हैहयवंश निर्माण की सार्थकता



हैहयवंश निर्माण की सार्थकता
मित्रों, आज आज़ादी के बाद इतने वर्षों में हम हैहयवंशियो को अपनी समाज की एकता और संगठन बनाने के लिए निरंतर ही संघर्ष करना पड रहा है| इसी कड़ी में मेरे द्वारा भी अपने स्तर से लेखनी और कुछ सामाजिक कार्यकर्मो के माध्यम से कुछ ना कुछ प्रयास लगातार किया जाता रहा है, हमें इस कार्य में कुछ फलीभूत सफलता भी मिली है जिसमे मेरे द्वारा अंतरास्ट्रीय स्तर पर इलेक्ट्रोनिक इन्टरनेट के माध्यम से पढ़े और आम लोगो तक पहुचने वाले साहित्यों, इतिहास और कथाओ में अपने इतिहास जीवनी और कथाओ को भारत डिस्कवरी के वेबसाइट पर पहचान बनाया है कुछ रोचक प्रसिद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक वेबसाइट पर भी हमाँरे समाज के जीवनी, कथाओ, चालीसा और आरती को संकलित किया गया है जिसके माध्यम से ना सिर्फ अपने समाज के लोग बल्कि अन्य समाज के लोग हमें जान और पहचान रहे है और हमारे समाज के बारे में जान रहे है हमारे पास उनके कमेन्ट और सुचना लगातार आती रहती है यह एक अत्यंत ही बड़े हर्ष की विषय है इस कार्य में हम समाज के लोग और भी आगे ले जा सकते है यदि इस वेबसाइट को अधिक से अधिक अपने समाज के लोगो द्वारा प्रचारित और हिट करे तो यह इन्टरनेट पर सर्च में सबसे ऊपर रहे और जैसे ही कोई haihayvanshi  या  sahstrabahu  या khatriya शब्दों को खोजता या पाना चाहता है तो उसे तुरंत ही प्राप्त हो और वह ना चाह कर भी इसके बारे में जाने पढ़े और समझे, बस इसके लिए हमें इसे लगातार हिट और सर्च कर ज्यादा से ज्यादा पापुलर करना है क्योकि इन्टरनेट के तकनिकी में इसका एक योगदान है की जिसे सबसे ज्यादा पढ़ा, खोजा और सर्च किया जाता है वह उस श्रेणी में सबसे ऊपर दिखाई देगा और खोजने में  पहले दिखाई देता है और सच यही है आज या आने वाले समय में इन्टरनेट सूचनाओ और जण सम्पर्क का अनूठा और सबसे कारगर माध्यम होगा| अत: इस कार्य में इतना सहयोग समाज के लोग अवश्य करे| हमारा समाज के दूसरों लोगो से भी यही निवेदन है की वह भी अधिक से अधिक अपने समाज, हैहयवंश और सह्स्त्राबहु से सम्बन्धित सामग्री, इतिहस, कथाओ और समाजिक चीजों को इलेक्ट्रोनिक माध्यम से इन्टरनेट पर लाये और हो सके तो वेबसाइट बनाकर इसका प्रचार और प्रसार करे ताकि अधिक से अधिक लोग इससे जुड़े और सामाजिक स्वरुप को जन जन तक फ़ैलाने में सहभागी बने| ऐसा नहीं है कि यह कार्य केवल मेरे द्वारा ही किया जा रहा है| हमारे जैसे बहुत से सामाजिक लोग, संगठन और संसथाये है जो इस दिशा में कार्य कर रही है, बहुत सारे सामाजिक वेबसाइट जो हैहयवंश, सहस्त्रबाहू, चंद्रवंशी, राजपूत, सोम वंशीय क्षत्रिय आदि नाम से बनी हुयी है जिससे हम सामाजिक जानकारी प्राप्त कर सकते है| साथ ही बहुत से लोग इस दिशा में कार्य करना भी चाह रहे  होंगे, मेरा ही नहीं हम सभी का यही उद्देश्य होना चाहिए की इस आधुनिक परिवेश में इलेक्ट्रोनिक इन्टरनेट मोबाइल आदि के माध्यम को सामाजिक विकास का एक हथियार बना कर सामाजिक विकास में योगदान दिलाए| कहा जाता है की सफलता पाने के लिए हर व्यक्ति को अपनी कला और ज्ञान को प्रदर्शित करने के लिए किसी मंच या आधार की जरुरत है जन्हा वह अपनी कला, बुधीमता और कार्य का प्रदर्शन कर सके सफलता को ढूढ  सके| आज हमें इस आधार और मंच को इन्टरनेट के माध्यम से कई तरह के माध्यम उपलब्ध है जिसमे फेसबूक, ट्विटर आदि के अलावा इ-ब्लॉग एक बड़ा माध्यम है जिस पर कम से कम अपनी ज्ञान और कला लेखनी को लिखकर सफलता पूर्वक प्रदर्शन कर सकते है और सामाजिक विकास में अपना योगदान दे सकते है| आज इन्टरनेट एक जन संपर्क और जुडने का एक अच्छा प्लेटफार्म है जिसका हम सामाजिक लोगो प्रयोग कर फ़ायदा अवश्य ही उठाना चाहिए| इन्टरनेट के माध्यम से हम एक सही और उचित तरीके से संवाद और सामाजिक चर्चाए कर सकते है| बस इसके लिए हमें सही सोच और गुण रखना है किसी की सोच या ज्ञान पर सही बहस कर हम एक सही निर्णय लेकर सामाजिक विकास में योगदान पा सकते है| इन्टरनेट के माध्यम से वर्तुअल रूप से एक दूसरे के पास रह सकते है और अलग अलग प्रकार के समूह ग्रुप बनाकर अनेक प्रकार के कार्य संपादित कर सकते है| इस तरह की ऐसी बहुत सी छोटी छोटी चीजे और बाते है जिससे हम हैहयवंश क्षत्रिय समाज के निरंतर प्रगति के पथ ले जाते हुए एक सुदृढ़ समाज का निर्माण कर सकते है| इसे और कैसे प्रभावी और विकसित किया जा सकते है इन्ही पहलुओ पर मेरे विचार इस प्रकार है| वास्तिवकता तो यही है कि हमरा हैहयवंश समाज शुन्य से शिखर के तरफ लाने का है आज से २०० से २५० वर्ष पहले शायद ही हम हैहयवंश के होने की कल्पना कर सकते है जन्हा तक हमें शाक्ष्य का आधार है या हमारे पास पूर्वजो के पठन सामग्री है के अनुसार १८५० से लेकर १९०० तक के बहुत ही जीड छीड अवस्था के कुछ कागज़ या पत्र है जिसके आधार पर हम यह कह सकते है की हैहयवंश क्षत्रिय समाज की परिकल्पना अवश्य थी| जैसे जैसे समाज का विकास और उदय होता गया हम तब से लेकर आज तक शशत ही हैहयवंश समाज की विकास और संगठन की बात हो रही है यह अवश्य ही सत्य है की सामजिक पिछड़ापण और अशिक्षा ने हमें शुन्य में रख्खा और हम चाह कर भी पिछले ५० वर्षों में संगठित और विकास नहीं कर सके| परन्तु आज यह भी सच है की आज वह शुन्य धीरे धीरे ही सही पर बढ़ रही है आज हम कह सकते है की हम अब शुन्य नहीं है पर यह भी सही है की जितना हमें विकास या आगे बढ़ाना चाहिये था वह नहीं हो सका है| इसके कई नहीं अनगिनत कारण है जिसमे सबसे बड़ा कारण हमारी अशिक्षा और अज्ञान है क्योकि कोई भी समाज जबतक पूर्ण रूप से सही ज्ञान और शिक्षित और वह भी सामाजिक शिक्षा और ज्ञान नहीं करेगा तबतक वह आगे नहीं बढ़ सकता है| दुसरा कारण शिक्षा होने के बाद भी सामाजिक दूरी और भेद-भाव विकास में सबसे बड़ी बाधा बनी हुयी है लोग शिक्षित और नौकरी में आने के बाद व् धनवान होने के बाद अन्य सामाजिक स्वजनों परिवारों से दूरी बना ले रहे है जब कि होना यह चाहिए की यदि आप शिक्षित और ज्ञानी हो गए है या  पा लिए है या धनवान हो हो गए है तो शिक्षा या धन को  बाटने से वह कभी नहीं घटेगा खास कर शिक्षा और ज्ञान तो और भी बढ़ता है यदि कोई सामाजिक शिक्षा और ज्ञान आप के पास है तो उसके बाटने और वितरित करने से अन्य लोगो को तो फ़ायदा होगा ही आप को भी अपना ज्ञान बढाने में मदद मिलेगी| अन्य कारणों में हमारी कार्य पद्धिति और रुढवादिता तथा अपने अभिमान की कारण हमें शिक्षित समाज के लोगो और समाज से दूर रख रहा है जो सामाजिक लोग परिवार अशिक्षित और अज्ञानी है उन्हें चाहिए ही आगे बढ़ कर उन शिक्षित, बुद्धीजीवी लोगो से जुड़े और मिलकर सामाजिक विकास में योगदान करे| जन्हा ज्ञान पाने के लिए उठना और कुछ करना पडेगा वही हम शिषित या ज्ञानी लोगो को शिक्षा बाटने के लिए हमें कुछ झुकना भी पडेगा ताकि लोग हमें आसानी  से पा सके| समाज में शिक्षा के अभाव को शीघ्र अति शीघ्र दूर करना होगा| सामाजिक भेदभाव, अमीरी-गरीबी, उंच-नीच, जाति उपनाम का भेद, रहन सहन का भेद, रहन स्थल दूरी का भेद, भाषा का भेद इस तरह के अनेक भेद भाव है जो हमें सामाजिक रूप से एकत्रित होने संगठित होने सामाजिक बाधा बने हुए है| हमें यदि वास्तव में सामाजिक विकास करना है तो इन तवाम भेद भाव को पहले भूलना होगा तभी हम विकास कर संकेगे| हमारे कुछ सामाजिक लोगो द्वारा एक रूप इकनाम से एक पहचान बनाने की एक बडी पहल भी हो रही है जिसमे हम भी सहमत है परन्तु केवल एक नाम से पहचान पाकर बहुत कुछ नहीं प्राप्त कर सकते है इस मुहीम में समाज के कुछ वर्ग असहमत होते हुए दूरी बना रख्खे है जिसका कारन सामजिक शिक्षा ही है| और सामाजिक विकास और संगठन में बाधा हो रही है| देश में हर राज्य में हम उपस्थित है और हर राज्य में हर राज्य के लोग विस्थापित होकर रह रहे है ऐसे बहुत से लोग है जो रहने वाले दूसरे राज्य के है पर अपना निवाव आवास दूसरे राज्य में बना लिया है परन्तु हर राज्य में हमरी उपस्थिति होते हुए भी हम एक दूसरे से अनजान है| अब इस अनजान रूप और अपनी हर राज्य में उपस्थिति होते हुए भी हम ना तो सामाजिक रूप से विकास कर पा रहे है ना एक दूसरे से जुड पा रहे है इस समस्या पर गहन और मूलरूप से विचार करना होगा की शिक्षा के साथ साथ हमें क्या करना चाहिए की हमाँरा सामजिक विकास और एक दूसरे से जुडने में सहायक हो| हमरे विचार से लेखन, कला का प्रदर्शन, प्रतियोगीयों में प्रतिभाग कर, खेल में भाग लेकर पहले अपने आप को स्थापित करे फिर जब एक उचित मंच मिले तो अपने सामाजिक रूप को भी प्रचारित प्रसारित करे की हम एक हैहयवंशी क्षत्रिय परिवार से सम्बन्ध रखते हुए जो भी उपनाम लिखते है| जब हम एक आईकान के रूप में जाने जाते है तो देश के सभी लोग हमें देखते जानते पहचानते है| इस प्रकार जब कोई भी अच्छा काम हमारे समाज के किसिस भी ब्यक्ति के द्वारा होगा तो हमरा भी सामाजिक अभिमान बढेगा लोग हमें इज्जत से जानेगे और मानेंगे| इस दिशा में ऐसा नहीं है की हमारे हैहयवंशी क्षत्रिय समाज में आईकान के लोग किसी ना किसी क्षेत्र में है हम चाहेंगे की वह जिस भी कला, खेल, साहित्य, पत्रकारिता पेशा या राजनेता हो वह इस प्रकार के कार्यों द्वारा अपने समाज को आगे लाने और सामजिक मूल्यों को बढाने अपना योगदान समाज को विकसित करने में अवश्य करे, क्योकि बूंद बूंद से सागर बनता ई और जब कुछ लोग आगे आयंगे और करंगे तो उसका अनुशरण समाज में पीछे आने वाल्व लोगो के लिए प्रेरणादायी होगा| हर समाज की यह चाहत रहती है की वह अलग दिखे यही कारण है की हम भी अपने स्वरुप को अलग पहचान बनाने के लिए हैहयवंश क्षत्रिय सामाजिक स्वरुप को बनाने में अपने अपने प्रयास से लगे हुए है| और यह प्रयास तभी शर्थक होगा जब हम एक दूसरे के सहयोग, संपर्क और साथ चलते हुए विचारों के आदान प्रदान करते हए इसे इसे एक सही मुकाम तक पहुचा सके| आज के समय में दुरिया, समय और साधन के माध्यम बहुत से है बस हमें इसका सही तरीके से उपयोग करना शिखना है ताकि हमरा भी सामाजिक विकास हो सके और हम संगठित हो सके और अन्ने वाली पीढ़ी को एक नई सामजिक स्वरुप दे सके|

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