पुस्तक हैहयवंश - शारंश



संपादकीय
यह पुस्तक लिखने के पीछे लेखक कि मंशा समस्त हैहयवंश समाज को अपने इतिहास मात्र से परिचित कराना है| पुस्तक मे लिखी गयी जानकारिया  केवल अब तक समाज द्वारा लिखी और एकत्र की गयी सम्बन्धीत किताबो, ग्रंथो, पुराणों और भूतकाल मे उपलब्ध कुछ इतिहासकारों द्वारा ली गयी है इस पुस्तक मे लिखी किसी भी जन्करिई का कोई लिखित साक्ष्य नहीं है अत: इसे मात्र इतिहास मान कर पढ़ा और समझा जय| यहा यह बताना अतिआवश्यक है की यदि किसी के पास कोई भी सरकारी आधार पर सबूत और अन्य साक्ष्य हों तो कृपया हमें उपलब्ध कराने किई कृपा करे| ताकि उसे आधार मानकर अपने समाज के इतिहास का असली रूप प्रस्तुत किया जा सके| लिखे इतहास को ताड़ी आधार बनाकर माना जय तो यह सही है कि हम यदि अपने को हैहयवंश या सहस्त्रबाहु से जोडते है तो फिर कही न कही हमारा सम्बन्ध क्षत्रियावंश से जरूर रहा होगा| क्योकि यह शब्द अपने समाज मे आज से नहीं परन्तु कई शताब्दियों से लिखा और सूना जा रहा है| यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपने क्षत्रियता को कभी भी स्वीकार नहीं सके इसका जो भी कारण रहा हों| यह बहस का विषय नहीं है| मनुष्य परिस्थतियो का गुलाम होता है| और समय कभी किसी के लिए एक जैसा नहीं रहता है, हम सभी प्रक्रितु के बनाये नियम को नहीं तोड़ सकते है| इतहास इसका गवाह है की कितने धर्म और जातिया बनी और खत्म हों गयी| परिवर्तन समाज का नियम है, अगर हम इस का पालन करे तो सब कुछ संभव हों सकता है| इसके लिए सबसे पहले अपने समाज को संगठित करना होगा, और यह तभी पूर्ण रूप से संभव होगा जब हम शिक्षित और सभ्य सोंगे, इसमे भी नव्युवकों और पढ़े लिखे लोगो को अग्गे आना होगा, और सबको बिना किसी भेद भाव और उंच नीच के साथ लेकर चलाना होगा| जीविका के लिए किया गया कोई भी व्यसाय बुरा नहीं होता है पर हम सदैव अच्छाईयों और ऊँचाई के तरफ देखना चाहिए वक्त बदलने के साथ अपने समाज को भी बदलने के लिए प्रेरित करना होगा, पर किसी दबाव या जबर्ज्स्त्ती नहीं| समाज के जो लोग पढ़ लिखकर आगे बढ़ चुके है और समाज के अछियो और बदलाव को समझ रखते है उन्हें आगे आकर समाज के अन्य लोगो का सहयोग करना चाहिए| यंहा यह बताना आवश्यक है समाज सेवा के लिए बड़े ही त्याग कि आवशकता होती है और यह कार्य किसी एक के द्वारा संभव भी नहीं है, यह प्रशंशनीय है कि पुरे देश मे जगह जगह समाज के लोग विभिन्न तरह से विभिन्न नामो और विभीनन्न तरीके से संगठन मे लगे है| मगर यह पर्याप्त नहीं है और ना ही कभी पूर्ण और स्थायी रूप से सफल हों पायेगा| कुछ समाज के लोग एकला चलो आन्दोलन के तरह से भी समाज को जोडने और आगे बढाने मे लगे है परन्तु इसमे समाज सेवा कम स्वार्थ अधिक प्रतीत होता है कुछ लोग केवल अपने नाम के प्रचार और ख्याति के लिए समाज सेवा मे लगे है| परन्तु यह उचित प्रतीत नहीं लगता| हमें एक नाम एक रूप एक बैनर के नीचे आकार, समाज के संगठन और मजबूती के लिए बिना स्वार्थ और फायदे के लिए कार्य करना होगा तभी समूर्ण समाज का विकास संभव होगा| यह भी कडुवा सच है की समाज सेवा भी बिना धन के नहीं कि जा सकती है कहने और करने मे बड़ा फर्क होता है अतः इस ओर भी हमें समुचित प्रयास कर धन इकठ्ठा करने कि आवशकता करनी होगी| समाज के बड़े बुहुर्गो और  अनुभावी लोगो को एकत्र करना होगा उनका संरक्षण प्राप्त करना होगा साथ ही परस्पर जन संपर्क कर राष्ट्र स्तर, राज्य स्तर और जन्हा जन्हा समाज के लोग बहुसंख्य मात्रा मे है,  जिले स्तर पर संगठन खड़ा कर  समाज के लोगो को  एक दूसरे से जोडना होगा तभी हम सफल हों सकते है| संगठन मजबूत होने के बाद ही हम अन्य समाज के लोगो से प्रतिस्पर्धा कर संकेगे तथा राजनैतिक दृष्टी से भी जुड़ संकेगे| इन सभी सफलताओं को पाने  के लिए समाज मे शिक्षा का प्रचार प्रसार करना होगा बिना शिक्षित हुए आगे बढ़ना और संगठित होना संभव नहीं होगा| सरकारी और गैर सरकारी मे नौकरी का लाभ पाने हेतु प्रयास करना होगा, समय के मांग के अनुसार व्यसाय को बदलना होगा| सुचना और विज्ञान को भी अपनाना होगा, परपर जन संपर्क आन्दोलन चलाना होगा, विचारों का आदान प्रदान बिना किसी भेद भाव के करना होगा| समाज के जो लोग जहां भी जिस रूप मे है उनको इतिहास की जानकारियों से रूबरू करना होगा| क्योकि सब कुछ होते हुए भी यदि इतिहास का ज्ञान नहीं होगा हम उसकी महत्ता को नहीं जान संकेगे| कार्यों और व्य्स्साय से जाति कि गणना नहीं कि जाति है वह मात्र अपनी कार्य पहचान के लिए होती है और इसी अज्ञानता के कारण हम अपने पहचान को अपने जाति समझ कर जोड़ने और लिखने लगे है, यही कडुवा सच है| यंहा यह भी बताना आवश्यक है की सदियों से जानी और लिखी जा रही यह परंपरा को कोई भी छोडना नहीं चाहेगा| पर जैसा कि पहले भी लिखा गया है की परिवर्तन प्रकृति और समाज का नियम है, प्रगति के लिए हमे भी इस ओर सोचना ही होगा| साथ ही अन्य समाज के लोगो द्वारा किये जा रहे उनके उत्थान और संगठित होने के कायदे और तरीके से सिखाना होगा, तथा निरंतर बिना किसी स्वार्थ लालच के संगठन के उत्थान और स्वरुप के बारे मे विचार करना होगा| समाज से हम और हमसे समाज है इसे ही यथार्थ मानकर अपनी एक पहचान बनानी होगी| अबतक जो भी समाज के लोगो के द्वारा किया गया या कर रनहे है उसपर कोई टिका या तिप्परी न करते हुए पुनार्थ्थान के तरफ एक नए सामाजिक इतिहास की रचना करनी चाहिए ताकि कम से कम आने वाली पीढ़ी के संताने अपने को गौरवान्वित महसूस कर सके और शान से सर ऊँचा रखकर देस-समाज मे अपना भागीदारी बना सके| कार्य अत्यंत ही अथीन और चुनौती ब्रा है| पर अशंभव नहीं, यदि हम सभी मिलकर सच्चे मन और लगन से इसे शुरू करे तो सफलता अवश्य ही मिलेगी क्योकि किसी भी क्रय की दृढ निषे के साथ सुरुआत ही उसके सफलता की कुंजी होती है| हमे सही दिशा मे सोचना और उय तय करना होगा कि कैसे इस च्नुऔती का सामना करे, हमारा उन सभी समाज के लोगो का धन्यवाद जो लोग जन्हा भी जिस तरीके से समाज के संगठन और उत्थान के लिए कार्य कर रहे है साथ ही यह विनीति कि उस संगठन और उत्थान को एक मंच दे, जिस प्रकार सभी नदिया अलग अलग बहते हुए अपना कार्य करती है परन्तु समुद्र मे मिलकर उसे एक विशाल रूप देती है, उसी विशालता को हमे अपने समाज मे परिवर्तन लाकर आगे बढ़ सकते है|
जय सह्त्रबहु



विषय सूची

क्रम
विषय
पेज संख्या
1.        
हैहयवंश समाज कि प्रस्तावना

2.        
भूमिका

3.        
हमारा गौरवशाली इतिहास

4.        
कार्त्यावीर का प्रादुर्भाव और जन्म पूर्व वृत्तांत

5.        
महिश्मिति समाज का उदय और साम्राज्य

6.        
ज्यध्वज का राज्यारोहण

7.        
कलचुरियों की वंशावली

8.        
चन्द्रवंश की वंशावली

9.        
सहस्त्रबाहु महाराज जी के स्मृति

10.    
सहस्त्रबाहु की महिमा

11.    
हैहय भार्गव संघर्ष

12.    
महेश्वर सहस्त्रबाहु मदिर और सहस्त्रबाहु महाराज का सच

13.    
सप्तादेपेश्वर  श्री सहस्त्रबाहु

14.    
सहस्त्रबाहु मंदिर और नागदा

15.    
श्री सहअस्त्रार्जुन का जीवन चरित्र का सचित्र वर्णन

16.    
हैहेयवंश का साम्राज्य

17.    
हैहयवंश के सम्बन्ध मे कुछ रोचक कथाये एवं जानकारीयां


     





हैहयवंश समाज कि प्रस्तावना
(गर्व से कहो हम क्षत्रिय है )
प्रस्तुत लेख हैहयवंश से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों और ग्रंथो को आधार मानकर कर संकलित किया गया है इस लेख के माध्यम से हमारा प्रयास समाज को उसके असली रूप से अवगत कराना है| लेख का मतलब मात्र अपने अस्तित्व को ढूढना और हैहयवंश के इतिहास को उलेखित करना है ताकि समस्त समाज के लोगो का गर्व से सर ऊँचा रहे और अपने को गौरान्वित महसूस करे | यदि किसी समाज के ब्यक्ति अथवा संस्था को इस पर कोई आप्पति है तो वह साक्ष्यों के साथ हमसे संपर्क और बहस कर सकता है हम उसका स्वागत करेंगे क्योकि जब तक किसी चीज का विरोध और वाद- विवाद नहीं होगा तब तक सच्चाई का पता नहीं लगाया जा सकता है और हम विरोध होने पर सचाई के साथ आगे बढ़ संकेगे | इस लेख को लिखने के पीछे लेखक कि मंसा सिर्फ हैहयवंश के गौरवमयी और  विशाल इतिहास से समाज और समाज के प्रत्तेक ब्यक्ति को रूबरू करना है किसी को आहात या दुखी नहीं करना| हैहयवंशी क्षत्रिय समाज (कार्यवीर राज राजेस्वर सहस्त्रबाहुअर्जुन महाराज वंस ) से जो भी लोग जिस रूप मे मानते और जोड़ते है उनको यह जानना अतिआवश्यक है कि पहले वो अपने इतिहास को पढ़े और जानने कि कोशिश करे, इसके लिए पहले समस्त समाज को हमें शिक्षित करना ही होगा क्योकि अज्ञानता और अंध- विश्वावाश, रूह्वादिता और सामाजिक पीढ़ी के चलन-प्रचलन  को हम तबतक नहीं छोड़ेंगे जबतक हम शिक्षित होकर अपने अस्तित्व को समझेंगे और जानेगे नहीं | समाज के कुछ लोग अपने स्वार्थ और नाम के लिए समाज को भ्रमित कर रहे है| जहा तक हमारा अनुभव समाज के बारे मे है तो ९०% लोग आज भी अशिक्षित और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए है और जिसके कारन वो अपने इतिहास के बारे मे भी कुछ पता नहीं है| आज जहां एकतरफ तो हैयह, सस्त्राबहू और कार्तवीर्य अर्जुन अदि क्षत्रित्य बोधक तथा चन्द्रवंश अदि शब्दो का प्रयोग तो कर रहे है पर क्षत्रिय कहने और लिखने मे शर्म महशूस करते है| इसका सीधा सम्बन्ध अशिक्षा और अज्ञानता कि कमी है क्योकि  उन्हें अपने विरासत और पीढ़ी मे जिन शब्दो और जैसे इतिहास का  अधूरा ज्ञान मिला है उसे ही आगे बढा रहे है| हमें तो गर्व होना चाहिए कि हमने हैहयवंश मे जनम लिया है तो फिर क्षत्रिय और क्षत्रिय जोतक शब्दों को उपनाम मे प्रयोग करने मे शर्म कैसा हमें तो गर्व से कहना चाहिए कि हम क्षत्रिय थे है और रहेंगे| कोई कार्य करने से अपनी स्मिता और जातीयता नहीं खो देता है| अतः हमारा प्रयास है कि सबसे पहले हम अपने हैहयवंश के इतिहास को जाने और उसके पहले वर्ण बयवस्था को भी समझे| सम्पूर्ण मानव समाज को मनु द्वारा केवल ४ वर्णों मे ही बाटा गया है जो कि कर्म के ही आधार पर यह ब्यवस्था कि गई कि जो समाज को शिक्षित करेगा वह ब्राह्मण, जो समाज कि रक्षा करेगा वह क्षत्रिय, जो समाज को भालन पोषण वैश्य और जो अन्य कार्य करंगे वो शुद्र कहलायेंगें| यही वर्ण ब्यवस्था तभी से चली आ रही है और इसमे जसे जैसे समय के साथ सामाजिक परिवर्तन होता गया वर्ण बयवस्था जाति बयवस्था मे बदल गई और साथ ही अन्य जातियों और धर्मो का उदय हुआ| प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास तक अगर हम अध्यन करे तो जो जाति सूचक शब्दों कसेरा, कसेर, कन्स्यकार, तमेर, तमेरा, तमारकर, ठठेर और ठठेरा का प्रयोग समाज के लोग कर रहे है वह जाति का कत्तई बोध नहीं करता और नहीं कही इतिहास मे इसको स्थान हासिल है न अन्य समाज के दवारा न ही सरकारी दस्तावेजों मे मे प्र्योद या उलेख्ख्य है, फिर हम केवल अज्ञानता और अंध- विशास्व, रूह्वादिता और सामाजिक पीढ़ी के चलन को कब तक ढोते रहेगें, जिसका न तो कोई इतिहास है और न ही सामाजिक और सरकारी मान्यता तथा हम कब तक अपने को छुपाते फिरेगे, जब कोई अन्य समाज के लोग हमारे जाति के बारे मे बात करते है तो हमे उसका समुचित उतर भी नहीं दे पाते है और शर्मिन्दा होना पडता है| जिसके कारन जो सामाजिक रूप से शिक्षित और अच्छे पदों और जगहों पर है या तो अपने को कुछ दूसरा जाति से जोड़ देते है या फिर किसी तरह छिप छुपा कर काम चलते है| इस प्रकार वो अपने समाज से दूर होते चले जाते है| यहाँ एक कथा कहावत के रूप मे अत्यंत ही रोचक प्रतीत होती है कि श्राप और आशीर्वाद का फल अवश्य ही प्रभाव डालता है| अपने वंश को भी जो श्राप ऋषि  जम्नादिगनी (परशुराम के पिता ) दवारा सस्त्रार्जुन के अविद्वानता और शारीरिक बल के घमंड तथा अपने प्छोती रंने के मोह वस कामधेनु गाय को पाने हेतु महात्मा का वध और गाय चुराने के कारन मिला था उसे आज तक हम न तो भुला पा रहे है और न ही मुक्त हों पा रहे है| और वर्तमान आधुनिक युग मे भी जब लोग चाँद पर जाने को सोच रहे है हम उस श्राप से बाहर नहीं आ पा रहे है| हमें अपने अस्तित्व के लिए अन्धविश्वाश और ढोंग तथा रुध्वादिता का छोड़ना होगा तभी हम संगठित और संस्कार सहित अपने स्वरुप को पुनः से स्थापित कर सकेगे|
सामाजिक क्षणिक लाभ के लिए कुछ लोग अपने को पिक्षडी जाति , जनजाति  और यंहां तक अनुसूचित जाति का लिखने और कहने लगे है| यदि यह सही है तो फिट हम अपने को कार्यवीर राज राजेस्वर सस्त्राबहूअर्जुन महाराज वंस से फिर क्यों जोडते है यह सर्वथा दोगलेपन कि निसानी है| इसमे भी जिन लोगो दवारा जाति सूचक शब्दों कसेरा, कसेर, कन्स्यकार, तमेर, तमेरा, तमारकर, ठठेर और ठठेरा का प्रयोग किया जा रहा है उनकी भी ज्यादा गलती नहीं है| क्योकि अशिक्षित और अज्ञानता के कारन ही वह इस सामाजिक रूप को धारण किये हुए है, जबतक हम किसी चीज का अध्यन और विश्लेषण नहीं करंगे तबतक सच्चाई को नहीं जन सकते है| अपने वंश के इतिहास का न तो कोई विशेष अध्यन और शोध किया गया न तो प्रचार प्रसार ही जिससे लोगो मे अज्ञानता बनी हुई है| अतः हमारा  यह एक मात्र प्रयास है कि सबसे पहले हम सामाजिक रूप से शिक्षित हों और जो भी जन्हा भी अपने कार्त्यावीर राज राजेस्वर सहस्त्रबाहुअर्जुन महाराज वंश की इतिहास कि जानकारी किताबो, कथाओ, पुरानो और ग्रंथो मे उपलब्ध हों पढ़े विचार करे और संगृहीत कर जन जन तक पहुचाये तभी हम किसी सामाजिक रूप को जान संकेगे| अतः जो भी समाज का ब्यक्ति इस लेख को पढ़े वो अपनी पतिक्रिया हम तक  किसी न किसी माध्यम पत्र पत्रिकाए और समाचार पत्र द्वारा समाज के साथ अन्य लोगो तक पहुंचाए ताकि इसका प्रचार और प्रसार समाज के अन्य लोगो तक किया जा सके| क्योकि जबतक अपने ज्ञान और चीजों को जो जिस किसी के पास जस रूप मे है को एक दूसरे से शेयर नहीं करंगे और जन जन तक पहुचायेंगे नहीं तो उस ज्ञान और चीजों को रखने से क्या फ़ायदा, अत: हमारा समाज के अन्य लोगो से भी उम्मीद है की जिसके पास जो भी समाज के इतिहास से जुडी जानकारिया है उसे एक दूसरे से शेयर करे और हों सके तो उसकी एक प्रति हमे भेजने का कष्ट करे ताकि उसे इस पुस्तक मे शामिल किया जा सके जिससे इसे पढने वाले नही उसको जान सके|
इस प्रकार यदि हमारा समाज और लोग अपने गौरवशाली इतिहास के बारे मे अच्छी तरह से जान जायेंगे  और समझ लेंगे तो हमें आगे बदने से कोई नहीं रोक सकता है| जब समाज के लोग शिक्षित और जागरूप होकर एक निश्चित बिंदु पर पहुचंगे तो फिर हमें संगठित होने से कोई नहीं रोक सकता है| हमें शिक्षित और नवयुवको को इस कार्य मे लगाना होगा तभी एक मजबूत संगठन खड़ा किया जा सकेगा| हमें यह समझाना होगा कि जिस राजवंश का इतिहास इतना पुराना और गौरवमयी है वह क्यों बिखरा हुवा है और किसी न किसी रूप मे पूरे भारत मे विभिन्न स्वरुप मे स्थापित है| हम जब कार्यवीर राज राजेस्वर सहस्त्रबाहुअर्जुन महाराज वंस से अपने को जोडते है तो कही न कही पुरातन सामाजिक ब्यक्ति दवारा ही यह जोड़ा गया होगा| जो लोग इस तथ्य और इतिकास को अवश्य जानते रहे होंगे |
जहाँ तक अपने समाज को पिछड़े होने का अर्थ और लाभ कि बात है तो वह सर्वथा सही है पर जाति के आधार पर नहीं सामाजिक पिछड़ेपन और पिछड़े आर्थिक स्थिति के कारन है क्योकि पिछड़े वर्ग के होने का लाभ हमारे समाज दवारा परिवार के लिए किये जाने वाले भरण पोषण जो सदियों से हमारी जीविका का साधन रहा है और हम अपने कला के कारन शिल्पकार के श्रेणी मे आने के नाते सरकार से मिला है इससे समाज को भ्रमित करने कि आवश्यकता नहीं होनी चाहिए| अब अगर कार्य दवारा जाति तय कि जायेगी तो असंख्य जातीया बन सकती है| कोई भी कार्य भलन-पोषण के लिए किया जाय इसमे कोई बुराई नहीं है बल्कि यह तो हर्ष कि बात है कि यह कला केवल हमारे समाज के लोग ही जानते है, हमें इसे अधिनिक और समय के साथ परिवर्तित कर और आगे बढ़ाना चाहिए|  जाति का अपना आधार है यदि कार्य से जाति का सम्भोधन होता तो ब्राहमण जाति के लोग चमरे, बर्तन, और अन्य प्रकार के बहुत से व्यापार विभिन्न सथानो पर बडी संख्या मे करते है तो वह भी कार्य के आधार पर अन्य जाति लिख सकते थे, पर ऐशा नहीं है, हमें इस चीज को समझना होगा कि कार्य और जाति को एक दूसरे से न जोड़े जंहा तक उपनाम या सरनाम लिखने कि बात है तो हर व्यक्ति स्वत्रन्त्र है, पर इससे सामाज के संगठन और एकता मे रुकावट आएगी| दूसरा उपनाम के सबंध मे यह है कि जब अन्य जातिया अपने को समाज मे ऊँचा रखने के लिए अशोभनीय शब्दों को छोड़ कर नित्य नए सुन्दर और उपयोगी शब्द का उपयोग कर सभ्य और संगतित हों रही है तो अपना समाज क्यों नहीं किसी एक ऐसे शोभनीय और उपुक्त  उपनाम जो क्षत्रियता का भोधक भी हों का प्रयोग कर संगठित और सुद्रिड होने का प्रयास कर रहा है| समाज के पढ़े लिखे और नौकरी पेशा परिवार समाज से लगातार बिछारंते जा रहे है हमें इस सबात को समझना होगा क्योकि बिना पढ़े लिखे और नौकरी पेशा लोगो को साथ लिए हम कभी भी संगतित नहीं हों सकते है चाहे जितना भी प्रयास कर ले|
इन सब बातों से ऊपर जो मूल बात है वह अपने समाज मे शिक्षा का अभाव, क्योकि समाज के ज्यादातर परिवार लडको को बड़ा होने पर तुरंत अपने धंधे और कार्य मे लगा देते है और जब एक बार पैसा हाथ मे आ जाता है तो फिर पढाई मे उसका मन कभी नहीं लगेगा, यह प्रभाव लगभग समाज के हर परिवार मे है| अतः हमें इस चीज का ध्यान रखना होगा कि ज़रा सी पैसे कि चाहत मे अपना और समाज का भविष्य खत्म कर देते है| पढ़े लिख्गे तभी आगे बढ़ेगें| शिक्षा के महत्व को समझना ही होगा|
हमें इस बात का गर्व करना होगा कि धीरे धीरे ही सही पर कई जगहों पर कई स्वरुप मे लोग कम से कम संगठित होने का प्रयास कर रहे है जो कि एक बृहद संगठन के स्वरुप के लिए एक कड़ी होगी| क्योकि जबतक अशभ्य और अशोभनीय शब्दों का उपनाम मे प्रयोग बंद नहीं होगा पढ़े लिखे और नौकरी पेशा वाले लोग साथ नहीं आयंगे और अपने गौरवशाली इतिहास और क्षत्रियता से हम सदैव ही दूर रहेंगे| अतः हम सभी को सारे भेद भाव और पिछले चीजों को छोडते हुए नए सिरे से नवयुवक, शिक्षित लोगो और नौकरीपेशा लोगो को साथ लेकर चलना होगा तभी हम सफल होंगे| हमें शिक्षा और नौकरी के लिए समाज के लोगो को प्रोत्साहित करना होगा| जब लोग शिक्षित और पढ़े लिखे होंगे तभी हम नौकरी मे हा सकेगे और मेहनत और प्रयास द्वारा उन्हें नौकरी भी अवश्य मिलेगी तथा साथ ही वह अपना व्यापार और धंधा भी अच्छे तरीके से चला संकेगे और उन्नति कर संकेगे| हम नवयुवको को नौकरी के भी लिए प्रोत्साहित करना होगा भले ही नौकरी छोटी या बड़ी कोई भी हों तभी हम आगे बढ़ेंगे, और इस स्योक्ति को की पढेगे, लिखेगे तभी बढेगे को ढालना ही होगा|
इस प्रकार, हमारा हैहयवंश का इतिहास अन्य इतिहासों से सर्वथा भिन्न है| जिस राजवंश का साम्रज्य लगभग समस्त भारत मे फैला था और आज भी वह विभिनन रूपों मे स्थापित है| जिसके वंशजो  को आज समाज के कुछ लोग स्वार्थ वस पिछाडी जाति का कहते और मानते है यह कैसी विडंबना है| हैहयवंशी क्षत्रिय, चाहे जिस व्यापार और धंधे मे हों है तो एक ही वंश के तो फिर हमारे लिए यह चुनौती और कठनाई स्वीकार कर आगे आना होगा तभी हम संगठित और संस्कारित बन ऊपर उठ सकंगे|
किसी भी समाज के विकास और प्रगति के लिए सुदृढ़ संगठन का होना अति आवश्यक है| यह संतोष कि बात है कि धीरे धीरे समाज के लोग विभीनन्न जगहों पर एक जुट होकर स्वजाती एवं सामाजिक समस्यों को अपने उपलब्ध संसाधनों और जानकारियों द्वारा संगठित होने का प्रयास कर रनहे है| पर यह प्रयास अपर्याप्त और बिखरा होने के कारण एक संगठन के रूप मे नहीं उभर पा रहा है जिसका मुख्या कारण अशिक्षा अज्ञानता और रुध्वादिता है हमें एक दूसरे से परस्पर सामंजस्य और बिना भेद भाव के विचारों का आदान प्रदान कर एक बृहद संगठन का निर्माण करना चाहिए तभी हम सामजिक और राजनैतिक लाभ उठा संकेगे| आज जिस गति से सामजिक परिवर्तन हों रहा है अपने समाज मे भी यह गति लेन कि आवश्कता है| ताकि समय और परिवर्तन के साथ हमारा समाज भी प्रगति कि दिशा मे आगे बढ़  सके| हमारे लिए दूसरे लोगो को सोचने और मार्गदर्सन प्रदान करने का मौका देना होगा लोग एक दूसरे से संपर्क कर साथ-साथ बैठ कर एक वृहित समाज का निर्माण करना चाहिए| समाज के लोगो को बिना सामाजिक, धार्मिक, उंच नीच तथा गरीबी अमीरी के भेद भाव का छोड़ कर एक साथ आना होगा तभी समाजक का विकास हों सकेगा|
आज के वैज्ञानिक युग मे मनुष्य का जीवन यांत्रिक और सिमित हों गया है लोग सूचना और प्रोयोदिकी के कारण, आधुनिकता चकाचोध  के कारण एक दूसरे से और दूर होते जा रहे है| जबतक हम एक मंच पर एक जगह एकत्रित होकर विचार विमर्श कर संगठन  के महत्व को समझना नहीं समझेगे हम आगे नहीं बढ़ सकेगे| समाज के प्रबुद्ध और अनुभवी लोगो को समाज के विकास और संगठन के लिए त्याग और सम्र्पर्ण करना होगा तभी हम संगठित होकर आगे बढ़ संकेगे|
[ यहा यह बताना जरूरी है कि स्वर्गीय पूत्तू लाल, नई देल्ही  एवं श्री राम सहाय जी हयारण  कि पुस्तक मे कुछ और इतिहास कि जानकारिया मिल सकती है अनुपलब्धता के कारण हम उसे इस लेख मे स्थान नहीं दे पा रहे है, यदि समाज के किसी भी व्यक्ति के पास उपलब्ध हों तो इसकी जानकारी हमे अवश्य दे तक्की कि उस इतिहास कि अच्छी जानकारिया इस पुस्तक मे शामिल किया जा सके और समाज के अन्य लोग भी इससे लाभवानित हो सके]
पिछले २ दशकों से कलचुरी हैहयवंशीयो मे इतनी जागरूपता आई है की वह अपने इतिहास को जानना और समझना चाहते है और निरंतर इस और प्रयास कर रनहे है, कुछ लोग महेश्वर मे श्री राज राजराजेश्वर के दर्शन करने भी जा रनहे है| उन सभी को इसका लाभ भी मिला है| जिन लोगो को इसका लाभ मिला है बाद मे उन लोगो ने १०० ग्राम चढाने की जगह पीपे से घी चदय और पूर्ण लाभ पाया| आज समाज कि जागरूपता यह है कि राज राजेश्वर मंदिर परिसर मे विशाल मंदिर का निर्माण हों रहा है| विगत ५-८ वर्षों पूर्व इसका शिलन्यास हवा तब योजना १ लाख रुपया कि थी परन्तु जब समाज के कुछ जग्र्रोप वर्ग को इसकी जानकारी हुई तो आपस मे इस बात पर सहमति बनी कि इतने कम पैसा मे एक बृहद मंदिर का निर्माण संभव नहीं है और फीर उसे बढ़ा कर २१ लाख रूपये की योजना कर दी गई है|
अतः हमारा समाज के प्रबुद्ध और धनाड्य तथा समाजसेवियो से विनम्र निवेदन हों कि वह अपना सहयोग इस मंदिर के निर्माण मे दे और समाज के जो भी लोग जिस रूप मे इस मंदिर निर्माण मे अपना सह्योफग कर सकते है वो अवश्य ही अपना सहयोग दे| साथ ही मंदिर के निर्माण मे सहयोग के साथ एक बार महेश्वर दर्शन करने अवश्य जाय| सामजिक और धार्मिक कार्य मे बूंद बूंद ही डालने से वह समुद्र की तरह इकठ्ठा होंकर एक बृहद मंदिर निर्माण संभव होगा| और हम सभी बरे ही गर्व से मंदिर का नाम ले संकंगे| हमे कम से कम वंहा जाकर हों रहे कार्यों का जानकारी कर दर्ह्सन अवश्य करना चाहिए| सामजिक और धार्मिक कार्यों मे किया गया सहयोग कभी ब्यर्थ नही जाता है|
हमारा समस्त हैहयवंशी समाज के लोगो से अपील है कि समाज के नौजवान और पढ़े लिखे वर्ग लोग आगे आये और समाज के संगठन और उत्थान मे अपना सहयोग प्रदान करे| तभी समाज का उत्थान हों पायेगा| समाज के इतिहास और अपने वंश का प्रचार प्रसार करे| साथियों अपने घर परिवार के लोगो से इस पर बात चीत करे, उन्हें समाज के इतिहास को बताये तथा गर्व से कहे हम क्षत्रिय है, थे और सदैव जाने जायेंगे| सभी समाज के लोग श्री सहस्त्रबाहु जी कि फोटो अवश्य लगाए तथा हों सके तो रोज उनकी पूजा पाठ करे नहीं तो कम से कम उनके जन्म दिन पर पुरे उत्साह से जन्म दिन मनाये| घर के सामने अपने हैहयवंश होने का सिलापट पर हैहयवंशी क्षत्रिय परिवार या श्री सहस्त्रबाहु परिवार लिखे ताकि समाज के दूसरे लोग भी आप को पहचान सके इसमे कोई शर्म नहीं कि हम यदि यह लिखेंगे तो लोग क्या कहेंगे हम कल क्या लिखते थे कौण सी पहचान थी, वक्त के साथ सब कुछ बदल जाते है| जो सच है उसे लिखने मे कैसा शर्म, यह सच है कि हम अपने कार्य से पहचाने जाते है पर क्यों कार्य करने से कोई किसी जाति का नहीं बन जाता, हम जो थे, है तो फिर उसे अपनाने मे कैसे हिचक|
संपर्क सूत्र
विष्णु स्वरुप ‘चन्द्रवंशी’
मोबाइल- ९४१५६४११५८
             rsvsgkp@gmail.com

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