हैहयवंश समाज को आज क्ष से क्षत्रिय के पहचान की जरुरत
हैहयवंश
समाज को आज
क्ष से
क्षत्रिय के पहचान की जरुरत
|
हैहयवंश समाज के कुछ कर्मठ और आशावान सामाजिक बंधुऔ के द्वारा समाज को आज
से लगभग २५-३० वर्षों से किये जा रहे समाज में सुधार और उसके प्रचार-प्रसार जिससे हमारा
समाज एक सुद्रिड सामाजिक संगठन का स्वरुप बन सके और हमारा भी समाज अपनी प्रतिष्ठा
अनुसार आगे बढ़ सके| जिसका परिणाम है कि हम
सभी के प्रयास और कार्य से अपना हैहयवंश क्षत्रिय समाज एक ऐसे जगह मुकाम बनाते हुए खडा हो चुका है जिसके
स्वरुप में ज़रा सी लापरवाही या सामाजिक
छेड़-छाड़ से वर्षों की तपस्या और सपना बिखर सकता है| जिसका एक बड़ा कारण आज के सामाजिक ताने – बाने में कुछ लोगो के हस्तक्षेप किया जाना है| समाज
के कुछ लोगो के द्वारा ब्याग्तिगत लाभार्थ और स्वार्थ के
कारण किये जा रहे कार्य जिसके कारण हमारा सामाजिक संगठन फिर से कही अर्श से फर्श
पर ना आ जाय| अत: सामाजिक बुद्धिजीवियों और सामाजिक आन्दोलन को सफलता के साथ आगे बढाने
वाले सामाजिक बंधुओ को इस पर गहन विचार किये जाने की जरुरत है| समाज के कुछ लोग आज भी वही पर ठहरे रहने चाह रहे है जन्हा
से हम सभी ने समाज को निकाल कर लेकर आये है| समाज का एक उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा स्थापित हो, और हम अपने
रुध्वादी – हठधर्मिता को छोड़ कर नए समाज
की परिक्ल्पना को साकार करते हुए हैहयवंश क्षत्रिय समाज की स्थापना के लिए आगे बढे| इस कार्य में एक लंबा समय आज हम ब्यतीत कर चुके है| नए
सामाजिक स्वरुप को स्थापित किये जाने में समाज के बहुत से बुध्जिवियो ने अथक
परिश्रम और कार्य किया है और वर्तमान में भी किया जा रहा है| हैहयवंश क्षतिय समाज के इतिहास उसके धर्म-कर्म सहित अन्य तथ्यों
को एकत्र कर हम सभी ने हैहय्वंश क्षत्रिय समाज के पुन: स्थापित किया है| जिसे आज
फिर से समाज के कुछ अज्ञानी और रुध्वादियो सामाजिक लोगो द्वारा कही बेकार ना कर दिया जाय| हम कब तक ठ से ठठेरा को ढोते रहंगे अब तो इसे प्राइमरी
सिक्षा के किताबो से भी धीरे धीरे हटाया जाने लगा है| ठ से ठग या ठ से ठेला पढाना -
पढ़ना और सीखना ज्यादा आसान है| शिक्षा के सिखने - सिखाने की कला के परिवर्तन के कारण बहुत से वर्णमाला के शब्द आज
दूसरे शब्दों से उच्चारित कर किताबो में प्रयोग किये जा रहे या पढ़े -पढाए और
सिखाये जा रहे है| परिवर्तन होना
संसार का नियम है समाज बदल रहे है समाज में नयी चेतना और ज्ञान का संचार हो रहे
है| आज कही से न तो ठ से ठक ठक करने की
आवाज सुनायी दे रही है और नहीं इसका प्रयोग
किताबो में किया जा रहा है| आज के इस आधुनिक युग में सभी तरह के निर्माण ने
कल-कारखानों की जगह ले ली है| बर्तन का प्रयोग और निर्माण अब प्लास्टिक, अलुमुनियम और स्टील ने ले ली है और हमारे समाज के कुछ
समूहों और लोगो द्वारा आज भी ठ से ठठेरा का प्रचार और प्रसार किया जा रहा है| यही
लोग और समूह एक तरफ तो हम हैहयवंशीय क्षत्रिय सामाजिक संगठन से जुडना चाह रहे है
और दूसरे तरफ अपनी रुध्वादिता और उपनाम ना तो बदलना चाह रहे है ना छोडना चाह रहे है| जिसका एक बड़ा कारण सामाजिक रुध्वादी परम्परा और अज्ञानता का जकडन है
जो उन्हें छोडना भी नहीं चा रहा है| दूसरा पहलू यह भी है की कुछ शिक्षित वर्ग और
समूह के लोग या जो उस वर्ग का अपने को
मानते है उन्हें अपने नव संगठित हैहयवंश क्षत्रिय समाज में जुडना चाह रहे तो
उन्हें समाज में जुडने में कोई परेशानी तो वह अपना एक अलग संगठन और बैनर बना ले
रहे है| हम यदि इसी तरह बिखरते और सामाजिक छुवा-छूत को बढ़ाते रहेंगे तो हमारे
विशाल संगठन की परिकल्पना कभी साकार नहीं हो सकेगी| इस दिशा में हमें अत्यन ही गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है तथा
उचित कदम उठाये जाने की जरुरत है| समाज में जीविका के लिए किसी भी प्रकार के कार्य किये जाने और अपने का
को वर्ग विशेष का बनकर सामजिक जीवन यापन करते हुए यदि वह हमारे हैहयवंश क्षत्रिय
समाज से जुडने का प्रयास करता है और हमरे सामजिक परिवेश और संस्कार को अपनाना
चाहता है तो हमें खुले दिल से स्विक्कर करना होगा और अपने वंश, इतिहास से उसे पहचान कराते हुए अपने को हैहयवंशी लिखने
बनाने के लिए तैयार किये जाने का प्रयास करना होगा|
आज के परिवेश में यह सत्य है की हर समाज आगे
बढ़ाना चाहता है पर हमें अपनी सामजिक पृष्ठभूमि और अपने को समाज में छिपा कर आगे
नहीं बढ़ना है हम क्या थे, हम क्या है और
हमें उसके लिए क्या करना है इसके लिए संस्कार और धर्म के सामाजिक परिवेश को
स्थापित करना है| हमारा उन सभी सामाजिक लोगो
से निवेदन है जो अपने को सह्स्त्राबहु के वंसज और हैहयवंश क्षत्रिय समाज से जुडना
चाहते है तो उन्हें अपने कार्मिक रूप और रुध्वंदिता और पूर्वजो के अशिक्षा और अज्ञानता
के कारण दिए गए उपनाम को लिखना और प्रयोग
करना छोड़ना होगा|
आज हमें क्ष से क्षत्रिय पढाने-पढने और सिखने जानने का समय आ गया है| अन्य सभी समाज के लोग भी शिक्षित और सामाजिक ज्ञान को जानने लगे है अत: हमें क्षत्रियता को अपनाये जाने की जरुरत है जो वास्तव में हम है| सामाजिक अज्ञानता और अशिक्षा का दौर अब समाप्त होने की तरफ है| हमें इसे स्वीकार करना ही होगा| हम नयी सुबह के तरफ हैहयवंश क्षत्रिय के रूप में संगठित हो रहे है| परन्तु कुछ लोग उस बीते काली रात के अनजान पहचान को छोडना ही नहीं चाह रहे है| इसी कड़ी में आज समाज के कुछ वरः समूह द्वारा अपने को पिछड़ी जाति या किसी अन्य आरक्षण वर्ग में सम्लित किये जाने की भी मांग की जा रही है| हमें इस पर भी विचार किये जाने की आवश्कता है कि जब आप अपने को हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज और जाति का वंश का मानते है तो पिछड़ी या अन्य किसी आरक्षित जाति में कैसे समलित हो सकते है| यह ठीक उसी तरह से जैसे ठ से ठठेरा ही जानते रहंगे हम कब तक भीख और दुसरो की दया के भरोसे चल पायंगे| यह सही है की हमारा समाज भी अन्य समाज की जातियों की तरह से सामाजिक और आर्थिक रूप से अत्यन ही पिछडा और गरीब है| परन्तु किसी चीज पर निर्भर रहना हमें सफलता कभी नहीं दिला सकता है| हमें स्वं को समर्थ बनाने का प्रयास करेने होंगे हाँ इसमे समय और परिश्रम के साथ धैर्य चाहिए| हम धीरे -धीरे सफल हो इसमे समय लग सकता है पर यह स्थाई होगा| अब यह प्रशन जरुर है की जब हमें कर्म आधारित उपनाम के कारण कई प्रदेशो/देश में आरक्षण मिला है तो फिर हैहयवंशीय क्षत्रिय बनते हुए आप इसे कैसे ले सकंगे| जो इसका लाभ ले रहे है लेना चाहते है इसे मै क्या कोई भी नहीं रोक सकता है| लेकिन यहाँ यह बात पूर्णत: सच है की यह जो भी आरक्षण हमें मिला है शिल्पकार के वर्ग में आने के कारण दिया गया है नाकि एक जाति के रूप में| हमें अपने स्वाभिमान और वंश के इतिहास को यदि गौरवान्वित करना है तो धीरे धीरे ही सही पर सच्चाई के साथ आगे बढ़ाने में समाज का हित है|
आज समाज का एक बड़ा समूह उच्च शिक्षा ग्रहण करने में लगा है लोग बड़ी बड़ी उच्च शिक्षा ग्रहण कर समाज में आगे बढ़ाने और समाज को भी आगे ले जाने के लिए प्रयासरत है| ऐसे में यदि कुछ लोगो अपने अशिक्षा, और सामाजिक अज्ञानता के साथ रुध्वादिता को नहीं छोडते हुए अपने को समाज से जोडने के जगह नए नए स्वरुप का उदय और विस्तार कर संगठन बनाएं, तो हम कभी भी संगठित नहीं हो सकंगे| अत: हम स्वजाती के लोगो आगे आये और कुछ हम बदले कुछ लोगो को बदले का प्रयास करे जिससे हैहयवंश समाज के कुछ कर्मठ और आशावान सामाजिक बंधुऔ के द्वारा समाज को संगठित और सुदृढ़ करने का प्रयास इससे विफल हो सकता है|
आज हमें क्ष से क्षत्रिय पढाने-पढने और सिखने जानने का समय आ गया है| अन्य सभी समाज के लोग भी शिक्षित और सामाजिक ज्ञान को जानने लगे है अत: हमें क्षत्रियता को अपनाये जाने की जरुरत है जो वास्तव में हम है| सामाजिक अज्ञानता और अशिक्षा का दौर अब समाप्त होने की तरफ है| हमें इसे स्वीकार करना ही होगा| हम नयी सुबह के तरफ हैहयवंश क्षत्रिय के रूप में संगठित हो रहे है| परन्तु कुछ लोग उस बीते काली रात के अनजान पहचान को छोडना ही नहीं चाह रहे है| इसी कड़ी में आज समाज के कुछ वरः समूह द्वारा अपने को पिछड़ी जाति या किसी अन्य आरक्षण वर्ग में सम्लित किये जाने की भी मांग की जा रही है| हमें इस पर भी विचार किये जाने की आवश्कता है कि जब आप अपने को हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज और जाति का वंश का मानते है तो पिछड़ी या अन्य किसी आरक्षित जाति में कैसे समलित हो सकते है| यह ठीक उसी तरह से जैसे ठ से ठठेरा ही जानते रहंगे हम कब तक भीख और दुसरो की दया के भरोसे चल पायंगे| यह सही है की हमारा समाज भी अन्य समाज की जातियों की तरह से सामाजिक और आर्थिक रूप से अत्यन ही पिछडा और गरीब है| परन्तु किसी चीज पर निर्भर रहना हमें सफलता कभी नहीं दिला सकता है| हमें स्वं को समर्थ बनाने का प्रयास करेने होंगे हाँ इसमे समय और परिश्रम के साथ धैर्य चाहिए| हम धीरे -धीरे सफल हो इसमे समय लग सकता है पर यह स्थाई होगा| अब यह प्रशन जरुर है की जब हमें कर्म आधारित उपनाम के कारण कई प्रदेशो/देश में आरक्षण मिला है तो फिर हैहयवंशीय क्षत्रिय बनते हुए आप इसे कैसे ले सकंगे| जो इसका लाभ ले रहे है लेना चाहते है इसे मै क्या कोई भी नहीं रोक सकता है| लेकिन यहाँ यह बात पूर्णत: सच है की यह जो भी आरक्षण हमें मिला है शिल्पकार के वर्ग में आने के कारण दिया गया है नाकि एक जाति के रूप में| हमें अपने स्वाभिमान और वंश के इतिहास को यदि गौरवान्वित करना है तो धीरे धीरे ही सही पर सच्चाई के साथ आगे बढ़ाने में समाज का हित है|
आज समाज का एक बड़ा समूह उच्च शिक्षा ग्रहण करने में लगा है लोग बड़ी बड़ी उच्च शिक्षा ग्रहण कर समाज में आगे बढ़ाने और समाज को भी आगे ले जाने के लिए प्रयासरत है| ऐसे में यदि कुछ लोगो अपने अशिक्षा, और सामाजिक अज्ञानता के साथ रुध्वादिता को नहीं छोडते हुए अपने को समाज से जोडने के जगह नए नए स्वरुप का उदय और विस्तार कर संगठन बनाएं, तो हम कभी भी संगठित नहीं हो सकंगे| अत: हम स्वजाती के लोगो आगे आये और कुछ हम बदले कुछ लोगो को बदले का प्रयास करे जिससे हैहयवंश समाज के कुछ कर्मठ और आशावान सामाजिक बंधुऔ के द्वारा समाज को संगठित और सुदृढ़ करने का प्रयास इससे विफल हो सकता है|
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ये हैहय हैहय वंश किस राजा के नाम से चला
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