सहस्रार्जुन जन्मोत्सव पर विशेष

 सहस्रार्जुन जन्मोत्सव पर विशेष

हैहयवंश समाज के बंधुओं युग परिवर्तन ही सामाजिक जीवन का नए परिवेश धारण करने का मंत्र सिखाता है| जिस प्रकार हम प्रकृति के ऋतुओं के परिवर्तन होने पर उसी के अनुरूप वस्त्र आदि धारण कर अपना जीने का जीवन सुगम बनाते है| ठीक उसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन की स्थिति भी हमें अपने जीवन जीने के रूप-रंग और ढंग बदलने के लिए प्रेरित करती है| आज अपना हैहयवंश समाज काल के कुचक्र में फँसकर उससे बाहर निकलते हुए नए परिवेश को धारण करने के लिए तत्पर है| अतः: हम सभी समाज जन का यह कर्तव्य बनता है कि हम इस सामाजिक परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार करते हुए, हैहयवंश समाज के नए स्वरूप को ग्रहण करें| जिससे समाज में किसी को किसी प्रकार का कोई भेद-भाव ना किया हो| हम इस प्रकार के समस्त भेद-भाव को शिक्षा, संस्कार और अपने गौरवशाली इतिहास के साथ सुदृढ़ कर आगे बढे| इसके लिए हमें अहम्, वहम, रूढ़ीवादी सोच, और कर्म के प्रकार के भेद को मिटाते हुए अपने स्वभाव और आचरण में बदलाव लाये जाने की जरूरत है, जिससे समाज संगठित और विकसित हो सके|

उपरोक्त के लिए हम कुछ छोटे छोटे स्वयं के परिवर्तन जीवन-शैली और जीवन के आयाम के साथ परिवार में लाने का प्रयास करें, जिससे समाज स्वतः: इस परिवर्तन को स्वीकार करने लगेगा| हमें  निम्न अतिशयोक्ति पूर्ण बात जो राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने कही याद करना चाहिए, जिसपर हमारे समाज का विकास संभव है, जैसे देश के स्वतंत्रता में इसका योगदान था|

शिक्षा-संस्कार का प्रचार – प्रसार और शिक्षा की अनिवार्यता:-

 हम स्वयं शिक्षा ग्रहण करें, इसके महत्व को समझे चाहे हम कोई भी कार्य कर रहे हो| अपने बच्चों को अपनी सामर्थ्य अनुसार उच्च से उच्च शिक्षा दिलाये, नहीं भी तो कम से कम स्नातक तक की शिक्षा दिलाने का प्रयत्न करे| इस प्रकार अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए शिक्षा को अनिवार्य रक्खे| यदि कोई परिवार का सदस्य किसी कारण से शिक्षा से अछूता रह गया है, तो प्रयास करे की वह भी जितनी शिक्षा ले सके वह करें| आज कल बहुत से माध्यम शिक्षा के है| शिक्षा और सिख के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती है| जब आप  और आप का परिवार शिक्षित होगा तो संस्कार स्वतः: उस परिवार में बनेगा| क्योंकि सभी को अच्छाइयों  और बुराइयों का ज्ञान रहेगा, और आदर-सम्मान  भी करना सीख सकेंगे| इससे हम जब स्वतः: इसका पालन करते है तो हम दूसरों को इसके लिए एक प्रेरणा बनता है और दूसरे इससे प्रेरित होते है, और हम एक उदाहरण भी बन सकते है

हम सभी हैहयवंशी क्षत्रिय परिवार को मानने वाले और राज राजेश्वर श्री सहस्त्राबाहू अर्जुन का अपने को वंशज मानने वाले, जिनकी इन दोनों में आस्था है| साथ ही वह अपने को क्षत्रिय कुल वंश में जन्म पाकर अपने को गौरवशाली समझते है, उन्हें वंश की परम्परा अनुसार- 

  • सर्वप्रथम जिन परिवारों में राज राजेश्वर श्री सहस्त्राबाहू अर्जुन महाराज का चित्र अपने घर के पूजा स्थल या अन्यत्र कही स्थापित नहीं है, उन सभी परिवारों को चाहिए की राज राजेश्वर श्री सहस्त्राबाहू अर्जुन का चित्र समुचित स्थान पर अवश्य लगाये|
  • राज राजेश्वर श्री सहस्त्राबाहू अर्जुन की चित्र की स्थापना उपरान्त सभी समाज के परिवार के लोग हिन्दू धार्मिक संस्कारों में पूजा की तरह अन्य देवी देवताओं की पूजा के साथ राज राजेश्वर श्री सहस्त्राबाहू अर्जुन की विधिवत पूजा अर्चना करें| यदि पूजा नहीं भी कर सकते है तो कम से कम शाम को उनके चित्र के सम्मुख एक दीपक अवश्य जलाये| इस प्रक्रिया में घर/परिवार के लोगों विशेषकर छोटे बच्चों को अवश्य शामिल करें| जिससे वह इस अचार-विचार और संस्कार से प्रेरित होते रहे|
  • जिन परिवारों में हिन्दू धार्मिक पूजा का महत्व समझते है, उन परिवारों के लोगो को चाहिए की राज राजेश्वर श्री सहस्त्राबाहू अर्जुन की पूजा अर्चना उनके श्लोक, मंत्र और चालीसा के साथ कथा का वाचन भी करे| इससे परिवार के सभी सदस्य और आस-पास के लोगों के बिच राज राजेश्वर श्री सहस्त्राबाहू अर्जुन के प्रति आस्था और श्रद्धा बनेगी| तथा अन्य समाज के लोग भी इससे प्रभावित और जान सकेंगे|
  • राज राजेश्वर श्री सहस्त्राबाहू अर्जुन के इस मंत्र का जाप एक माला नित्य करने के लाभ को खुद समझ पायेंगे|

ऊँ कार्त्यावीय विद्य्ह्माहे चक्रदेवाय: धीमहि तन्मयो सहस्त्राबाहू प्रजाति

  • हर परिवार के सभी सदस्यों को हैहयवंश की संस्कार और इतिहास का ज्ञान उपलब्ध सन-साधनों, पुस्तकों और मीडिया के माध्यम से जानने का प्रयास करे और इसका प्रचार – प्रसार भी करें| इससे अपने समाज के क्षत्रियता की पहचान स्थापित हो सकेगी|
  • हम सभी अपने पूजा स्थल पर राज राजेश्वर श्री सहस्त्राबाहू अर्जुन के चित्र के साथ साथ इनके कुल गुरु भगवान दतात्रेय का भी चित्र स्थापित करें| साथ ही अपने  कुल देवी और कुल देव क्रमशः: महा माया (दुर्गा) और शिव जी का भी चित्र लगाये|
  • आराध्य देव भगवान के जन्मोत्सव  के अवसर पर भण्डारा का आयोजन कर दिन-दुखियों और गरीबो को खाना खिलाये|

 जीवन का आदर्श सांचे में ढला पुरजा नहीं है, वृक्ष पर खिला पुष्प है. वह बटन दबाते ही खिंच जाने वाला फोटो नहीं, ब्रश और उंगलियों की कारीगरी से धीरे-धीरे बनने वाला चित्र है. -कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’

 हम अपने वंश/जाति की परम्परा अनुसार श्री राजेश्वर के चित्र सहित इनके गुरु श्री दतात्रेय भगवान का भी चित्र स्थापित करें| साथ ही  क्षत्रिय जोतक चीजों के भी वास्तु या चित्र जैसे तलवार, भाला, बन्दुक आदि| अपने घर, गाडी वाहन आदि पर क्षत्रिय जोतक स्टीकर या हैहयवंश या  हैहयवंशी क्षत्रिय लिखाये| इन सभी का मात्र एक उद्देश्य अपने वंश/जाति का प्रचार-प्रसार एवं सामाजिक जन-जागरण है| अपने घर/परिवार और सगे सम्बन्धी तथा अन्य समाज के लोगों के बीच खुल कर अपने वंश और संस्कार का गुणगान और प्रचार प्रसार करें| हम जो है उसे कहने में कोई हिचक नहीं करना चाहिए| हम कब तक अपने वंश/जाति को दुनिया से छिपाते रहेंगे| अतः: सत्य के साथ चले और अन्य समाज की भाँति अपना सर उठा कर शान से जिए| उपरोक्त सभी सुझावों में आप किसी का एक भी पैसा अनावश्यक रूप से खर्च नहीं होगा, नहीं इसमें कोई मित्याब्य्ता है| समाज आप का है, थोड़ा साहस व् श्रम और प्रयास सभी मिलकर यदि करें तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है| हम अपने वंश/जाति के जानकारी और इतिहास के लिए अपने और अन्य लोगों द्वारा बहुत से पुस्तक और ग्रन्थ लिखे गए है| उनका अवलोकन करें, खुद पढ़े और दूसरों को पढाये| पर यह प्रयास रहे इसके शुरुवात स्वयं से करें, परिवार में सबसे पहले सभी को इसके लिए जागरूक करें, फिर अपने सगे-सम्बन्धी  में इस हेतु चर्चा और धार्मिक आयोजन में योगदान करें|

 जब हम अपने हैहयवंश क्षत्रिय समाज के वंश परम्परा और इतिहास का अध्ययन करते हुए ज्ञान प्राप्त कर लेंगे तो हमें स्वतः: यह जिज्ञासा होगी कि हम उससे सम्बन्धित तीर्थ स्थलों और जगहों की यात्रा अन्य देवी देवताओं की तरह कतरे| इससे क्रम में हैहयवंशी क्षत्रिय समाज में आस्था रखने वाले समाज के सभी लोगों को कम से कम हैहयवंश के दो स्थानों का दर्शन जीवन में एक बार अवश्य करें:

१. महेश्वर तीर्थ स्थल, जिला – खरगोन, मध्य प्रदेश 

२. महामाया मंदिर (दुर्गा देवी) रायपुर, मध्य प्रदेश

३. सहस्त्रबाहु मंदिर, सासाराम, बिहार 

इसके अतिरिक्त भी हैहयवंश के राजाओं द्वारा अनके धर्म और पर्यटक स्थल बनाये गए है, जिनकी जानकारी प्राप्त करते हुए आप इस जगहों की भी यात्रा कर सकते इससे किसी प्रकार की हानि नहीं है जब आप हिन्दू देवी-देवताओं और अन्य पर्यटक स्थलों को घूम सकते है तो फिर अपने वंश/जाति  से सम्बन्धित जगहों का देशाटन भी हम आप करते है तो इसके दो लाभ होंगे, एक तो आप को अपने वंश/जाति की परम्परा व् संस्कार का ज्ञान बढेगा दुसरा आप को दर्शन के अध्यात्मिक लाभ भी मिलेंगे| जिस प्रकार हम अपने हिन्दू समाज के कई तरह के धार्मिक और व्रत, त्यौहार और पर्व के साथ समारोह का आयोजन करते है, ठीक उसी प्रकार हम अपने आराध्य राज राजेश्वर की जयन्ती भी समारोह के रूप में अपने घर/परिवार, समाज के गाँव, मोहल्ला, कस्बा, नगर, जिला और प्रदेश और देश के स्तर पर और सामूहिक रूप से भी कर सकते है| इससे हमारे साथ दूसरे समाज के लोगों को भी हमारे वंश/जाति के संस्कार का ज्ञान होगा और वह हमारे समाज को भी जान सकेंगे| हमारे हिन्दू समाज में धर्म-संस्कार को मानने वाले लाखों देवी-देवता है| जिनका हम अपनी इक्षा  अनुसार पूजा अर्चना और सत्संग कथा का आयोजन प्रायः: करते रहे है| इसी क्रम में हम यदि अपने वंश/जाति धर्म और इतिहास की मान्यताओं के अनुसार विचार करें, तो हम अपने समाज के लिए भी धार्मिक सत्संग / कथा का आयोजन कर सकते है| जिसमें हम वंश/धर्म और संस्कार के अनुरूप इस आयोजन ना सिर्फ अपने परिवार और सगे संबंधियों के बीच बल्कि सर्व समाज के बीच एक सकारात्मक संदेश दे सकते है| इससे हमारी मान्यता और भी सुदृढ़ बन सकती है|

 

इस प्रकार के आयोजन हम अपने घर/ नगर/ जिला और शहरों में जिस जगह हमारी समाज की संख्या ज्यादा है, यह आयोजन भव्य रूप से वर्ष में एक बार कर सकते है| 

क्षत्रिय से उत्कृष्ट कोई नहीं है. इसी से राजसूय यज्ञ में ब्राह्मण नीचे बैठकर क्षत्रिय की उपासना करता है. वह क्षत्रिय में ही अपने यश को स्थापित करता है.

-बृहदारण्य उपनिषद्

 

अपने परिवार में शिक्षा को प्राथमिकता दे

अंत में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम सभी अपने साथ साथ अपने परिवार में शिक्षा को प्राथमिकता दे और सभी शिक्षा ग्रहण कर रहे लोगों को कम से कम स्नातक तक की  शिक्षित अवश्य करें| एक शिक्षित परिवार कई परिवारों और समाज के निर्माण में अहम् भूमिका निभा सकता है| इस प्रकार जब सभी परिवार समाज के लोग शिक्षित हो जायेगा तो हम स्वतः: अपने वंश/जाति की क्षत्रियता को स्थापित कर सकेंगे| शिक्षा मात्र ज्ञान और नौकरी के लिए ही जरूरी नहीं है| शिक्षा का प्रभाव स्वयं के साथ पुरे परिवार और समाज पर भी पड़ता है| शिक्षा से हमें अच्छाई और बुराई  का ज्ञान होता है, जिससे हम चीजों और सूचनाओं को आसानी से समझ सकते है और हमें दूसरों पर निर्भर भी नहीं रहना पडेगा| शिक्षा एक ओर जहाँ नौकरी के अवसर प्रदान करेगा दूसरी ओर हम अपने व्यवसाय और कार्य  को भी अच्छी तरह से संभाल कर अच्छे से अच्छा लाभ प्राप्त कर सकता है|

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