में कार्य करना होगा| आज के इस व्यस्तम जीवन चर्या और भागाम्दौर भरे सामाजिक मौहोल में यह एक बड़ी चुनौती है| इससे हम सभी इनकार नहीं कर सकते है| परन्तु यदि हम सभी को अपने समाज में वास्तव में परिवर्तन लाना है तो इन सभी बाधाओं को देखते हुए समाज के हर व्यक्ति को अपना कुछ ना कुछ समय सामाजिक एकता और समरसता के लिए देना पडेगा| हममे न तो शक्ति की कमी  है ना बुद्धी की यदि कमी कही है तो हम एक दूसरे को समय स

हैहयवंश का स्वाभिमान

हैहयवंश का स्वाभिमान कभी  – कभी अच्छाईयों और सत्यवादिता के साथ न्याय  रूपता व् सामजिक हठ धर्मिता भी विकास में बाधा बन जाते है| अब हम इसे विधि का विधान या फिर सामजिक युग परिवर्तन ! संसार जो भी प्राणी या प्राणी के रूप स्वंम  भगवान ने ही अवतार लिया सभी का निश्चित समय और दिन है कि उसे मिटना या संसार से जाना ही है क्योकि जो आया है उसे जाना है जो बना या बनाया गया है उसे मिटना या खत्म होना है जो आज है कल नहीं था और जो आज है भी उसे कल नहीं रहना है| परन्तु यह भी सत्य है की कुछ मूल चीजे होती है जिसका केवल स्वरुप ही बदलता है उसके कार्य और निरंतरता  बनी रहती है जैसे कि जल, हवा और जीवन जिसे हम सर्वशक्तिमान कहते है| जिस प्रकार सत्य को हम नहीं मिटा सकते है चाहे उसे कितना भी छिपाया या झुठलाया जाय पर एक ना एक दिन सच सामने आ जाती ह| समय परिवर्तनसील है इसी कारण  युग परिवर्तन हुआ और सतयुगस से  कलयुग तक का युग निर्माण बना| परिवर्तन संसार का नियम है, इसी कारण ऋतुये बनी और उसी अनुसार मौसम का परिवर्तन होता है और हमें प्राकृतिक रूप में सभी चीजे प्राप्त है| समय का चक्र सभी के जीवन काल में आता है चाहे वह सा