सामाजिक आत्मनिर्भरता की राह में व्यक्तिगत रुकावटें आज हैहयवंश समाज की स्थिति पहले से कही अधिक सुद्र्ड और विस्तारित हो रही है। हैहयवंश समाज से अपने को किसी ना किसी रूप से जोड़ने वाले लोगो की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है जो कुछ हद तक एक सुखद स्थिति है पर आधे अधूरे मन से यह पूर्ण नहीं हो सकता है। आज जब समाज अपने को हैहयवंश से जोड़ता है ईस्टदेव के रूप में श्री राज राजेस्वर सहस्त्राबाहू भगवान् की पूजा कर रहा है अत: हमें अपने सभी भेद-भाव, हठधर्मिता, अज्ञानता और अशिक्षा को दूर करते हुए अपने क्षत्रिय वंश के इतिहास और संस्कार को अपनाना ही होगा तभी हम एक समाज के रूप में संगठित हो सकेंगे। सभी मिलकर जब मेहनत करते है तो घर की सम्पति बढती है इसी तरह सभी जब मिलजुलकर पूजा-पाठ करते है तो सुख-शांति बढती है। धन के लिए नहीं, सुख शांति के लिए सामाजिक विकास के लिए भी सामूहिक प्रयास करें क्योकि शिक्षा मनुष्य के विचारों और कार्यो को प्रभावित करती है, हमें इसे स्वीकार करते हुए अपने परिवार के बच्चों को शिक्षा के लिए आगे लाना ही होगा क्यूंकि सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका को नहीं नजरअंदाज नही सकत
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शिक्षा जीवन का आधार शिक्षा जीवन का आधार , इसके बिना है सब बेकार। जो पाता है जीवन में शिक्षा , पूरी होती है उसकी हर इच्छा। वर्तमान परिवेश में शिक्षा को लेकर हम और हमारा समाज जंहा खड़ा है वह हमारे शिक्षा के रूप का ही देन है | हम , हमारा समाज और देश आज तेजी के साथ विकास अवश्य कर रहा है , पर हम इस विकास के यात्रा में शिक्षा के स्वरूप और वर्तमान व्यवस्था के कारण उस विकास की यात्रा में साथ नहीं चल पा रहे है , हमें खास कर शिक्षित युवा को जन्हा होना चाहिए | इसका मूल कारण हमारी शिक्षा का अव्यवस्था और सही तरीके से प्रबंधन ना होना है | यह सच ही की आज का युवा शिक्षित हो रहा है पर वह शिक्षा मात्र डिग्री पाने तक ही समिति है | जिसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव समाज में कई रूपों में पड़ रहा है | जिसमें से एक सबसे कारण बेरोजगारी है , जिसका राजीनीतिकरन भी खूब हो रहा है जो समाज में एक राज