संदेश

2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सामाजिक एकता की असफलता

सामाजिक एकता की असफलता आज समाज के हर पटल पर सामाजिक एकता और संगठन की बात बडे ही जोरो से चल रही है, हर समाज का व्यक्ति यह कहते सुनते मिल जाएगा कि अपने समाज में एकता नहीं है, या हमारा समाज कभी एक नहीं हो सकता है, तो यह सोच कर हमें बहुत ही दुःख और निराशा होती है कि हम निराश क्यों रहते है हम हमेशा निगेटिव सोच समाज के लिए क्यों बना रखे है| हम इस पर लगातार विचार और चिंतन करते रहते है और हमें अभी तक जो इसका उत्तर मिल पा रहा है वह हमें यह लगता है की हमारा रहने, खाने, पिने और सोचने का दायरा  बहुत ही सिमित है, निगेटिव सामाजिक सोच भी असफलता एक कारण है| आज इस आधुनिक परिवर्तन के युग में हम असीमित  साधन और संसाधनों के होने के बाद भी अपने रुध्वादी और परम्परा वादी विचार धारा को छोड़ नहीं पा रहे है जो दुसरा प्रमुख कारण है हमारी सामजिक असफलता का| , तीसरी सबसे बड़ी चीज हमारी असफलता हमारे सामाजिक रिश्ते बनाने के है| आज भी लोग अपने शहर, जिला, प्रदेश छोड़ कर सामाजिक रिश्तों और बंधनों को बनाने में इक्षुक नहीं दिखाई देते है हम इस सोच को इन सामाजिक रिश्तों और बंधनों को जोड़ कर ही मजबूत बना सकते है जिससे जब एक

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव

एकता और शक्ति से ही सामाजिक परिवर्तन संभव दुनिया में कही भी यदि विकास और प्रगति हुयी है तो वह बिना एकता और शक्ति के संभव नहीं हुयी है| ठीक इसी प्रकार जो भी समाज आज हमसे आगे है वह एकता और शक्ति के कारण ही आगे बढे है| इस तथ्य पर हम सभी सामाजिक जन को विचार करना चाहिए| हमारे सामाजिक पिछडेपन के लिए यदि सबसे बड़ी कोई बाधा है तो हममें एकता का अभाव, हम शशक्त होते हुए भी बिखरे और पिछड़े है| आज हर तरफ लोग सामाजिक विकास और सामाजिक संगठन और उससे भी आगे बढ़कर राजनैतिक सहभागिता की बाते हो रही  है परन्तु यह सब तभी संभव हो सकेगा जब हममे सामाजिक जागरूपता के साथ – साथ एकता और शक्ति होगी| अत: सबसे पहले हमें इस दिशा में कार्य करना होगा| आज के इस व्यस्तम जीवन चर्या और भागाम्दौर भरे सामाजिक मौहोल में यह एक बड़ी चुनौती है| इससे हम सभी इनकार नहीं कर सकते है| परन्तु यदि हम सभी को अपने समाज में वास्तव में परिवर्तन लाना है तो इन सभी बाधाओं को देखते हुए समाज के हर व्यक्ति को अपना कुछ ना कुछ समय सामाजिक एकता और समरसता के लिए देना पडेगा| हममे न तो शक्ति की कमी  है ना बुद्धी की यदि कमी कही है तो हम एक दूसरे को समय स

सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प

सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प प्रकृति हमें परिवर्तन का सच्चा रूप हमेशा दिखाता रहता है. परन्तु हम सभी प्रकृति के इस रूप को जानते हुए भी हम इसे अपने सामाजिक जीवन में नही ढाल पाते है| प्रकृति जिस प्रकार मौसम के रूप में हमें जाड़ा, गर्मी और बरसात से, समय को दिन और रात से, संघर्ष को अमीरी और गरीबी से, अनुभव, एह्शाश को शुख और दुःख से जीबन को जन्म और मौत से रूबरू करता है और हम इस परिवर्तन में अपना पूरा जीवन समाज के बिच व्यतीत करते रहते है| समाज के रूप में हम अपना भाग्य और किश्मत मानकर सब्र करते है और जीवन बदलते रहते है| हम इस सामाजिक परिवर्तन के लिए कभी नहीं सोचते है जबकि दुनिया में हर चीज परिवर्तित और समय के साथ बरहती रहती है और परिवर्तन के साथ  प्रगति और विकास होता है अत: हमें प्रकृति के इस परिवर्तन के रूप को समझाने की आवश्यकता है यदि हम या हम अपने समाज के उत्थान के बारे में सोचते है| उक्त कथन का अभिप्राय बस इतना  है  कि हमें अपने जीवन, कार्य, स्थान को भी परिवातित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि नयी सोच, नयी कार्य और नयी जगह के स्वरुप में हम अपने और समाज के उत्थान म

हैहयवंश का स्वाभिमान

हैहयवंश का स्वाभिमान कभी   – कभी अच्छाईयों और सत्यवादिता के साथ न्याय   रूपता व् सामजिक हठ धर्मिता भी विकास में बाधा बन जाते है| अब हम इसे विधि का विधान या फिर सामजिक युग परिवर्तन ! संसार जो भी प्राणी या प्राणी के रूप स्वंम   भगवान ने ही अवतार लिया सभी का निश्चित समय और दिन है कि उसे मिटना या संसार से जाना ही है क्योकि जो आया है उसे जाना है जो बना या बनाया गया है उसे मिटना या खत्म होना है जो आज है कल नहीं था और जो आज है भी उसे कल नहीं रहना है| परन्तु यह भी सत्य है की कुछ मूल चीजे होती है जिसका केवल स्वरुप ही बदलता है उसके कार्य और निरंतरता   बनी रहती है जैसे कि जल, हवा और जीवन जिसे हम सर्वशक्तिमान कहते है| जिस प्रकार सत्य को हम नहीं मिटा सकते है चाहे उसे कितना भी छिपाया या झुठलाया जाय पर एक ना एक दिन सच सामने आ जाती ह| समय परिवर्तनसील है इसी कारण   युग परिवर्तन हुआ और सतयुगस से   कलयुग तक का युग निर्माण बना| परिवर्तन संसार का नियम है, इसी कारण ऋतुये बनी और उसी अनुसार मौसम का परिवर्तन होता है और हमें प्राकृतिक रूप में सभी चीजे प्राप्त है| समय का चक्र सभी के जीवन काल में आता है

हैहयवंश निर्माण की सार्थकता

हैहयवंश निर्माण की सार्थकता मित्रों, आज आज़ादी के बाद इतने वर्षों में हम हैहयवंशियो को अपनी समाज की एकता और संगठन बनाने के लिए निरंतर ही संघर्ष करना पड रहा है| इसी कड़ी में मेरे द्वारा भी अपने स्तर से लेखनी और कुछ सामाजिक कार्यकर्मो के माध्यम से कुछ ना कुछ प्रयास लगातार किया जाता रहा है, हमें इस कार्य में कुछ फलीभूत सफलता भी मिली है जिसमे मेरे द्वारा अंतरास्ट्रीय स्तर पर इलेक्ट्रोनिक इन्टरनेट के माध्यम से पढ़े और आम लोगो तक पहुचने वाले साहित्यों, इतिहास और कथाओ में अपने इतिहास जीवनी और कथाओ को भारत डिस्कवरी के वेबसाइट पर पहचान बनाया है कुछ रोचक प्रसिद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक वेबसाइट पर भी हमाँरे समाज के जीवनी, कथाओ, चालीसा और आरती को संकलित किया गया है जिसके माध्यम से ना सिर्फ अपने समाज के लोग बल्कि अन्य समाज के लोग हमें जान और पहचान रहे है और हमारे समाज के बारे में जान रहे है हमारे पास उनके कमेन्ट और सुचना लगातार आती रहती है यह एक अत्यंत ही बड़े हर्ष की विषय है इस कार्य में हम समाज के लोग और भी आगे ले जा सकते है यदि इस वेबसाइट को अधिक से अधिक अपने समाज के लोगो द्वारा प्रचारित औ