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सामाजिकता और समाज की आवश्यकता

सामाजिकता और समाज की आवश्यकता जिसको न निजजाती तथा निवेश का अभिमान है, वह नर नहीं, पशु निरा है और मृत्यु सामान है | किसी राष्ट्र या राज्य अर्थात स्थान  (समाज) की उन्नति उसके धर्म तथा उस स्थान पर धर्म और संस्कार जो उसके पूर्व में सुचरित्र अवलम्बित है| जिस प्रकार एक लंगड़ा/अंधा व्यक्ति लाठी के सहारे सुदूर पहाड़ पर पहुँचने में समर्थ हो जाता है| उसी प्रकार राष्ट्र / राज्य की जातीय तथा समाज धर्म तथा  सदाचार पर उन्नति कर सकती है| वर्तमान में हमारा समाज का अस्तित्व उसके समग्र विकास, समय विकास, क्रांति और जाग्रति का युग है| आज समाज शब्द की आवश्यकता क्यों महत्वपूर्ण है| इस पर विचार किया जाना आवश्यक है| वर्तमान आधुनिक युग और स्वयं के विकास की भागदौड़ और आगे बढ़ने की होड़ में मानव सामाजिक रूप से बिखरता जा रहा है| आज ना तो व्यक्ति को अपने माता पिता, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदारों का कोई उसके जीवन में मूल्य रह गया है नहीं वह इन्हें सजोये रखना चाहता है| मानव जन्म लेने के उपरांत ही एकाकी जीवन शुरू किये जाने के संस्कार से संस्कारित और अभिसिंचित होता है| प्रायः यह पाया जाता है की उसका जन्म हॉस्पिटल मे