सामाजिक एकता की असफलता

सामाजिक एकता की असफलता

आज समाज के हर पटल पर सामाजिक एकता और संगठन की बात बडे ही जोरो से चल रही है, हर समाज का व्यक्ति यह कहते सुनते मिल जाएगा कि अपने समाज में एकता नहीं है, या हमारा समाज कभी एक नहीं हो सकता है, तो यह सोच कर हमें बहुत ही दुःख और निराशा होती है कि हम निराश क्यों रहते है हम हमेशा निगेटिव सोच समाज के लिए क्यों बना रखे है| हम इस पर लगातार विचार और चिंतन करते रहते है और हमें अभी तक जो इसका उत्तर मिल पा रहा है वह हमें यह लगता है की हमारा रहने, खाने, पिने और सोचने का दायरा  बहुत ही सिमित है, निगेटिव सामाजिक सोच भी असफलता एक कारण है| आज इस आधुनिक परिवर्तन के युग में हम असीमित  साधन और संसाधनों के होने के बाद भी अपने रुध्वादी और परम्परा वादी विचार धारा को छोड़ नहीं पा रहे है जो दुसरा प्रमुख कारण है हमारी सामजिक असफलता का| , तीसरी सबसे बड़ी चीज हमारी असफलता हमारे सामाजिक रिश्ते बनाने के है| आज भी लोग अपने शहर, जिला, प्रदेश छोड़ कर सामाजिक रिश्तों और बंधनों को बनाने में इक्षुक नहीं दिखाई देते है हम इस सोच को इन सामाजिक रिश्तों और बंधनों को जोड़ कर ही मजबूत बना सकते है जिससे जब एक नए जगह, नयी परिवेश, नए लोगो और नयी  जगह पर हमारा पारिवारिक रिश्ता बनेगा तो हमें एक नए सस्कारो और नयी सामाजिक चीजों का परिचय होगा और हम एक दूसरे के संस्कारो और रीती रिवाजो के माध्यम से अपने अछे विचारों के अदान प्रदान द्वारा और मजबूती के साथ संगठित हो सकते है | हम इस कड़ी को ना बंनाने में प्राय: यह सोचते है कि अनजान सामाजिक लोगो और नए जगह तथा कही दूर सामाजिक पारिवारिक रिश्ते करने से कई प्रकार के समस्याओ का पुर्वामन बना लेते है कि लोग कैसे होंगे, उनके संस्कार कैसे होंगे, हमारा ताल-मेल बन पायेगा रिश्ता निभ पायेगा अदि अदि पर हम यह क्यों बूल जाते है कि यदि विधि का विधान और भाग्य में कुछ बुरा  होना है तो नजदीक और जान-पहचान वाले जगहों और परिवार में रिश्ते करने से नहीं होगा| यह सच है की हम जान बूझकर किसी अनजान सामाजिक लोगो और परिवार में रिश्ते नहीं कर सकते है पर केवल यह मानकर की वह नए है, वह दूर है हम अपना समाजिक पारिवारिक सम्बन्ध नहीं करे यह उचित नहीं प्रतीत होता है| यदि हम यही सोच हमेशा और सभी के लिए एक जैसे विचार रखते रहेंगे तो फिर सामाजिक एकता संभव नहीं हो सकती है| हम प्रयास धीरे धीरे ही करे और एक दूसरे के माध्यम से अपने पारिवारिक रिश्तों को विस्तार दे, जबतक हम एक दूसरे से जुडेंगे नहीं तब तक हर कार्य असम्भव और अक्षम प्रतीत होती रहेगी| क्योकि मेरा मना है की पारिवारिक रिश्ते बना कर हम आसानी से एक दूसरे से जुड सकते है, हम इस कार्य में एक दूसरे से मिले जो अनजान है उनके बारे में विधिवत पता करे उंनके आचार विचार को समझे और जब यह प्रतित हो की वह भी हमारे ही तरह के और हमरे विचारों से मेल खाते है तो  फिर रिश्ते अवश्य जोड़े| किसी भी व्यक्ति  की परख हम उसके सामाजिक परिवेश को देखकर अनुमान लगा सकते है फिर उसके आचरण-व्यहार और सामाजिक स्वरुप अनुसार हम रिश्तों को बना सकते है| रिश्तों को केवल पारिवारिक सम्बन्ध से ही ना सोचे हम अपने व्यक्तिगत या पारिवारिक यात्रए जो  दार्शनिक, प्रकृतिक और धार्मिक क्कार्यो और आयोजनों कद लिए को बनाते है उसके माध्यम से भी उस जगह पर रहने वाले सामाजिक लोगो से भी समपर्क कर सकते है इससे हमारे यात्रा के एक और फायदा होगा की हमें उस जगह पर पहचान और मदद करने वाला एक समाज का परिवार मिल जाएगा| अंत में जैसा कि हम सभी जानते है की किसी भी कार्य के लिए शिक्षा  का क्या महत्व है,  शिक्षा का महत्व केवल डिग्री प्राप्त करना नहीं है शिक्षा का असली महत्त्व सामाजिक और संस्कारिक रूप से शिक्षित होने से है जब पूर्ण रूप से स्जिक्षित हिओंगे तभी हम सामाजिक एकता और संगठन को समझ संकेंगे|  सामाजिक एकता के लिए इसके अतिरिक्त भी बहुत सी छोटी और बड़ी चीजे है जो आज हमारे समाज की एकता और विकास में बढ़ा बन रही है| समय, धन, सामाजिक अज्ञानता, आधुनिक साधनों का उपयोग ना कर सकना और हमारी असमान और अभिन्न सोच| जिसमे समय जो सभी के लिए अमूल्य और सिमित है पर फिर भी समय तो सभी को कुछ ना कुछ देना पडेगा| धन जो चलायमान और गतिशील है और सभी के पास नहीं है अत: आज जिसके पास है और जो इस योग्य हो उन्हें ही आगे आकार इसमे सहयोग करना होगा| सामाजिक ज्ञान अर्थात अपने पहचान अपने इष्टदेव और जाति-धर्म अपने समाज अपने रीती रिवाज जो कि असमान्य और अभिन्न रूप में बिखरे है जो जैसे अपना इतिहास बना लिया उसी को चला रहा है, हमें अपने मूल पहचान को जान ना  होगा और एकमत से अपने इतिहास को समझना होगा तभी हम सामाजिक रूप से एक हो संकंगे| इसके लिए हमें इतिहास के तथ्यों अनुसार एक रष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक समिति का गठन कर विस्तृत रूप से एकमत राय बनाने होंगे| इस सामाजिक आधुनिक युग में हमें नयी नयी तकनीकियो साधनों जैसे समाचार पत्र पत्रिकाओ, जन संचार, टीवी रेडियो आदि पर अपने सामाजिक इतिहास पर चर्चाए, गोष्ठि, और लेख अदि लिखकर विस्तार देने की आवश्यकता होगी| अन्य आधुनिक संशाधनो कंप्यूटर और अन्य इलेक्ट्रनिक मीडिया मोबाइल अदि द्वारा उपलब्ध सूचनाओ जानकारियों के आदान प्रादान द्वारा इसका जन जन तक विस्तार कर पहचाना होगा| उपरोक्त सभी बाधाए दूर कर हम अपने समाज की एकता और संगठन को विस्तार देकर बढ़ा संकंगे|

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