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हैहयवंश – सामाजिक समस्या और निदान

हैहयवंश – सामाजिक समस्या और निदान आज “हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज” एक ऐसे स्थान पर खडा है जन्हा उत्थान, संगठन और सामजिक विकास के लिए हैहयवंश या सह्स्त्राबहु से सम्बन्ध रखने वाले हर वक्ती या परिवार अपने अपने तरीके से हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज के स्वाभिमान, सम्मान और संस्कार को स्थापित करने के लिए प्रयासरत है परन्तु आज आज़ादी के इतने वर्षो बाद भी हम संगठित नहीं हो सके है| हम सभी हैहयवंश का विकास तो चाहते पर हम सभी के अपने अपने अलग अलग रास्ते है| जिसमे उपनाम का लिखना एक बड़ी समस्या है यह सच है की हम सामजिक रूप से अति पिछड़े और अशिक्षित है| समय के साथ हमने अपने संस्कार को भी छोड़ा है तथा इससे भी कारण हम सभी के बीच संवाद की कमी है, हम एक दुसरे से जन-समपर्क नहीं रखना चाहते है जिससे हममे समाज या व्यक्ति के प्रति समपर्ण की भावाना भी क्षीण होती जा रही है| ये सभी कारण ही आज़ समाज को संगठन और एकता में बड़े ही बाधक बन रहे है| हमें अपने अभिमान को छोड़ना होगा तथा स्वाभिमान के साथ सामाजिक संगठन और विकास के साथ आगे बढ़ना होगा तभी हम एक स्वस्थ, संस्सारिक, शिक्षित तथा सुध्रिड समाज की स्थापना कर संकेंगे| हमें

सहस्त्रार्जुन समाज की उत्पत्ति

सहस्त्रार्जुन समाज की उत्पत्ति स्रष्टी के रचयिता ब्रम्हा जी के मानस पुत्र मरीच से कश्यप और अदिति से सूर्य की उत्पत्ति हुयी। सूर्य से वैवस्वत मनु की उत्पत्ति हुयी। पुराणों के अनुसार मनु आर्यों के प्रथम पूर्वज थे। पौराणिक इतिहास के अनुसार मनु के ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु और पुत्री इला थी। इक्ष्वाकु से सुर्यवां का विस्तार हुआ। मनु ने पुत्री इला का विवाह चन्द्रमा के पुत्र बुध से किया। बुध से ही चन्द्रमा का विस्तार हुआ। इला के नाम पर मातृगोत्र से यह ‘ऐल वां के नाम से भी सुविख्यात हुआ। बुध और इला से पुरूरवा का जन्म हुआ। महाराज पुरूरवा ने ऐलवां की प्रतिस्थापना प्रतिष्ठानपुर वर्तमान में इलाहाबाद में की और उसे राजधानी बनाया । महाराज पुरूरवा का विवाह उर्वशी से हुआ और उनके आठ पुत्र हुये जिनमें आयु और अमावस प्रमुख थे। आयु ने स्वर्भानु की प़ुत्री प्रभा से विवाह किया और उनके पॉंच पुत्र हुये जिन में ज्येष्ठ पुत्र नहुष थे। महाराज नहुष बहुत ही प्रतापी थे और उनकी छह संताने हुयी जिनमें यति और ययाति प्रमुख थे। यति मुनि हो गये और राज्य का त्याग कर दिया। ययाति को राज्य का उत्तराधिकार
कविता क्षत्रियता जिसकी पहचान " हैहयवंशी क्षत्रिय समाज की एकता के लिए " हैहयवंश क्षत्रिय हो एक पहचान क्षत्रियता जिसकी पहचान कविता आज हैहयवंश का एक नाम है।  क्षत्रियता जिसकी पहचान है॥  सभी उपनामो में एक नाम है।  स्वेच्छा से लिखना एक काम है॥  हम विभिन्न उपनामो से अनजान है।  क्षत्रिय जती के लिए सर्वमान है॥  रहे कही बसे कही यह हमारी मान है।  अपनी सोयी वंश को जगाना हमारा ज्ञान है॥  हैहयवंशीय बन वंश बचाना हमारा काम है।  हम क्षत्रिय है यही हमारी शान है॥  क्षत्रियता हमारे धर्म, कर्म और संस्कार है   हैहयवंशीय लिखो, पढ़ो और गर्व से कहो हम क्षत्रिय है सामाजिक जनहित में जारी- डा० वी० एस० चंद्रवंशी
हैहयवंश संकल्प गीत " हैहयवंशी क्षत्रिय समाज की एकता के लिए " हैहयवंश संकल्प गीत हैहय है हैहय के लिए अपनी क्षत्रियता को पहचान॥  हैहयवंश की रक्षा के लिए अपने गौरव को दे सम्मान॥  हैहय समाज की एकता के लिए छोड़े कार्य सूचक उप नाम॥  हैहयवंश की पहचान के लिए लिखे हैहयवंशी क्षत्रिय धोतक उपनाम॥  सस्त्राबाहु के वंशंज  बनने के लिए आओ सब मिल करे कार्त्यवीर्जुन का जप नाम॥  क्षत्रियता हमारे धर्म, कर्म और संस्कार है   हैहयवंशीय लिखो, पढ़ो और गर्व से कहो हम क्षत्रिय है सामाजिक जनहित में जारी- डा० वी० एस० चंद्रवंशी
हैहयवंश एक कविता सन्देश  जय हैहयवंश:                                  गर्व से कहो हम क्षत्रिय है                                               जय सह्स्त्राबहु: आज समय की आहट में हैहयवंश हर तरफ सुनायी पडता है,  हैहयवंश की हर तरफ बया बह रही है, अब इससे अच्छा समय हमें परिवर्तन के लिए नहीं मिलेगा, आओ हम सब मिलकर इस गौरवमयी हैहयवंश के पुन:-स्थापना कर एक नयी सामाजिक चेतना जगाये| हम सब का यह नारा है, हैहयवंश हमारा है| हम मतभेदों को दूर करे, “हैहयवंशीय” होने का सपना पूर्ण करे|| एक कविता सोम , चन्द्र और हैहय के वंशज अपने गौरव को पहचान |॥  गज़ब किया चक्रवर्ती सहस्त्रबाहु ने रामण का तोड़ा अभिमान अपने गौरव को पहचान |॥  नर्वदा की धारा को घेरा | महेश्वर है जिसका स्थान अपने गौरव को पहचान |॥  धर्म , योग और न्याय के पालक क्षत्रियता है जिनकी पहचान अपने गौरव को पहचान |॥  ब्रहम , शिव और विष्णु  के स्वरुप दत्तात्रेयजी है जिनके गुरु भगवान अपने गौरव को पहचान |॥  क्षत्रियता हमारे धर्म, कर्म और संस्कार है   हैहयवंशीय लिखो, पढ़ो और गर्व से कहो हम क्षत्रिय है

श्री सहस्त्रार्जुन जयन्ती का कथानक अब इन्टरनेट के हिन्दी भारत डिस्कवरी डॉट . ओआरजी पर भी उपलब्ध - http://hi.bharatdiscovery.org/india

श्री सहस्त्रार्जुन जयन्ती का कथानक अब इन्टरनेट के हिन्दी भारत डिस्कवरी डॉट . ओआरजी पर भी उपलब्ध  -  http://hi.bharatdiscovery.org/india   जय हैहयवंश:                                        गर्व से कहो हम क्षत्रिय है                                          जय सह्स्त्राबहु: भारत के गणतंत्र दिवस (२०१५)  एक बेला पर समस्त हैहयवंशीय क्षत्रिय समाज के स्वजाति बन्धुवो को हार्दिक शुभकामनाये एक रचनात्मक पहल (अनेक से एक बने हैहयवंश अपनाये) श्री राज राजराजेश्वर चक्रवर्ती महाराज सह्स्त्राबाहु अर्जुन जी की जीवन पर आधारित कथा    “श्री सहस्त्रार्जुन जयन्ती” शीर्षक से उनके कथानक को वर्तमान समय के सबसे अधिक पढ़े, देखे और प्रयोग किये जा रहे मीडिया वेबसाइट लिंक - http://hi.bharatdiscovery.org/india   पर उपलब्ध हो गयी है| आप सभी सामाजिक लोगो से मेरा निवेदन है, कि आप सभी ना सिर्फ इसे स्वंम पढ़ें बल्कि इस लिंक को अन्य लोगो में जरुर शेयर करे, ताकि हमारा यह एक छोटा सा प्रयास फलीभूत हो सके, और हमें आप के इस सहयोग से उत्साह मिल सके, जो हमारे जैसे दूसरे और भी सामाजिक लोगो को प्रेरणा दे

सहस्त्रार्जुन जयन्ती

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                                          सहस्त्रार्जुन जयन्ती अनुयायी हिंदू हैहयवंशीय क्षत्रिय स्थान सम्पूर्ण भारत उद्देश्य सहस्त्रार्जुन   जयंती एक पर्व   और उत्सव के तौर पर क्षत्रिय धर्म की रक्षा और सामाजिक   उत्थान   के लिये मनाई जाती है। प्रारम्भ पौराणिक काल तिथि कार्तिक शुक्लपक्ष कि सप्तमी अन्य जानकारी हैहय क्षत्रिय चंद्रवंशीय है इनका गोत्र कृष्णात्रेय और प्रवर तीन है जो क्रमश: कृष्णात्रेय, आत्रेय और व्यास है, इनकी कुलदेवी माँ दुगा जी, देवता शिव जी, वेद   यजुर्वेद, शाखा वाजसनेयी, सूत्र परस्कारग्रहसूत्र, गढ़ खडीचा, नदी नर्वदा तथा ध्वज नील, शस्त्र-पूजन कटार और वृक्ष पीपल   है, इनका जन्म का नाम एक-वीर था, जो कृतवीर्य के पुत्र होने के नाते   कार्तवीर्य   व् अर्जुन तथा सहस्त्रो भुजाएँ होने का वरदान होने के कारण सह्स्त्राबहु के नाम से भी जाने जाने जाते है तथा उनकी पूजा अर्चना उनके अनुयायी सहस्त्रार्जुन के नाम से करते है| जोकि हम हैहय