संदेश

मार्च, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हैहयवंश समाज का मूल प्रश्न

हैहयवंश समाज का मूल प्रश्न हमें यह लिखते और कहते हुए अत्यंत ही खेद होता है की जब भी हम समाज में हैहयवंशी बनने, लिखने और हैहयवंश के नाम पर संगठन की बात करते है तो क्यों अधूरे और आधे मन से करते है, और हम एक बार फिर अपने अस्तित्व और कर्म पर संदेह करते है| सामाजिक चर्चाए और संगठन हैहयवंश के नाम से करेंगे इतिहास भी हैहयवंश का मानेगें पर क्षत्रिय शब्द के चुनाव और कहने तथा लिखने में शर्म और कोताही करंगे| इस बात को सदैव मै हर मंच और जगह लगतार उठाता रहा हूँ| मेरे समझ में यह नहीं आता है की जब हम हैहयवंश के गौरव शाली इतिहास को जानने और समझाने लगे है और समाज के अधिकतर लोग स्वीकार कर रहे है तो फिर आधे अधूरे मन से सिर्फ हैहयवंश लिखना और कहना कितना दुर्भाग्यपूर्ण है जिसका हमें सामाजिक रूप से  सिर्फ नुकशान ही होगा| यंहा यह कहावत भी सच लगती है की अधूरे मन से किया गया कार्य कभी सफल नहीं होता है| यंहा हमें अपने हैहयवंश की उस कथा का एश्सास होता है जिसमे परशुराम के पिता जन्माद्ग्नी ऋषि द्वारा जो श्राप दिया गया उसका डर अभी तक हैहयवंशियो में बना हुआ है जिसमे वंश द्वारा क्षत्रिय्ता को भुला कर इसे समाप्त क