हैहयवंशीय बनना हमारा सामाजिक ध्येय

हैहयवंशीय बनना हमारा सामाजिक ध्येय

(गर्व से कहो हम क्षत्रिय  है) 


इस नव वर्ष पर मै इस लेख के माध्यम से हैहयवंशी क्षत्रिय समाज से सम्बन्ध रखने वाले और हैहयवंशी क्षत्रिय समाज के महाराज श्री सहस्त्रबाहु में अपनी आस्था और विश्वाश रखने वाले हर उस व्यक्ति परिवार जो  देश – विदेश में कही पर, किसी वेश - परिवेश में, किसी कार्य व्यसाय, नौकरी में जैसे भी रह रहे हो यदि वह अपने आप को  हैहयवंश की संतान मानते है तो वो बिना किसी भेद-भाव के इस वंश समाज से बिना हिचक जुड़े और इस हैहयवंश समाज को एक वृहद और सशक्त संगठन बनाने में एक अहम् भूमिका निभाए|  आज हमारा हैहयवंश क्षत्रिय समाज इतनी विवधताओ से भरा है जिसमे सबसे बड़ी विवधिता उपनाम के रूप में है समय और परिस्थितियों, साहित्यिक – इतिहास का अज्ञान व अशिक्षा ने हमें इस ओर मजबूर किया होगा कि हम एक उपनाम या कुछ गिने-चुने अपने वंश-समाज से सम्बंधित जानने वाले उपनामो को प्रयोग नहीं कर सके जिसके कारण हमारी पहचान सदैव छुपी रही, दूसरी बड़ी विविधिता हमारे द्वारा आपसी सौहादर्य तथा परस्पर जन-संपर्क की अभाव सदैव ही रहा जो वर्ग जिस रूप में जन्हा रहा वही आपस में सामाजिक-धार्मिक और परिवारिक रिश्ते के कार्य कर सिमित बना रहा, तीसरा बड़ा कारण हमारा सामाजिक परिवेश और इतिहास के प्रति अज्ञान और अनभिज्ञता रहा है| इस सब में सबसे बड़ा कारण हम जैसे जैसे समाज के लोग पढने लिखने और योग्य होते हुए आगे बढे खासकर नौकरी पेशा में आये शिक्षित समाज के लोगो  ने समाज को अनदेखा किया है| अब इसका जो भी कारण रहा हो, हमें इन सभी बातो से ऊपर उठकर एक बड़ी सोच के साथ अपना एक ही सामाजिक ध्येय बनाए की हम आज से अभी से इस हैहयवंश को संगठित और सशक्त करने हेतु एकजुट हो जाय, सभी प्राणियों की तरह हमारे समाज में भी योग्य और सामाजिक विचारक और कार्य करने वालो की कमी नहीं है जरुरत है हम उन्हें एक मंच प्रदान करे| हमारे समाज के लोग पूरी दुनिया में है बस उन्हें ढूढने और एकत्र करने की जरुरत है और हमें यह लगता है की समाज के बहुत से लोग इस कार्य में अपने - अपने तरीके से इस सामाजिक सहयोग और एकता के लिए प्रयासरत भी है और यह कार्य धीरे धीरे ही सही अपने रास्ते और दिशा की ओर चल पड़ा है | लगभग हर जिले, प्रांत और देश के स्तर पर हमारा सामाजिक संगठन किसी ना किसी नाम और रूप में स्थापित है बस हमें प्रयास यह करना है की इन सभी सामाजिक संगठनो को एक मंच और साथ लाया जाय ताकि एक बृहद संगठन बन सके| जन्हा तक उपनाम लिखने और जाति के नाम पर विवाद है यह आज नहीं सदियों से चला आ रहा हम किसी को कुछ लिखने को बाध्य नहीं कर सकते है परन्तु यह भी सच है की बिना एक या कुछ जातीय/सामजिक सम्बन्ध रूपक उपनाम लिखने से हम ज्यादा से ज्यादा तेजी के साथ पहचाने और जाने जा सकते है जो की वास्तव में सामाजिक संगठन के लिए जरूरी भी है दुसरा हम समाज में रहते हुए अपनी वर्ण व्यस्था के अनुसार समाज /जाति को नहीं भुला या छोड़ सकते है हर व्यक्ति चाहे वह कितना भी आधुनिक होने के साथ  असमाजिक/अधार्मिक होगा कभी ना कभी समाज उसके जाति को जरुर पूछेगा और जानना चाहेगा| अत: हमअपने को  जिस हैहयवंश से जोडते है भारत के चक्रवर्ती सम्राट महाराज सह्स्त्राबहु अर्जुन से सम्बंधित है जो चन्द्रवंश की शाखा हैहयवंश क्षत्रिय वंश से जाना जाता है इसके लिए किसी या समाज को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है यदि आप या हम अपने को हैहयवंश से जोडते है तो फिर बिना किसी शर्म, हिचक के शान और गर्व से कहे हम क्षत्रिय है, थे और रहंगे| अब प्रश्न यह है की जब क्षत्रिय सन्तान है तो अपने इतिहास का ज्ञान भी रखना हमारा कर्तब्य ही नहीं सामाजिक आवश्यकता भी है इसके लिए हम शास्त्रों, पुराणों, ग्रंथो  तथा समय समय पर पूर्व में सामाजिक इतिहासकारो द्वारा लिखी पुस्तकों या उनसे सम्बंधित तथ्यों को पढ़े और समझने की कोशिश करे| सामाजिक विवादों से बचे, हर लिखी बतायी गयी चीजे पूरी सही नहीं हो सकती है इसमे विवाद हो सकते है हमे मनुष्य का सर्वोतम जन्म मिला है हमें सोचने और समझने की शक्ति है ज्ञान के द्वारा इस पर विचार कर जो सही हो उसे स्वीकार  करे| सामाजिक प्रचार प्रसार में अपने ज्ञान और शक्ति का उपयोग करे आप जो भी अच्छी  चीजे समाज के उत्थान और प्रगति के लिए जानते हो उसे समाज के जन जन तक पहुचाने में मदद करे, कहते है बूंद बूंद से सागर बनता है ऐसा ही प्रयोग हम समाज के उन लोग से किए जाने की उम्मीद करते है|
हमारी सामाजिक विविधिता ही हमारे समाज के सशक्त संगठन को खड़ा करने में हमारी मदद भी कर सकता है बस हमें उसे कैसे प्रयोग करना है उस पर विचार किये जाने की जरुरत है यह जरूरी नहीं कि एकही उपनाम लिखे तभी हम विकसित और संगठित हो सकते है हम प्रकृति में उपलब्ध फूलो को ही लेले उनके कई उपनाम है फिर भी सभी फूल खुशबु और अच्छे कार्य के लिए ही जाने और प्रयोग किये जाते है, हम उनसे ही सीख लेकर चाहे जो भी उपनाम लिखे हम अच्छे बने, अच्छे कार्य करे, हमारी भी महक जो नाम-रोशन के रूप में हो तो हर व्यक्ति समाज हमें चाहेगा इस तरह हमें एक जुट होने में कोई रोक नहीं सकता है| जैसा कहा भी गया है के व्यक्ति के सामाजिक कार्य-चरित्र से एक सच्चे और सुद्र्द समाज का विकास होता है| अत: उन फूलो की तरह हम जिस नाम या रूप में हो महकने की कुछ तो कोशिश करे और प्राथिमकता यही हो की हम एक हो और समाज से जुड़े तभी थोड़ी थोड़ी महक एकजुट होने से एक बड़े महक (नाम-रोशन) बनेगी| पर इतना जरुर है की यदि हम कुछ अच्छे महक के साथ रहे तो और भी यह कार्य आसान हो सकता है हम एक उपनाम लिखने का प्रयास करे कुछ लोगो द्वारा पहले एक नयी खुसबू के लिए हयारण, ताम्रकार और कांस्यकार लिखने की शुरुवात की, फिर हैहयवंशीय जो की बहुत दिनों से कुछ लोगो द्वारा लिखा और जाना जाता रहा है को एक उपनाम देने का प्रयास शुरू किया है यह एक अच्छी बात है| हैहयवंश से पहचान से इतना अवश्य ही समझ में आता है की पौराणिक इतिहास में यह एक चन्द्रवंश की शाखा में हैहयवंश क्षत्रिय वंश से आता है जिसमे चक्रवर्ती महान सम्राट महाराज सहस्त्रबाहु अर्जुन ने जन्म लिया था अब जब हम इससे अपने आप को जब इससे से जोडते है तो हमें सामाजिक रूप से डरने और छिपाने की जरुरत नहीं है हम क्षत्रिय है और हमें गर्व से कहना चाहिए हम क्षत्रिय है क्योकि अधूरा जानकारी  और ज्ञान तथा सच कभी छुपता नहीं है| आज यह कहने और लिखने में असहज और अटपटा लग रहा है परन्तु जो सत्य है उससे हम पीछे नही हट सकते है जब आप और हम इसे लिखंगे, कहेंगे और मानाने लंगेगे तो फिर क्षत्रियता की पहचान हमारे समाज की पहचान बन जायेगी| कहते है जैसे  सोच, परिवेश में हम जीने लंगेगे तो स्वंम ही वैसे ही बन जायेगे| हमारे सामाजिक पूर्वजो ने जो गलती की या हमारी जो रुढवादिता है उसे हमें छोडना ही होगा समय के साथ चलने के लिए परिवर्तन जरूरी है यदि समाज को आगे बढ़ाना है और हमें आगे बढ़ना है तो बदलाव बहुत ही जरूरी है, समय के परिवर्तन ने बड़े से बड़े चीजों को बदल दिया है, हैहयवंश का यह बदलाव तो सत्यता के लिए है हम इसमें अवश्य सफल होंगे| अंत में सामाजिक संगठन के लिए समाज की सभी लोगो से निवेदन है की सारे भेद-भाव और अंतर भुला कर आप चाहे कुछ भी उपनाम लिखते हो और जन्हा भी रहते हो एक छत हैहयवंश बैनर के तहत एकजुट हो जैसा कि ऊपर के पंक्तियों में  फूलो का उदाहरण में व्यक्त है कि फूलो के कई प्रजातीय और प्रकार होते हुए उनकी सुन्दर-महक उन्हें एक फूल का नाम(महत्व) बना  देती है हमारा हैहयवंश भी आप समाज के उन सभी लोगो जो विभिन्न रूपों और उपनाम के अंतर के साथ देश-विदेश में जंहां भी हो इस हैहववंशिया रूपी फूल के बगिया के फूल बने| पिछले कुछ वर्षों में देश के कई जगहों पर विभिन्न उपनाम के लिखने वालो सामाजिक लोगो और संगठनो का पता चला है जोकि कही ना कही अपने आप को हैहयवंश से जोडते रहे है और भगवान सह्स्त्राबहु की पूजा अर्चना भी करते आ रहे है पर अनिभिज्ञता और  एक नाम और रूप ना होने के कारण एकजुट होने में असमर्थ रहे है दुसरा कारण सामाजिक दूरी जो परस्पर सम्पर्क ना रहने के कारण पहले नहीं हो पा रही थी पर अब समय बदल रहा है हम सभी सामाजिक संगठनो और सामाजिक लोगो से निवेदन करना चाहुगा की आप हैहयवंश के नाम पर अपनी पुरानी छवि और पहचान को स्थापित करने के लिए एक दूसरे से जुडते हुए हैहयवंश को एक सशक्त संगठन बनाने में अपना बहमूल्य सहयोग प्रदान करे| क्योकि कोई भी व्यक्ति या समाज बिना संगठन और अपनी पहचान के अधूरा है चाहे आप लाख अच्छे हो हम अपनी विवधिता एक रुप  दे हैहयवंश का नाम दे|
डा विष्णु स्वरुप चंद्रवंशी
स्वतंत्र सामाजिक लेखक, विचारक एवमं आलोचक
०९४१५६४११५८

राष्ट्रीय स्तर पर फेसबूक पर कुछ लोगो के नाम हैहयवंश संगठन के लिए आये है आप उनसे भी संपर्क कर अपना सहयोग दे सकते है| कहते है जब छह है तो राह पाने ही बन जाती है हम अकले चले पर लोग जब जुडेगे तो रस्ते अपने आप बनते जायेगे|
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विजय वर्मा (हैहयवंशी) vijaystuti@gmail.com, mobile- 09810126683
अनुज वर्मा (हैहयवंशी) anujj.verma@gmail.com, mobile- 08745875431

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