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सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प

सामाजिक उत्थान के लिए स्थान परिवर्तन एक पूर्ण विकल्प प्रकृति हमें परिवर्तन का सच्चा रूप हमेशा दिखाता रहता है. परन्तु हम सभी प्रकृति के इस रूप को जानते हुए भी हम इसे अपने सामाजिक जीवन में नही ढाल पाते है| प्रकृति जिस प्रकार मौसम के रूप में हमें जाड़ा, गर्मी और बरसात से, समय को दिन और रात से, संघर्ष को अमीरी और गरीबी से, अनुभव, एह्शाश को शुख और दुःख से जीबन को जन्म और मौत से रूबरू करता है और हम इस परिवर्तन में अपना पूरा जीवन समाज के बिच व्यतीत करते रहते है| समाज के रूप में हम अपना भाग्य और किश्मत मानकर सब्र करते है और जीवन बदलते रहते है| हम इस सामाजिक परिवर्तन के लिए कभी नहीं सोचते है जबकि दुनिया में हर चीज परिवर्तित और समय के साथ बरहती रहती है और परिवर्तन के साथ  प्रगति और विकास होता है अत: हमें प्रकृति के इस परिवर्तन के रूप को समझाने की आवश्यकता है यदि हम या हम अपने समाज के उत्थान के बारे में सोचते है| उक्त कथन का अभिप्राय बस इतना  है  कि हमें अपने जीवन, कार्य, स्थान को भी परिवातित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि नयी सोच, नयी कार्य और नयी जगह के स्वरुप में हम अपने और समाज के उत्थान म