संदेश

नवंबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सामाजिक एकता की असफलता

सामाजिक एकता की असफलता आज समाज के हर पटल पर सामाजिक एकता और संगठन की बात बडे ही जोरो से चल रही है, हर समाज का व्यक्ति यह कहते सुनते मिल जाएगा कि अपने समाज में एकता नहीं है, या हमारा समाज कभी एक नहीं हो सकता है, तो यह सोच कर हमें बहुत ही दुःख और निराशा होती है कि हम निराश क्यों रहते है हम हमेशा निगेटिव सोच समाज के लिए क्यों बना रखे है| हम इस पर लगातार विचार और चिंतन करते रहते है और हमें अभी तक जो इसका उत्तर मिल पा रहा है वह हमें यह लगता है की हमारा रहने, खाने, पिने और सोचने का दायरा  बहुत ही सिमित है, निगेटिव सामाजिक सोच भी असफलता एक कारण है| आज इस आधुनिक परिवर्तन के युग में हम असीमित  साधन और संसाधनों के होने के बाद भी अपने रुध्वादी और परम्परा वादी विचार धारा को छोड़ नहीं पा रहे है जो दुसरा प्रमुख कारण है हमारी सामजिक असफलता का| , तीसरी सबसे बड़ी चीज हमारी असफलता हमारे सामाजिक रिश्ते बनाने के है| आज भी लोग अपने शहर, जिला, प्रदेश छोड़ कर सामाजिक रिश्तों और बंधनों को बनाने में इक्षुक नहीं दिखाई देते है हम इस सोच को इन सामाजिक रिश्तों और बंधनों को जोड़ कर ही मजबूत बना सकते है जिससे जब एक