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हैहयवंश की ब्यथा

हैहयवंश की  ब्यथा आज हैहयवंश क्षत्रिय समाज की स्थिति ठीक उस प्रकिर्ति के समान बनाए गए फूल की तरह है जो फूल होते हुए चारो तरफ बिखरा हूवा है| जिस प्रकार फूल का महत्व होते हुए भी फूल अपना महत्व और पहचान नहीं समझ पाता है| फूल कभी  अपने आप को मंदिर में चढाने के लिए प्रयोग किया जाता है तो कंभी उसे उत्सवों और धार्मिक कार्यों में प्रयोग किया जाता है और वह कभी गले का हार बन जाता है तो कभी पैरों के निचे कुचला जाता है| कभी उसे शमशान पर सुशोभित किया जाता है| फूलो का प्रयोग प्राचीन काल से इस आधुनिक काल में भी दवा-दारु हेतु भी प्रयोग किया जाता है| फूल के गुणों और आकार-प्रकार, और विभीन्न विधिवाताओ के कारण कई रूपों और नाम से जाना जाता है| फूलो के स्थान भी अनेक है, कुछ फूल कीचड़ में खिलते है, कुछ पहाडो पर, कुछ जंगल में कुछ बगीचों- घरों की शोभा बढाते है| पर फिर भी सभी फूल ही कहलाते है| फूल निर्जीव होने के बाद भी अपनी गुण के साथ कई उपनाम से जाने जाते है कीचड़ में खिलने के बाद भी वह असमान्य कमल के फूल कहलाते है और अपनी विशिष्ट पहचान रखते है, गुलाब के फूल बगीचे-घर में खिलते है पर वह भी कांटो में होने के

संगठन एवं स्वरुप हेतु विचारणीय

संगठन एवं स्वरुप हेतु विचारणीय हम सभी हैहयवंशीय लोगो को अब यह स्वीकार  कर लेना चाहिए की हमारे समाज को अब संगठित होने का समय और एक   स्वरिम अवसर के साथ आ गया है| अत: हम सभी हैहयवंश के लोगो को चाहिए इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाते हुए अपने समाज के संगठन को वृहद और शशक्त करते हुए एक राष्ट्रीय संगठन के रूप में संगठित हो जाय| आज हमें इसके लिए एक विशुद् रूप से वातावरण और माहोल भी मिल चुका है जिसे हमारे ही समाज के कुछ लोगो के अथक प्रयास और कार्य द्वारा  तैयार किया जा रहा था और हमारे समाज के पुर्जजो की भी यही मंशा थी की अपना हैहयवंश एक राष्ट्रीय स्तर का वृहद और शशक्त संगठन बने जो हम हैहयवंशियो को लगता है की पूरा होने जा रहा है| संभवत: यह प्रकिर्ति का वरदान है की हर अधेरा के बाद उजाला होता है जो कल था आज नहीं रहेगा| आज से पिछले २५-३० वर्षों की बात करे तो हैहयवंश का नाम और इतिहास शायद अपने समाज के कुछ गिने चुने लोगो तक ही सिमित था, परन्तु हमारे समाज के कुछ सामाजिक लोगो के अथक प्रयास, समाजिक प्रचार प्रसार का फल है जिसके कारण  आज बहुते से  लोग अपने को हैहयवंश से जोडने की साहस कर सके है और अब उसे स